सुहबतें फ़क़ीरों की : रक़ीब का ग़ज़ल संग्रह
सतीश शुक्ला 'रक़ीब' नेकदिल इंसान और उम्दा शायर हैं। शायरी की शाहराह पर कई सालों के मुसलसल सफ़र के बाद हाल ही में उनका पहला शेरी मज्मूआ मंज़रे-आम पर आया है। इसका नाम है 'सुहबतें फ़क़ीरों की'।
हर ख़ुशी क़दम चूमे कायनात की उसके
रास आ गईं जिसको सुहबतें फ़क़ीरों की
सतीश शुक्ला 'रक़ीब' ने अपने फ़िक्र ओ फ़न को उसी रास्ते का हमवार बनाया है जो रास्ता मीर ओ ग़ालिब से चलता हुआ हम सब तक आया है। इस रिवायती शायरी में वे अपना रंग घोलने में कामयाब हुए हैं -
तुम्हारे शहर में मशहूर नाम किसका था
मिरा नहीं था तो फिर एहतराम किसका था
वो कल जो बज़्मे - सुखन में सुनाया था तूने
बहुत हसीन था लेकिन कलाम किसका था
रक़ीब के इज़हार में एहसास की ख़ुशबू है। उनकी ग़ज़लों में मुहब्बत की धनक मुस्कुराती हुई नज़र आती है। वे मुहब्बत की इस जानी पहचानी दुनिया में और कोई न कोई दिलचस्प पहलू निकाल ही लेते हैं-
आपसे तुम, तुमसे तू, कहने लगे
छू के मुझको, मुझको छू, कहने लगे
पहले अपनी जान कहते थे मुझे
अब वो जाने आरज़ू कहने लगे
रक़ीब के दिल की दुनिया में जज़्बात के ऐसे ख़ुशरंग नज़ारे हैं जो सब को भाते हैं। वहां मुहब्बत का एक गुलशन आबाद है। इस गुलशन में हवाएं मुहब्बत की ख़ुशबू बांटती हैं-
हवा के दोश पे किस गुलबदन की ख़ुशबू है
गुमान होता है सारे चमन की ख़ुशबू है
अपने जज़्बात के इज़हार के लिए रक़ीब ने उर्दू ज़बान का ख़ूबसूरत इस्तेमाल किया है। उनकी उर्दू आम बोलचाल की उर्दू है। ज़बान से उनका जो रिश्ता है उसे आप उन्हीं के एक शेर से समझ सकते हैं-
हर एक लफ़्ज़ पे वो जां निसार करता है
अदब नवाज़ है उर्दू से प्यार करता है
भारतीय साहित्य संग्रह नेहरू नगर, कानपुर से प्रकाशित इस ग़ज़ल संग्रह का मूल्य है 400 रूपये। ग़ज़लों की इस दिलकश किताब के लिए सतीश शुक्ला रक़ीब को बहुत-बहुत बधाई। उम्मीद है कि उनकी तख़लीक़ का यह सफ़र इसी ख़ूबसूरती से आगे भी जारी रहेगा।
आपका-
देवमणि_पांडेय
सम्पर्क : सतीश शुक्ला 'रक़ीब'
98921 65892 & 99675 14139
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