मंगलवार, 15 जून 2010

मौसम की पहली बारिश : देवमणि पांडेय


मौसम की पहली बारिश
कल सुबह मुम्बई में मौसम की पहली बारिश हुई। रात में ही बारिश की पाजेब से छम-छम की आवाज़ें आनी शुरु हो गईं थीं। आज सुबह खिड़की से बाहर झाँका तो इमारतों के धुले हुए चेहरे बहुत सुंदर लग रहे थे। मेरे परिसर के पेड़ों पर जमी हुई धूल और धुँए की परत साफ़ हो गई है। तन पर हरियाली की शाल ओढ़े हुए वे मस्ती में झूम रहे हैं । हवाओं को छूने के लिए मचल रहे हैं । दो-तीन फीट पानी में डूबी हुई सड़क के सीने पर तेज़ रफ़्तार में झरना बह रहा है। सामने की खिड़कियों में फूल जैसे चेहरे मुस्करा रहे हैं। पानी को चीरकर आगे बढ़ती हुईं गाड़ियाँ मन में उल्लास जगा रहीं हैं। घर से बाहर क़दम रखा तो दिखाई पड़ा कि कॉलोनी के पार्क में गुलमोहर के पेड़ों के नीचे सुर्ख़ फूलों की चादर बिछी हुई है। परवीन शाकिर का शेर याद आ गया-

बारिश हुई तो फूलों के तन चाक हो गए
मौसम के हाथ भीगकर शफ्फ़ाक हो गए


अगर आपका रिश्ता गाँव से है और आपने बरसात की रातों में जुगनुओं की बारातें देखीं हैं तो आपको इस ग़ज़ल का दूसरा शेर भी याद आ सकता है-

जुगनू को दिन के वक़्त पकड़ने की ज़िद करें
बच्चे हमारे अहद के चालाक हो गए


अपना लिखा हुआ एक गीत याद आ रहा है- ‘मौसम की पहली बारिश’। मित्र नीरज गोस्वामी ने बहुत कलात्मक तरीके से इसे अपने ब्लॉग पर परोसा है। साहित्य शिल्पी और हिंदी मीडिया जैसी लोकप्रिय पत्रिकाओं ने भी शानदार तरीके से इसे अपने पाठकों तक पहुँचाया। आइए हम आप भी मिलकर इसे गुनगुनाएं।


मौसम की पहली बारिश


छ्म छम छम दहलीज़ पे आई मौसम की पहली बारिश
गूंज उठी जैसे शहनाई मौसम की पहली बारिश

वर्षा का आंचल लहराया
सारी दुनिया चहक उठी
बूंदों ने की सरगोशी तो
सोंधी मिट्टी महक उठी

मस्ती बनकर दिल में छाई मौसम की पहली बारिश

रौनक़ तुझसे बाज़ारों में
चहल पहल है गलियों में
फूलों में मुस्कान है तुझसे
और तबस्सुम कलियों में

झूम रही तुझसे पुरवाई मौसम की पहली बारिश

पेड़-परिन्दें, सड़कें, राही
गर्मी से बेहाल थे कल
सबके ऊपर मेहरबान हैं
आज घटाएं और बादल

राहत की बौछारें लाई मौसम की पहली बारिश

बारिश के पानी में मिलकर
बच्चे नाव चलाते हैं
छत से पानी टपक रहा है
फिर भी सब मुस्काते हैं

हरी भरी सौग़ातें लाई मौसम की पहली बारिश

सरक गया जब रात का घूंघट
चांद अचानक मुस्काया
उस पल हमदम तेरा चेहरा
याद बहुत हमको आया

कसक उठी बनकर तनहाई मौसम की पहली बारिश


आपका-
देवमणि पांडेय : बी-103, दिव्य स्तुति, 
कन्या पाडा, गोकुलधाम, फ़िल्म सिटी रोड, 

गोरेगांव पूर्व, मुम्बई-400063, 98210 82126 

9 टिप्‍पणियां:

Sulabh Jaiswal "सुलभ" ने कहा…

बहुत सुन्दर पाण्डेय जी इस मनमोहक प्रस्तुति के लिए.

आप मुंबई में बारिश का मजा लीजये मैं फिलहाल गुडगाँव में

नीरज गोस्वामी ने कहा…

देवमणि जी

पिछले चार दिनों से खोपोली में भी बारिश शुरू हो चुकी है...मुरझाये पहाड़ों पर रौनक लौटने लगी है...आपने मुंबई की पहली बारिश का बहुत सुन्दर चित्रण किया है...परवीन शाकिर के शेर उसमें चार चाँद लगा रहे हैं...आपकी जानकारी के बता दूं के दो हफ्ते पहले परवीन जी की एक किताब का जिक्र करते हुए मैंने भी इन्हीं शेरों को प्रस्तुत किया था..आप तो आते नहीं ब्लॉग पर इसलिए बताना पड़ रहा है...:

दूध में जैसे कोई अब्र का टुकड़ा घुल जाए
ऐसा लगता है तेरा सांवलापन बारिश में

ज़फर शब् के इस शेर का कोई सानी नहीं बेहद खूबसूरत शेर पढवाया है आपने...बहुत बहुत बहुत शुक्रिया...

नीरज

माधव( Madhav) ने कहा…

wah wah wah

तिलक राज कपूर ने कहा…

अरे भाई मुम्‍बई वालों, लो सद्य:जन्‍मे कुछ अशआर
तुम्‍हारी बात माने तो, हमारे गॉंव भी भेजो,
सुना है हमने बारिश में मज़ा कुछ और आता है।
कड़कती, कौंधती बिजली, गगन पर स्‍याह बादल हों
हमें तो ऐसी ख्‍वाहिश में मज़ा कुछ और आता है।
नहाकर जब निकलती हो लिये बूँदों की तुम लडि़यॉं,
हमें तुमसे गुज़ारिश में मज़ा कुछ और आता है।

www.navincchaturvedi.blogspot.com ने कहा…

अच्छा गीत, अच्छी ग़ज़ल|

www.navincchaturvedi.blogspot.com ने कहा…

अच्छा गीत, अच्छी ग़ज़ल|

सुभाष नीरव ने कहा…

वाह भाई, आपने तो भीषण गरमी में अपने ब्लॉग की इस पोस्टिंग से सचमुच ही तन-मन में ठंडक पहुंचा दी। आपका गीत बहुत सुन्दर लगा।

rkpaliwal.blogspot.com ने कहा…

वाह पांडे जी,
बारिश और शायरी तक तो ठीक है लेकिन ऐश्वर्या अब शादीशुदा है उसे तो अभिषेक के लिये छोड दो बंधु।

Prem Farukhabadi ने कहा…

मनमोहक प्रस्तुति.