रविवार, 7 मार्च 2010

कुरार गाँव की औरतें : देवमणि पांडेय की कविता


कुरार गाँव की औरतें : कविता

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस (8 मार्च) का ज़िक्र होते ही मुझे कुरार गाँव की औरतों का ध्यान आता है। मुम्बई के उपनगर मालाड (पूर्व) में ईस्टर्न हायवे से सटी हुई विशाल बस्ती का नाम है ‘कुरार गाँव’। दूर तक इस बस्ती के सिर पर बस सीमेंट की छतें नज़र आती हैं।बीस साल पहले जब मैंने वहाँ एक चाल में अपना रैन बसेरा बनाया था तो यहाँ छ: पार्षद थे यानी लगभग 6 लाख की आबादी थी। बहुत कुछ बदला मगर न तो ‘कुरार गाँव की औरतें’ बदलीं और न ही उनकी ज़िंदगी बदली । उनका सोच-विचार और व्यवहार आज भी वैसा ही है। मुझे उस समय किंचित आश्चर्य हुआ था कि मेरे पड़ोसी टिम्बर मर्चेंट कासिम की बीवी ही नहीं जवान बेटी भी अनपढ़ है। सर पर डिब्बा लादकर इडली बेचने वाले अन्ना की पत्नी अनपढ़ है तो सिक्योरिटी गार्ड तिवारी की पत्नी भी अनपढ़ है। कुल मिलाकर उस गाँव में अनपढ़ औरतों की संख्या काफी थी। जब मैं अपने बीवी-बच्चों के साथ उनकी दुनिया में दाखिल हो गया तो मैंने उन पर एक कविता लिखी-‘कुरार गाँव की औरतें’

उस समय मुम्बई में राहुलदेव के सम्पादन में ‘जनसत्ता’ लोकप्रियता के शिखर पर था। नगर पत्रिका ‘जनसत्ता सबरंग’ के सम्पादन के लिए कथाकार धीरेंद्र अस्थाना दिल्ली से मुम्बई आ चुके थे। लोकल ट्रेन के सफ़र में मैंने यह कविता उन्हें पढ़ने के लिए दी। उन्होंने कहा- मैं इसे छापूंगा। रविवार 20 जनवरी 1991 को जब ‘जनसत्ता सबरंग’ में यह कविता प्रकाशित हुई तो मुम्बई के साहित्य जगत में धूम मच गई।

सबसे पहले मुम्बई में समकालीन कविता के बहुचर्चित कवि विजय कुमार ने फोन पर बधाई दी। ‘धर्मयुग’ और ‘नवभारत टाइम्स’ के मित्रों ने तारीफ़ की। विनोद तिवारी के सम्पादन में हिंदी की सबसे सुरुचिपूर्ण फ़िल्म पत्रिका ‘माधुरी’ हिंदी की ‘फ़िल्मफेयर’ बन गई थी। उसमें कार्यरत पत्रकार मिथिलेश सिन्हा ने कहा- मैंने अपनी अब तक की ज़िंदगी में कभी अतुकांत कविता नहीं पढ़ी। मगर इसका शीर्षक देखकर मैं ख़ुद को पढ़ने से रोक नहीं पाया। मुझे यह कविता बहुत अच्छी लगी। मुम्बई के साहित्य जगत में में टीका-टिप्पणी का भी दौर चला। किसी ने कहा कि यह तो बाबा नागार्जुन की एक कविता की नक़ल है तो किसी ने कहा कि यह तो आलोक धन्वा की ‘ब्रूनों की बेटियों’ से प्रभावित है। कुल मिलाकर यह कविता इतनी लोक प्रिय हुई कि कई लोग मुझे ‘कुरार गाँव का कवि’ कहने लगे।

सबसे दिलचस्प बात यह हुई कि सुबह 10 बजे क़रीब 20 अनपढ़ औरतों का एक समूह मेरे पड़ोस में रहने वाली एक स्कूल शिक्षिका के पास गया। उन्होंने उसके सामने ‘जनसत्ता सबरंग’ रखकर कहा कि बताओ- इसमें हमारे बारे में छपा क्या है ? स्कूल शिक्षिका ने उनके सामने पूरी कविता का पाठ किया। कुरार गाँव की औरतों ने कहा- हमारे बारे में जो भी छपा है वह सच है। एक कवि के लिए इससे बड़ा प्रमाणपत्र क्या हो सकता है ! शाम को कई लोग मिलने आए। उनमें एक बंगाली व्यवसायी थे आनंदजी। उन्होंने मुझे एक चाभी सौंपते हुए कहा- मैंने दो निजी शौचालय बनवाए हैं।उनमें से एक आपका हुआ। अब आप सरकारी शौचालय की लाइन में नहीं खड़े होंगे। एक कविता के लिए इससे बड़ा पुरस्कार और क्या हो सकता है !

