शुक्रवार, 9 अक्तूबर 2020

मुंबई के बॉलीवुड में गीतकार माया गोविंद


बॉलीवुड में गीतकार माया गोविंद 

माया गोविंद के सिने गीतों में लखनऊ के महकते लफ़्ज़ों की ख़ुशबू है। ज़बान को बरतने का सलीक़ा है। जज़्बात को नफ़ासत के साथ पेश करने का हुनर है। इसी लिए उनके गीत सुनने वालों को तरबतर कर देते हैं। उनके गीत माहौल में रस घोलते और मुहब्बत की ज़बान बोलते दिखाई पड़ते हैं। उनमें अदब सांस लेता है और कविता की धड़कन सुनाई देती है। अपनी इसी ख़ासियत के कारण माया गोविंद के सिने गीत संगीत रसिकों के साथ बड़ी जल्दी एक आत्मीय रिश्ता क़ायम कर लेते हैं। 

गीतकार माया गोविंद का मुंबई में आगमन 1971 में हुआ। इसी साल फ़िल्म निर्माता ताराचंद बड़जात्या ने कवियों को लेकर एक फ़िल्म 'कवि सम्मेलन' बनाई थी। इसमें माया गोविंद को भी शामिल किया गया। सन् 1973 में भूपेन हज़ारिका के संगीत निर्देशन में फ़िल्म 'आरोप' में उन्हें पहली बार गीत लिखने का मौक़ा मिला। माया गोविंद का लिखा पहला गीत लता और किशोर की आवाज़ में बेहद लोकप्रिय हुआ- 

नैनो में दर्पण है, दर्पण में कोई, 
देखूं जिसे सुबह शाम 
बोलो जी बोलो, ये राज़ खोलो, 
हम भी सुनें दिल को थाम 

निर्माता-निर्देशक रामानंद सागर के आमंत्रण पर फ़िल्म 'जलते बदन' (1973) के लिए माया गोविंद ने गीत लिखे। इस फ़िल्म के संगीतकार थे लक्ष्मीकांत प्यारेलाल। सारे गीत पसंद किए गए। एक गीत सुपरहिट हुआ- 

वादा भूल न जाना, वादा भूल न जाना 
वो जाने वाले लौट के आना 

माया गोविंद के गीतों से सजी हुई फ़िल्म 'क़ैद' (1975) ने रजत जयंती मनाई। इस फ़िल्म में उनके एक गीत को लता मंगेशकर ने अपने बीस श्रेष्ठ गीतों की सूची में शामिल किया। यह गीत है- 

यहां कौन है असली, कौन है नक़ली 
अपने हैं या बेगाने, ये तो राम जाने 

आलोचना के घेरे में गीतकार माया गोविंद 

निर्माता प्रकाश मेहरा की फ़िल्म 'दलाल' (1993) में लिखे एक गीत के लिए माया गोविंद को आलोचना भी झेलनी पड़ी। ख़ुद माया गोविंद का कहना है कि इस तरह के गीत लिखने से लोकप्रियता तो मिलती है लेकिन मन को संतोष नहीं मिलता। कभी-कभी ऐसे गीत इसलिए ज़रूरी हो जाते हैं कि फ़िल्में आम जनता को ध्यान में रखकर बनाई जाती हैं। अगर वह बुद्धिजीवियों को भी पसंद आ जाएं तो यह उनकी अतिरिक्त उपलब्धि है। 

हमारे लोकगीतों में तोता, मैना, कबूतर आदि पक्षियों के माध्यम से संकेतों में बात की जाती है। फ़िल्म दलाल के इस 'अटरिया' गीत में भी अश्लीलता से बचते हुए संकेतों में ही सारी बातें कही गई हैं। मगर इस गीत का फिल्मांकन ऐसे भड़कीले तरीक़े से किया गया कि लोगों को उसमें दूसरा अर्थ भी दिखाई पड़ने लगा। फ़िल्म 'दलाल' में माया गोविंद ने एक बढ़िया भजन लिखा। उनका एक और दिलकश गीत भी इस फ़िल्म में शामिल है- 

