गाता रहे वायलिन : पं डी के दातार की जीवनी
एक वायलिन वादक के रूप में पं डी के दातार (दामोदर केशव दातार) ने देश विदेश में जो प्रतिष्ठा अर्जित की वह बेमिसाल है। 10 अक्टूबर सन् 2018 को पद्मश्री डी के दातार का निधन हुआ। सन् 2022 में 'गाता रहे वायलिन' नाम से उनकी जीवनी हिंदी में प्रकाशित हुई। जीवनी की लेखिका हैं पं डी के दातार की पुत्रवधू डॉ स्मिता निखिल दातार। इसे पढ़ते हुए महसूस होता है कि स्मिता जी को संगीत की गहरी समझ है। वे ख़ुद एक प्रतिष्ठित चिकित्सक और लेखिका हैं। मराठी में उनके कहानी संग्रह और उपन्यास प्रकाशित हुए हैं। यही कारण है कि इस जीवनी में भाषा की समृद्धि है, रोचक शैली है और ज़बरदस्त पठनीयता है। उन्होंने पं डी के दातार को जैसा देखा वैसा ही उनका स्वाभाविक चित्रण किया है। दातार जी के बचपन, घरेलू जीवन, विवाह, बच्चों और मित्रों के साथ उनके आत्मीय संबंधों को स्मिता जी ने एक रोचक दास्तान की तरह पेश किया है।
दिल्ली के गंधर्व महाविद्यालय में सिर्फ़ तेईस वर्ष की उम्र में पं डी के दातार ने वायलिन की एकल प्रस्तुति दी थी। उस ज़माने में सोलो प्रस्तुति को बहुत बड़ी उपलब्धि माना जाता था। इस प्रथम सार्वजनिक कार्यक्रम में संगीत की महान हस्ती पं डी वी पलुस्कर ने दातार जी की पीठ थपथपाई। जाने माने सितार वादक रविशंकर ने उन्हें आशीर्वाद देते हुए कहा- बेटा तुम्हारा भविष्य उज्जवल है। उसी दौरान एक और अद्भुत घटना हुई। मुंबई की अत्यंत प्रतिष्ठित संस्था 'सुर सिंगार संसद' में एक वरिष्ठ कलाकार के वायलिन वादन का सोलो कार्यक्रम था। उन्होंने आने में असमर्थता सूचित की। तब उस्ताद आमीर ख़ांं साहब ने आयोजक बृजनारायण जी से कहा- हमारा लड़का दातार बड़ा ही सुरीला है। उसको बुलाओ। बड़े कलाकार द्वारा एक उभरते कलाकार को दिया गया यह बहुत बड़ा प्रशस्ति पत्र था। सुर सिंगार संसद के इस कार्यक्रम में अपने शानदार एकल वादन से डी के दातार ने इतिहास रच दिया।
वायलिन को एक जीवंत पात्र के रूप में चित्रित करके उसी के नज़रिए से लिखी गई इस जीवनी की ख़ास बात यह है कि यह उस समय के शास्त्रीय संगीत के परिदृश्य को बड़ी ख़ूबसूरती से सामने लाती है। पं डी के दातार के आसपास पं डी वी पलुस्कर, पं रवि शंकर, पं कुमार गंधर्व, पं भीमसेन जोशी, बड़े गुलाम अली ख़ां, पं जसराज, पं हरि प्रसाद चौरसिया जैसे संगीत के कई दिग्गज कलाकारों की मौजूदगी इस जीवनी को गरिमामय और अविस्मरणीय बना देती है। इसमें कई ऐसे महत्वपूर्ण और रोचक प्रसंगों का ज़िक्र है जो इस जीवनी की आभा में वृद्धि करते हैं। दादर के छबीलदास सभागृह में उस्ताद आमीर ख़ां 'राग मारवा' पेश कर रहे थे। तालियों की गड़गड़ाहट हुई। आमीर ख़ां ने कहा- "श्रोताओं! तालियां मत बजाइए। मेरी समाधि भंग हो जाती है। जब मैं गाता हूं तब मेरी ईश्वर से बातचीत होती रहती है। वही मेरी समाधि अवस्था होती है। तालियों के कारण मेरी समाधि भंग हो जाती है।" एक और रोचक प्रसंग देखिए- मराठी फ़िल्म 'पतिव्रता' के गाने की रिकॉर्डिंग थी। पं भीमसेन जोशी माइक पर थे। डी के ने वायलिन का एक अत्यंत सुंदर टुकड़ा बजाया। पं भीमसेन जोशी ने अपना गायन बंद करके दाद दी- वाह वाह, बहुत ख़ूब। रिकॉर्डिंग रुक जाने से डीके बेचैन हो गए। भीमसेन जी ने उन्हें इशारे से शांत किया और फिर रिकॉर्डिंग हुई।
संगीत के ऐसे कई प्रसंग हैं जो इस किताब को महत्वपूर्ण बनाते हैं। यह किताब सिर्फ़ एक जीवनी न होकर संगीत का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज़ है। पं डी के दातार के वायलिन में ऐसी कशिश थी कि लगता था वहां से शब्द निकल रहे हैं। पु. ल. देशपांडे कहते थे - गाने वाला वायलिन है तो केवल दातार जी का। स्मिता जी ने लिखा है- "डी के अपने वादन के ज़रिए धीरे से सुरों के पैरों में शब्दों की पाज़ेब पहना कर श्रोताओं के मन में उन शब्दों का नाद उत्पन्न करते थे। श्रोताओं को लगता था कि उन्होंने शब्दयुक्त गीत ही सुने हैं।" पं डी के दातार का एक ही लक्ष्य था- "वायलिन की यह शब्द प्रधान गायकी भारत भर में नहीं दुनिया भर में पहुंचनी चाहिए और तीनों लोकों में यह जानकारी होनी चाहिए कि पश्चिमी वाद्य से हिंदुस्तानी संगीत के बोल भी किस तरह सुरों के साथ निकलते हैं।" अपने इस मिशन में पं डी के दातार पूरी तरह कामयाब हुए।
पं डी के दातार की यह जीवनी पहले मराठी में "द वायोलिन सिंग्ज" नाम से प्रकाशित हुई। डॉ स्मिता दात्ये ने इसका हिंदी में अनुवाद किया। डॉ स्मिता दात्ये ख़ुद एक अच्छी रचनाकार हैं। उनके उपन्यास, कहानी संग्रह और कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। वे पुणे के विविध महाविद्यालयों में हिंदी साहित्य पढ़ा चुकी हैं। उनकी हिंदी बहुत अच्छी है। यही कारण है कि इस पुस्तक की भाषा बहुत सरल, सहज और प्रवाहयुक्त है। जो लोग शास्त्रीय संगीत में दिलचस्पी रखते हैं उनके लिए यह एक संग्रहणीय पुस्तक है। इस सुंदर कृति को संगीत प्रेमियों तक पहुंचाने के लिए डॉ स्मिता निखिल दातार और डॉ स्मिता दात्ये को बहुत-बहुत बधाई।
इस किताब की साज सज्जा और प्रिंटिंग बहुत अच्छी है। इस किताब के प्रकाशक हैं- आर. के. पब्लिकेशन मुंबई। सम्पर्क नंबर हैं - 9022 52 11 90 / 9821 25 1190, इस किताब का मूल्य 550/- रूपए है।
आपका :
देवमणि पांडेय
सम्पर्क : बी-103, दिव्य स्तुति, कन्या पाडा, गोकुलधाम, फिल्मसिटी रोड, गोरेगांव पूर्व, मुम्बई-400063, 98210 82126
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें