देवमणि पांडेय की ग़ज़ल
मेरा यकी़न,हौसला,किरदार देखकर
मंज़िल क़रीब आ गई,रफ़्तार देखकर
जब फ़ासले हुए हैं तो रोई है माँ बहुत
बेटों के दिल के दरमियां दीवार देखकर
हर इक ख़बर का जिस्म लहू में है तरबतर
मैं डर गया हूँ आज का अख़बार देखकर
बरसों के बाद ख़त्म हुआ बेघरी का दर्द
दिल खु़श हुआ है
दोस्तो! घरबार
देखकर
दरिया तो चाहता था कि सबकी बुझादे प्यास
घबरा गया वो इतने तलबगार देखकर
वो कौन था जो शाम को रस्ते में मिल गया
वो दे गया है रतजगा इक बार देखकर
चेहरे से आपके भी झलकने लगा है इश्क़
जी ख़ुश हुआ है आपको बीमार देखकर
कवि देवमणि पाण्डेय का सम्मान करते हुए कवयित्री माया गोविंद |
आपका-
देवमणि
पांडेय : बी-103, दिव्य स्तुति,
कन्या पाडा,
गोकुलधाम, फ़िल्म सिटी रोड,
गोरेगांव पूर्व,
मुम्बई-400063, 98210 82126
3 टिप्पणियां:
इस दुनिया की भीड़ में इक दिन हर चेहरा खो जाता है
रखनी है पहचान तो अपना चेहरा अपने पास रहे
पता नहीं चलता चाहत में
कैसे गुज़रा माघ महीना
मेरे दौर में भी हैं चाहत के क़िस्से
मगर मैं पुरानी मिसालों में गुम हूँ
आपका हाथ है हाथ में
ग़म के मौसम गुज़र जाएंगे
मोहब्बत का रिश्ता न टूटे कभी
कोई मिलके बिछड़े ख़ुदा ना करे
देवमणि जी सभी ग़ज़लें बेहतरीन हैं...लाजवाब हैं...मेरी बधाई स्वीकार करें.
नीरज
paanchon gazalain ek mala ke paanch motiyon si lagi
बेहतरीन! बेहतरीन!! बेहतरीन!!!
देवमणि जी सुनना बहुत ही खुशगवार होता है.
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