ठहरे हुए पानी में कंकर न मार सांवरे 
मन में हलचल सी मच जाएगी बावरे 

फ़िल्म 'दलाल' में माया गोविंद के इस सुंदर गीत का ज़िक्र नहीं हुआ मगर 'अटरिया' वाले गीत को लेकर काफ़ी चर्चा हुई। सिनेमा में एक गीतकार को पात्र और कहानी के अनुसार ही गीत लिखने पड़ते हैं। यहां विशुद्ध साहित्य नहीं चलता। अगर गीतकार साहित्यिक गीत लिखने की ज़िद करे तो रोज़ी-रोटी कैसे चलेगी। कभी-कभी अच्छी सिचुएशन आ जाती है तो गीतकार को अपनी रचनात्मकता दिखाने का अवसर मिल जाता है। फ़िल्म 'त्रिकोण का चौथा कोण' (1986) में माया गोविंद का एक गीत अपनी काव्यात्मकता के लिए काफ़ी सराहा गया- 

प्यार है अमृत कलश अंबर तले 
प्यार बांटा जाए जितना बांट ले 

फ़िल्मों में गीत लिखकर माया गोविंद को दौलत, शोहरत और सम्मान तीनों मिले। फ़िल्म गीत लेखन एक व्यवसाय है। जैसी मांग होती है वैसी पूर्ति करनी पड़ती है। बाज़ार में बिकने लायक़ माल अगर गीतकार के पास नहीं है तो वह बाज़ार से बाहर हो जाएगा। फ़िल्मों में आने से पहले ही माया गोविंद को एक कवयित्री के रूप में काव्य मंचों पर अपार लोकप्रियता हासिल हो चुकी थी। लखनऊ के रवींद्रालय सभागार में आयोजित एक कवि सम्मेलन में उन्हें अभिनेता भारत भूषण और निर्माता आर चंद्रा ने सुना। उनके गीत से प्रभावित होकर भारत भूषण ने अपनी फ़िल्म 'मेघ मल्हार' और आर चंद्रा ने 'मुशायरा' फ़िल्म में गीत लिखने का आमंत्रण दिया। इस आमंत्रण पर वे सन् 1972 में मुंबई आ गईं। 'मेघमल्हार' फ़िल्म कुछ कारणों से शुरू नहीं हो पाई। 'मुशायरा' फ़िल्म के लिए माया गोविंद ने दो गीत लिखे- 

हमें हुक्म था ग़म उठाना पड़ेगा 
इसी ज़िद में हमने जवानी लुटा दे 
सारी रतिया मचाए उत्पात 
सिपहिया सोने न दे 

आर चंद्रा के आकस्मिक निधन से 'मुशायरा' फ़िल्म का निर्माण रुक गया। बाद में उनके बेटे राकेश चंद्रा ने फ़िल्म 'मुट्ठी भर चावल' में दोनों गीतों का इस्तेमाल किया। निर्माता आत्माराम ने माया गोविंद को अपनी पांच फ़िल्मों में गीत लिखने का प्रस्ताव दिया। ये फ़िल्में थीं- आरोप, क़ैद, आफ़त, ख़ंजर और प्यार के राही। फ़िल्म ‘क़ैद’ के सारे गाने चले और इस फ़िल्म ने सिल्वर जुबली मनाई। फ़िल्म 'आरोप' के गीतों के लिए उत्तर प्रदेश फ़िल्म पत्रकार संघ ने माया गोविंद को सन् 1976 में सर्वश्रेष्ठ गीतकार का सम्मान दिया। 

कशमकश, हीरा और पत्थर, अलबेली, बावरी आदि फ़िल्मों के बाद सन् 1979 में राजश्री प्रोडक्शंस की फ़िल्म ‘सावन को आने दो’ के लिए माया गोविंद ने गीत लिखे। इसमें एक गीत के लिए उन्हें ‘फ़िल्म वर्ल्ड’ जैसा प्रतिष्ठित पुरस्कार मिला। गीत के बोल थे- 

