देवमणि पांडेय की ग़ज़ल
कश्तियाँ
मझधार में हैं नाख़ुदा कोई नहीं
अपनी हिम्मत
के अलावा आसरा कोई नहीं
शोहरतों ने उस
बुलंदी पर हमें पहुँचा दिया
अब जहाँ से लौटने
का रास्ता कोई नहीं
जी रहे हैं
किस तरह अब लोग अपनी ज़िदगी
जैसे दुनिया
में किसी से वास्ता कोई नहीं
मिलके अपने
दोस्तों से ख़ुश बहुत होते हैं लोग
पर किसी के
दिल के अंदर झाँकता कोई नहीं
कुछ अधूरे ख़्वाब
हमसे कर रहे हैं ये सवाल
क्या हक़ीक़त से
हमारा राब्ता कोई नहीं
हर जगह हर
रोज़ जिसको ढूँढते फिरते हैं लोग
वो ख़ुशी है
दिल के अंदर ढूँढता कोई नहीं
देवमणि पाण्डेय : 98210-82126
1 टिप्पणी:
"कल अचानक घर किसी का आ गया फुटपाथ पर
शायद उनकी लाडली के हाथ पीले हो गए"
बहुत ही उम्दा!
एक टिप्पणी भेजें