बुधवार, 24 अगस्त 2011

कभी रातों में वो जागे : देवमणि पांडेय की ग़ज़ल




देवमणि पांडेय की ग़ज़ल

कभी रातों में वो जागे कभी बेज़ार हो जाए
करिश्मा हो कोई ऐसा उसे भी प्यार हो जाए

मेरे मालिक अता कर दे मुहब्बत में कशिश ऐसी
ज़बां से कुछ नहीं बोलूँ मगर इज़हार हो जाए

मुहब्बत हो गई है तो नज़र आए निगाहों में 
करूँ जब बंद आँखें मैं तेरा दीदार हो जाए

कई दिन तक किसी से दूर रहना भी नहीं अच्छा
कहीं ऐसा न हो ये फ़ासला दीवार हो जाए

यहाँ कुछ लोग हैं जिनको मुहब्बत जुर्म लगती है
मुहब्बत है ख़ता तो ये ख़ता सौ बार हो जाए

मिला है मशवरा हमको कभी ये रोग मत पालो
मगर दिल चाहता है इश्क़ में बीमार हो जाए



गायिका इला अरुण, उद्योगपति रानी पोद्दार और कवि देवमणि पांडेय

देवमणि पांडेय : 98210-82126


3 टिप्‍पणियां:

www.navincchaturvedi.blogspot.com ने कहा…

पाण्डेय जी आप की अपनी एक अलग शैली है। ये पंक्तियाँ बहुत खूब लगीं

तुम बुद्धू हो, तुम पागल हो, दीवाने हो तुम
उसका मुझसे यह सब कहना अच्छा लगता है

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…





आपको सपरिवार
नवरात्रि पर्व की बधाई और शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं !

-राजेन्द्र स्वर्णकार

अनुपमा पाठक ने कहा…

जो कुछ गुज़रे ख़ुद पर सहना,लोग तो कुछ भी कहते हैं
सुंदर!