कजरे की बाती अंसुवन के तेल में 
आली मैं हार गई अंखियन के खेल में 

राजश्री प्रोडक्शंस की फ़िल्म ‘पायल की झंकार’ (1980) में माया गोविंद को अच्छे गीत लिखने के मौक़े मिले। येसुदास की आवाज में एक गीत बहुत पसंद किया गया- ‘देखो कान्हा नहीं मानत बतिया’। राजश्री की फ़िल्म ‘एक बार कहो’ (1980) में भी माया गोविंद का एक गीत काफ़ी पसंद किया गया- 

चार दिन की ज़िंदगी है जा रहे हैं दिन 
दो गए तेरे मिलने से पहले दो गए तेरे बिन 
प्रिये कब मिलन होगा 
माया गोविंद को सर्वश्रेष्ठ गीतकार का सम्मान 

गीतकार माया गोविंद की कामयाबी का सफ़र लगातार जारी रहा । सन् 1982 में फ़िल्म ‘ये रिश्ता टूटे ना’ में उनका शीर्षक गीत इतना अधिक लोकप्रिय हुआ कि उत्तर प्रदेश फ़िल्म पत्रकार संघ ने दोबारा उन्हें सर्वश्रेष्ठ गीतकार का सम्मान दिया। इसके बाद ऋषिकेश मुखर्जी जैसे प्रतिष्ठित फ़िल्मकार ने उनसे ‘रंग बिरंगी’ (1983) और ‘झूठी’ (1985) फ़िल्मों के गीत लिखवाए। फ़िल्म ‘झूठी’ में एक बार फिर जनता ने उनका गीत गुनगुनाया- ‘चंदा देखे चंदा तो चंदा शरमाय’। 

फ़िल्म रज़िया सुल्तान (1983) में माया गोविंद ने 'शुभ घड़ी आई' गीत लिखा। संगीतकार ख़य्याम ने ग्यारह श्रेष्ठ गायकों की आवाज़ में यह गीत रिकॉर्ड किया। प्यार के राही, ख़ुशनसीब, तक़दीर, सजाय दे मांग हमार, सदक़ा कमली वाले का, बेटी, हमसे है ज़माना, मैं और मेरा हाथी, जीत हमारी आदि फ़िल्मों में लिखने के बाद माया गोविंद ने फ़िल्म ‘पिघलता आसमान’ (1985) के गीत लिखे। इस फ़िल्म में उनका लिखा एक गीत आज भी युवा दिलों की पसंद बना हुआ है- 

तेरी मेरी प्रेम कहानी 
किताबों में भी न मिलेगी 

कामयाबी के इस सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए माया गोविंद ने त्रिकोण का चौथा कोण, पत्तों की बाज़ी, कहानी फूलवती की, मां-बेटी, ईमानदार आदि फ़िल्मों के गीत लिखे। मनोज कुमार की फ़िल्म ‘कलियुग और रामायण’ (1987) में उनके एक गीत ने धूम मचाई- 

क्या क्या न सितम हाय ढाती हैं चूड़ियां 
जब भी किसी कलाई में आती हैं चूड़ियां 

सन् 1988 में राम गोविंद के निर्देशन में एक फ़िल्म बनी ‘तोहफ़ा मोहब्बत का’। इस फिल्म में गीतकार माया गोविंद ने अभिनेता गोविंदा की माँ की भूमिका निभाई। इस फ़िल्म के संगीतकार हैं अनूप जलोटा। इस फ़िल्म के एक गीत के लिए माया गोविंद को सुर सिंगार संसद ने सम्मानित किया। इस गीत के बोल हैं- 