6 दिसम्बर 1992 को अयोध्या काण्ड की प्रतिक्रिया में मुम्बई में दंगे शुरू हो गए। सम्पादक राहुलदेव जी ने सुझाव दिया कि साम्प्रदायिक सदभावना का संदेश जनसत्ता के पाठकों तक पहुँचाने के लिए मैं कुछ बुद्धिजीवियों से बात कर लूँ। मैंने सबसे पहले डॉ.धर्मवीर भारती को फोन किया। वे लाइन पर आए तो मैंने कहा - सर मेरा नाम देवमणि पाण्डेय है। वे तपाक से बोले- अरे भाई मैं तुम्हें जानता हूँ। तुम्हारी वो कविता मैंने पढ़ी थी- ‘कुरार गाँव की औरतें’। बहुत अच्छी लगी। मैं चाहता हूँ कि तुम एक दिन मेरे घर आओ और मुझे अपनी कविताएं सुनाओ। मैं एक दिन भारती जी के घर गया। उन्होंने बड़े प्रेम से मेरी कविताएं सुनीं। आज भारती जी हमारे बीच नहीं हैं। लेकिन ‘कुरार गाँव की औरतों’ का असर कुछ ऐसा है कि आज भी मेरे सर पर श्रीमती पुष्पा भारती का वरदहस्त है। आइए आपको भी इन औरतों से मिलाएं-

कुरार गाँव की औरतें
(1)
कुरार गाँव की औरतें ऑफिस नहीं जातीं
वे ऑफिस गए पतियों और
स्कूल गए बच्चों का करती हैं इंतज़ार
बतियाती हैं अड़ोस पड़ोस की औरतों से
या खोल देती हैं कोई क़िस्सा कहानी

उनके क़िस्सों में ज़्यादातर होती हैं औरतें
कि किस औरत का भारी है पैर
कौन पिटती है पति से
या कौन लड़ती है किससे
वे इस बात में रखती हैं काफ़ी दिलचस्पी
कि कल किसकी बेटी
बाहर से कितनी लेट आई
और किस लड़की ने
अपने माँ बाप की डाँट खाई

खाना - पानी, कपड़े - बच्चे
सिलाई - कढ़ाई - लड़ाई
और न जाने कितने कामों के बावजूद
किसी ख़ालीपन का एहसास
भर जाता है उनमें
बेचैनी, ऊब और झल्लाहट
और वे बुदबुदाती हैं
समय की सुस्त रफ़्तार के खिलाफ़

(2)
कुरार गाँव की औरतें
टीवी पर राम और सीता को देखकर
झुकाती हैं शीश
कृष्ण की लीलाएं देखकर
हो जाती हैं धन्य
और परदे पर झगड़ने वाली औरत को
बड़ी आसानी से समझ लेती हैं बुरी औरत

वे पुस्तकें नहीं पढ़तीं
वे अख़बार नहीं पढ़तीं
लेकिन चाहती हैं जानना
कि उनमें छपा क्या है !
घर से भागी हुई लड़की के लिए
ग़ायब हुए बच्चे के लिए
या स्टोव से जली हुई गृहणी के लिए
वे बराबर जताती हैं अफ़सोस

उनकी गली ही उनकी दुनिया है
जहाँ हँसते-बोलते, लड़ते-झगड़ते
साल दर साल गुज़रते चले जाते हैं
और वक़्त बड़ी जल्दी
घोल देता है उनके बालों में चाँदी

(3)
कुरार गाँव की औरतें
अच्छी तरह जानती हैं कि
किस वर्ष बरसात से
उनकी गली में बाढ़ आई
किसके बेटे-बेटियों ने शादी रचाई
किस औरत को
कब कौन सा बच्चा हुआ
और कब कौन उनकी गली छोड़कर
कहीं और चला गया

लेकिन उन्हें नहीं पता कि तब से
यह शहर कितना बदल गया
कब कौन सा फैशन आया और चला गया
और अब तक समय
उनकी कितनी उम्र निगल गया

अपनी छोटी दुनिया में
छोटी झोंपड़ी और छोटी गली में
कितनी ख़ुश -
कितनी संतुष्ट हैं औरतें
सचमुच महानगर के लिए
चुनौती हैं ये औरतें

