गुरुवार, 10 अप्रैल 2014

देवमणि पांडेय की ग़ज़ल : क्या कहें कुछ इस तरह



देवमणि पांडेय की ग़ज़ल


क्या कहें कुछ इस तरह अपना मुक़द्दर हो गया
सर को चादर से ढका तो पाँव बाहर हो गया

ज़िंदगी को हार का तोहफ़ा मिला तो यूँ लगा
आँसुओं का सिलसिला पलकों का ज़ेवर हो गया

इस क़दर किरदार बदला आदमी का इन दिनों
कल तलक जो आईना था आज पत्थर हो गया

थी जहाँ फूलों की बारिश, ख़ूं का दरिया है वहाँ
क्या उम्मीदें थीं रुतों से, कैसा मंज़र हो गया

जब तलक दुःख मेरा दुःख था एक क़तरा ही रहा
मिल गया दुनिया के ग़म से तो समंदर हो गया

मुश्किलों के दरमियाँ बढ़ते रहे जिसके क़दम
वो ज़माने की निगाहों में सिकंदर हो गया

विश्व हिंदी अकादमी के महफ़िल-ए-मुशाइरा में शाइरा दीप्ति मिश्र, प्रज्ञा विकास, लता हया, शाइर देवमणि पांडेय और माइक पर संस्थाध्यक्ष केशव राय (मुम्बई 14.9.2013) 

देवमणि पांडेय : 98210-82126

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