चेहरा तो दिल का हाल छुपाता नहीं कभी
कविता निजी भावनाओं की सार्वजनिक अभिव्यक्ति है। किसी रचनाकार के काव्य सृजन से जब पाठकगण अपनी भावनाओं का धागा जोड़ लेते हैं तो उस सृजन का दायरा व्यापक हो जाता है। अर्चना गुप्ता की ग़ज़लें निजी डायरी की तरह सामने आती हैं। मगर उनमें एहसास की ऐसी शिद्दत है कि उनसे गुज़रने वाला इंसान इस एहसास की नमी में तरबतर हो जाता है और ये ग़ज़लें उसके एहसास का हिस्सा बन जाती हैं।
मैं अपनी राह चलती हूं, मैं अपनी राह पे चल के
करूंगी तय सफ़र अपना, सफ़र की आग में जल के
ये माना है डगर मुश्किल मगर मैं क्यों भला ठहरूं
महकते फूल भी कितने यहां कांटों में ही पल के
अर्चना जौहरी के काव्य संग्रह का नाम है- 'यादों की कतरन'। संग्रह की कई ग़ज़लों में यादों का सैलाब नज़र आता है। इस सैलाब में किसी से बिछड़ जाने की कसक, दर्द, चुभन और आंसू शामिल हैं। यही चीज़ें अर्चना की ग़ज़लों को निजता से ऊपर उठा कर दूसरों के दुख दर्द से जोड़ देती हैं। वस्तुतः यही उनकी रचनात्मकता की उपलब्धि है।
कैसे कहूं कि याद वो आता नहीं कभी
सच तो यही है ज़ह्न से ज्यादा नहीं कभी
क्यूं पूछते हो हाल मुझे देखने के बाद
चेहरा तो दिल का हाल छुपाता नहीं कभी
मुझे यकीन है कि इन ग़ज़लों का रंग और ख़ुशबू संवेदनशील पाठकों को पसंद आएगी। अर्चना की भाषा आम फ़हम है। अंदाज़ में रवानी है। अभिव्यक्ति में सहजता है। यही कारण है कि उनकी ग़ज़लें दिल से निकलती हैं और दिल तक पहुंच जाती हैं।
मुझे हालात ने रौंदा बहुत है
पर मैंने उनसे हां सीखा बहुत है
उसी से सबसे ज़्यादा है शिकायत
उसी को मैंने पर चाहा बहुत है
संग्रह में कुछ नज्में भी हैं जिनमें रिश्ते नाते, समय और समाज शामिल हैं। इस ख़ूबसूरत काव्य संग्रह के लिए मैं कवयित्री अर्चना जौहरी को बधाई देता हूं। प्रलेक प्रकाशन मुम्बई से प्रकाशित इस काव्य संग्रह का मूल्य 249/- रूपए है। मुझे पूरी उम्मीद है कि काव्य जगत में इस काव्य संग्रह का भरपूर स्वागत होगा।
आपका-
देवमणि पांडेय
सम्पर्क : बी-103, दिव्य स्तुति, कन्या पाडा, गोकुलधाम, फ़िल्मसिटी रोड, गोरेगांव पूर्व, मुम्बई-400063 , 98210 82126
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