(4)
कुरार गाँव की औरतें
तेज़ धूप में अक्सर
पसीने से लथपथ
खड़ी रहती हैं राशन की लाइनों में
देर रात गए उनींदी आँखों से
करती हैं पतियों का इंतज़ार
मनाती हैं मनौतियां
रखती हैं व्रत उपवास
और कितनी ख़ुश हो जाती हैं
एक सस्ती सी साड़ी पाकर
भूल जाती हैं सारी शिकायतें

वे इस क़दर आदतों में हो गईं हैं शुमार
कि लोग भूल गए हैं
वे कुछ कहना चाहती हैं
बांटना चाहती हैं अपना सुख-दुख

देर रात को अक्सर
दरवाज़े पर देते हुए दस्तक
सहम उठते हैं हाथ
किसी दिन अगर
औरतों ने तोड़ दी अपनी चुप्पी
तो कितना मुश्किल हो जाएगा
इस महानगर में जीना

***


आपका
देवमणिपांडेय

सम्पर्क : बी-103, दिव्य स्तुति,
कन्या पाडा, गोकुलधाम, फिल्मसिटी रोड,
गोरेगांव पूर्व, मुम्बई-400063, 98210-82126

14 टिप्‍पणियां:

Bhuvendra Tyagi ने कहा…

Wah bhai wah. Kya baat hai... Voh din yaad aa gaye. Mere paas Sabrang Jansatta ki voh prati aaj bhi hai. Aaj ye kavitayen padhkar main uss kaal me ghoom aayaa.
Bhuvendra Tyagi

सुभाष नीरव ने कहा…

भाई देवमणि पांडेय जी
जब से साहित्य से परिचय (सन 1972 के आसपास से) हुआ और साहित्य पढ़ने और बाद में लिखने की रुचि जागी,तब से खूब पढ़ा। उस जमाने की प्रतिष्टित पत्र पत्रिकाएं पढ़ीं। पर देखिये ना, कोई गारंटी नहीं कि आप खूब पढ़ते हों और कोई रचना(अच्छी ) आपकी नज़र से छूट न पाए। मैं आपकी इस कविता को यानी 'कुरार गांव की औरतें' पहली बार पढ़ रहा हूँ और वह भी आज ब्लॉग और वेब पत्रिका के जमाने में, जबकि आपने इसे अपने ब्लॉग पर पुन: प्रकाशित किया तब। यदि आप इसे ना प्रकाशित करते और लिंक ना भेजते तो मैं तो आपकी इतनी अच्छी कविता को पढ़ने से वंचित ही रह जाता। खैर, नि:संदेह आपकी ये कविता अपील करती है और इस जब जब कोई पढ़ेगा, अवश्य प्रभावित होगा। मेरी बधाई !

बोधिसत्व ने कहा…

अच्छी कविता....

Ila ने कहा…

यह कविता आम औरत की कविता है , नाकि सिर्फ कुरार गाँव की औरतों की| भारत में औसत स्त्री का जीवन और सोच इससे अलग नहीं है आज भी | महिला दिवस पर सर्वथा प्रासंगिक |
बधाई!
इला

Unknown ने कहा…

priya devendra bhai,bahut achchhi kavita hai|is par koi utsahi vyakti documentary film bhi bana sakata hai.tb mujhe aur khushi hogi.shubh kamanaon ke saath,buddhinath

विजय यात्रा ने कहा…

bhai sahab, bahut badhai......sachmuch aaj bh kal jaisi prasangik....vijay singh (navbharat)

GOVIND GULSHAN ने कहा…

स्नेही भाई देवमणि पांडेय जी
सादर अभिवादन
आपकी कविता ’कुरार गाँव की औरते’
सिर्फ़ कविता नहीं है एक दास्तान है उन औरतों की
जिनके दर्द में कोई शरीक नहीं होता आपने उन्हें क़रीब से जाना और समझा ये बहुत बड़ी बात है
आपकी कविता में उन सब का दर्द छुपा है
कविता से ये भी ज़ाहिर है कि उनके पास एहसास की कोई कमी नहीं है.
कविता पढ़ कर संभव है कुछ लोग आगे आएँ
दर्द बाँटने के लिए.
बहुत-बहुत शुक्रिया

Unknown ने कहा…

मनाती हैं मनौतियां
रखती हैं व्रत उपवास
और कितनी ख़ुश हो जाती हैं
एक सस्ती सी साड़ी पाकर....इन पंक्तियों को पढ्कर आंखें भर आयीं..क्योंकि मैने भी यही सब महसूस किया है इनके संग रहकर..भोली-भाली ये महिलायें आज भी उतनी ही भोली हैं..हालांकि जब से मेरी कंपनी बंद हुई,तब से वहां जाना नही हो सका लेकिन देवमणि जी ने मुझे भी कुरार गांव की औरतो की याद दिला दी..शायद अब तो जरुर होगा जाना फ़िर से वो भोली मुस्कान देखने के लिये..उनकी प्यार भरी आत्मीयता को महसूस करने के लिये..पांडे जी बहुत-बहुत आभार !