प्रेम का ग्रंथ पढ़ाऊँ सजनवा 
जो अक्षर मैंने कभी न बांचे 
उनके अर्थ बताऊँ सजनवा 

माया गोविंद की कामयाबी के इस सिलसिले को मेरे बाद, सजना साथ निभाना, गलियों का बादशाह, मौत की सज़ा, यमुना किनारे, शत्रुता, नया शहर, अनमोल, आग का तूफ़ान, आजा मेरी जान, पुलिसवाला गुंडा, कर्मवीर, रफ़ूचक्कर, बाल ब्रह्मचारी, तांडव, मैदाने जंग, क़ैदी नंबर 36, मृत्युंजय, अमानत, स्मगलर, मिस्टर श्रीमती, रात के गुनाह, ज़ालिम जमाना, प्रेम योग आदि फ़िल्मों ने आगे बढ़ाया। 

मशहूर चित्रकार एम एफ हुसैन की फ़िल्म 'गजगामिनी' (2000) के गीतों को लिखने का काम माया गोविंद को सौंपा गया था। इस फ़िल्म के लिए माया जी ने चार गीत लिखे। सुप्रसिद्ध संगीतकार भूपेन हजारिका ने इन गीतों को संगीतबद्ध किया था। हुसैन साहब के पब्लिसिटी स्टंट के चलते लोगों का ध्यान फ़िल्म के गीतों की ओर कम ही गया। श्याम बेनेगल की फ़िल्म हरी भरी (2000) के मधुर गीतों के लिए भी माया गोविंद की सराहना की गई। राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित कल्पना लाज़मी की फ़िल्म 'दमन' (2001) के सातों गीत माया गोविंद की क़लम से निकले हैं। गीतकार माया गोविंद ने 350 फिल्मों में 750 से अधिक गाने लिखे हैं । वैसे तो उनके अनेक गीत पसंद किए गए पर फ़िल्म 'टक्कर' (1980) के गीत को बेहद लोकप्रियता मिली-

आंखों में बसे हो तुम, तुम्हें दिल में छुपा लूंगा 
जब चाहूँ तुम्हे देखूं,आईना बना लूंगा

कुणाल गांजावाल की मधुर आवाज़ में फ़िल्म 'शीशा' (1986) का गीत लोकप्रियता के चार्ट में ऊपर रहा-

यार को मैंने, मुझे यार ने, सोने न दिया 
प्यार ही प्यार किया, प्यार ने, सोने न दिया

संगीत रसिकों का पसंदीदा गीत है फ़िल्म 'गलियों का बादशाह' (1989) का ये गीत-

मुझे ज़िन्दगी की दुआ न दे, मेरी ज़िंदगी से बनी नही 
कोई ज़िन्दगी पे करे यक़ीं, मेरी ज़िंदगी से बनी नहीं


माया गोविंद को लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड 

माया गोविंद के ग़ैर फ़िल्मी गीतों के भी कई अलबम जारी हुए। कई धारावाहिकों में भी उन्होंने गीत लिखे। द्रोपदी और श्रीकांत जैसे लोकप्रिय धारावाहिकों के अलावा माया गोविंद ने रामायण धारावाहिक (पाँच एपिसोड) के गीत लिखे। अभिनेत्री हेमा मालिनी के लिए लिखा गया उनका बैले ‘मीरा’ बहुत पसंद किया गया। वीनस संगीत कंपनी ने माया गोविंद की कविताओं का एक अलबम 'संगीत सुधा' नाम से जारी किया। फ़िल्म संगीत में रचनात्मक योगदान के लिए सन् 1999 में माया गोविंद को फ़िल्म राइटर्स एसोसिएशन ने लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया। 

लखनऊ की मूल निवासी कवयित्री माया गोविंद ने मशहूर कथक गुरु शंभु महाराज से कथक नृत्य का प्रशिक्षण प्राप्त किया। भातखंडे संगीत विद्यालय से उन्होंने गायन सीखा है। कैरियर के शुरुआती दिनों में माया गोविंद आकाशवाणी लखनऊ में स्टाफ आर्टिस्ट और ड्रामा आर्टिस्ट थीं। दर्पण संस्था के ज़रिए उन्होंने दस साल तक रंगमंच पर भी काम किया। 'ख़ामोश अदालत जारी है' नाटक में श्रेष्ठ अभिनय के लिए सन् 1970 में माया गोविंद को संगीत नाटक अकादमी का बेस्ट एक्ट्रेस अवॉर्ड प्राप्त हुआ। 