jainkamal ने कहा…

DEVMANIJI

IT IS NICE THAT EACH DAY OF YOUR VOLUBLE LIFE U ARE SURPRISING FOR EXCELLENT WORK OF WRITING IN THE FIELD OF LANGUAGE ...
SALAAM
HEADS OF TO YOU.
IF U WILL SEE TIMES OF OINDIA ASSUE ON CREST
ON WOMEN'S SPECIAL INGRATE BY INDUJI AND PRATHIVA PATIL JI PRESIDENT OF INDIA .
THIS IS BETTER OUT PUT COMPARE TO TIMES OF INDIA.
KEEP IT UP FOR BETTERMENT OF LANGUAGE.
AGAIN REGARDS]




REGARDS
JAINKAMAL

देवमणि पांडेय Devmani Pandey ने कहा…

आपने लिखा है-

भाई देवमणि पाण्डेय
कुरार गांव की औरतें जब सबरंग में प्रकाशित हुई थी उस समय भी उस कविता पर मेरा पत्र पहला था और शायद आज भी। आपकी यह कविता कुरार गांव की औरतों को एक माइक्रॉकास्म बनाते हुए भारत भर की औरतों का चित्रण कर देती है।लगभग दो दशकों बाद भी यह कविता आज भी उतनी ही प्रासंगिक है। इस ख़ूबसूरत कृति के लिये एक बार फिर बधाई।
तेजेन्द्र शर्मा , कथा यूके. (लंदन), 00-44-7868738403

Hum bhi ek waqt Kurar gaon me rehte the, Hindimedia par aapki kavita padhi “Kurar gaon ki Aurate”, bahot acha laga! Sari yaade taza ho gai. Shurkriya.
Daksha Amrania
Deputy Manager - Credit Control
Antwerp Diamond Bank ,2nd Floor, Engineering Centre, 9, Mathew Road, Opera House, Mumbai 400 004

किसी ने यह कविता मुम्बई के वरिष्ठ शायर ज़फ़र गोरखपुरी को सुनाई। उनका भी कहना कि कुरार गांव की औरतें हिंदुस्तान के हर शहर में मौजूद हैं।
ऐसे सार्थक कमेंट के लिए आप सबका बहुत-बहुत शुक्रिया। आशा है भविष्य में भी आपसे यह स्नेह मिलता रहेगा ।
- देवमणि पाण्डेय

oma sharma ने कहा…

bahut acchhi kavita hai, padhvane ke liye dhanyvaad. aapko badhai.mahanagar ke beech aisi vagiya upathithi ki aise saral magar jhankrut karne vaali prastuti ke liye sadhuvad

देवमणि पांडेय Devmani Pandey ने कहा…

भारतीय मीडिया की ख़बरों के सबसे चर्चित न्यूज़ पोर्टल Bhadas4Media में 7 मार्च को प्रकाशित कुरार गांव की औरतें पर कुछ Comments देखिए-

written by dinesh m, March 07, 2010
बहुत खूब कहा जी आपने..वैसे कुरार गांव के बारे में 2 दशक पुरानी ये बात आज भी उतनी ही जीवंत है जितना कि आपने तब दर्शाया था।

Kumar Sauvir, Mahuaa News, Lucknow, March 08, 2010
ye kahaani to akele kuraar ki hai hi nahi. Mujhe to isme apne aas-paas ke gali-kooche hee nahi, poore Dakshin Asia ki tasveer dikhai deti hai.
kumar sauvir, Ph--09415302520

written by Pueent Kumar Malaviya, March 08, 2010
Very well written Dev Mani Ji

written by vijay singh, March 08, 2010
kya khub kahi sir...bahut achi lagi

रायपुर (छत्तीसगढ़)से उदंती पत्रिका की सम्पादक डॉ.रत्ना वर्मा ने आज सूचित किया कि वे कुरार गांव की औरतों को अपनी पत्रिका के नए अंक में प्रकाशित कर रहीं हैं। आप सबके इस स्नेह के लिए शुक्रिया। - देवमणि पाण्डेय

Sultan Singh Rathore ने कहा…

वाह जी मान आपको । बहुत अच्छी लगी।

Sultan Singh Rathore ने कहा…

sorry typing mistak.....
मान गए आपको.....