फ़िल्मी गीतों में बढ़ती अश्लीलता के सवाल पर माया गोविंद कहती हैं- गीतों से ज़्यादा अश्लीलता तो गीतों के फिल्मांकन में है। ऐसे कई गीत हैं जो सुनने में तो अश्लील नहीं लगते लेकिन पर्दे पर दिखाए जाने में अश्लील लगते हैं। इसके लिए सबसे बड़ा दोषी हमारा सेंसर बोर्ड है। हम जब सिनेमा में गीत लिखते हैं तो हमें दर्शकों के घर परिवार का और अपने बच्चों का भी ख़्याल रहता है। 

माया गोविंद की अब तक एक दर्जन से अधिक किताबें प्रकाशित हुई हैं। मुंबई विश्वविद्यालय और पुणे विश्व विद्यालय में उनके साहित्य पर पीएचडी हो रही है। देश-विदेश में जो उन्हें जो यश और प्रतिष्ठा प्राप्त हुई वह दुर्लभ है। सर्दियों के आगोश में जैसे धूप और बदली के दामन में जैसे बूँद पनाह लेती है, उसी तरह कवयित्री माया गोविंद के दिल में प्रेम की पीर बसी हुई है। यह पीर उनकी भाग्य रेखा पर लालिमा की तरह उपस्थित है- 

जैसे कोई सर्दियों में धूप को छुपा ले 
जैसे कोई बदली से बूँद को चुरा ले 
वैसे मैंने भी चुरा ली प्यार की ये पीर 
सेंदुर-सेंदुर हो गई मेरे भाग्य की लकीर 


कवयित्री माया गोविंद का 80वां जन्मदिन 17 जनवरी 2020 को जुहू में आयोजित काव्य संध्या में मनाया गया। चित्र में (बाएं से) आपके दोस्त देवमणि पांडेय , संध्या रियाज़, माया गोविंद, रामगोविंद, गुलशन मदान, देवेंद्र काफ़िर और शेखर अस्तित्व।

कवयित्री माया गोविंद के लिए प्रेम भले ही मोक्ष का मार्ग हो लेकिन अपने गीतों में उन्होंने जीवन और समाज के अहम् सवालों के जवाब ढूँढ़ने की कोशिश की। माया गोविंद हिंदी काव्य मंच की सबसे लोकप्रिय कवयित्री हैं। पिछले साठ साल से वे हिंदी काव्य मंच पर सक्रिय हैं। फ़िलहाल वे जीवंती फाउंडेशन के माध्यम से कला और साहित्य की सेवा कर रहीं हैं। 

शुक्रवार 9 अक्टूबर 2020 को कवयित्री माया गोविंद से मेरी बातचीत हुई। बेटे अजय, बहू शिवाली, पौत्र विशेष और पौत्री सुहानी के साथ माया गोविंद और राम गोविंद अपने घर में स्वस्थ और प्रसन्न हैं। 17 जनवरी 1940 कवयित्री माया गोविंद की जन्म तारीख़ है। उन्होंने अपना 80वां जन्मदिन 17 जनवरी 2020 को जुहू में आयोजित एक काव्य संध्या में मनाया था। कवयित्री माया गोविंद ने बताया कि वे 17 जनवरी 2021 को अपना 81वां जन्मदिन आप सबके साथ मनाना चाहती हैं। आइए उस दिन का इंतज़ार करें जब हम सब मिलकर कहेंगे- "जन्मदिन बहुत-बहुत मुबारक हो माया जी।"


आपका-
देवमणि पांडेय

सम्पर्क : बी-103, दिव्य स्तुति, कन्या पाडा,
गोकुलधाम, फिल्मसिटी रोड, गोरेगांव पूर्व,
मुम्बई-400063, M : 98210 82126
devmanipandey.blogspot.com

कोई टिप्पणी नहीं: