शायर पंछी जालौनवी का काव्य संग्रह : दो सफ़र
लॉक डाउन में ज़िंदगी की परवाज जैसे थम गई। शायर पंछी जालौनवी ने अपने घर के दरीचे से ज़िंदगी की जो हलचल देखी उस मंज़र को उन्होंने लफ़्ज़ों का लिबास पहना कर नज़्मों की शक्ल में पेश किया। पंछी एक हस्सास शायर हैं। इन नज़्मों में शामिल उनका एहसास पाठकों के दिल पर दस्तक देता है। उनके इज़हार में फ़िक्र के साथ आंखों की नमी भी शामिल है-
दर्द एहसास का
इस क़द्र भी मर सकता है
नंगे पावों
मीलों का सफ़र
कोई ख़ुद अपनी सवारी पे
पैदल भी कर सकता है
पंछी ने कोरोना काल में लिखी गई अपनी इन नज़्मों के मज्मूए को 'दूसरा सफ़र' उन्वान दिया है। इस सिलसिले में वह अपने ज़ाती सफ़र से बाहर निकलकर दूसरों के दुखों के कारवां में शरीक होते हैं और उसे अपनी रचनात्मकता में बख़ूबी ढाल देते हैं-
मैंने देखा-
तीस बरस की
बूढ़ी मां का
आठ बरस का जवान बच्चा
अपने कांधे का सहारा देकर
मां के क़दमों से
सफ़र की थकान उठा रहा था
पंछी जालौनवी की यह किताब कोरोना के साए में सफ़र तय करती ज़िंदगी का एक अहम दस्तावेज़ है। पलायन, किराएदार, झोपड़पट्टी, रेलगाड़ी, हमारी रात फुटपाथ, नींद का कातिल, इबादतगाह, दफ़्तर, आपबीती, सुरक्षाकर्मी, मास्क आदि उनकी कई ऐसी नज़्में हैं जो कोरोना के मुश्किल समय में झेली गई तकलीफ़ और पीड़ा को सामने लाकर गुजिश्ता वक़्त की जीती जागती तस्वीर पेश कर देती हैं।
सरल सहज ज़बान में कही गईं ये सीधी-सादी नज़्में पढ़ने वालों पर गहरा असर डालती हैं। पंछी एक उम्दा शायर होने के साथ-साथ एक अच्छे सिने गीतकार भी हैं। उन्होंने कई फ़िल्मों को अपने गीतों से सजाया है। 'दस बहाने करके ले गए दिल' फ़िल्म 'दस' का यह गीत उन्ही की क़लम का कमाल है। लखनऊ के मशहूर शायर पवन कुमार के सानिध्य में ऑनलाइन आयोजित एक कार्यक्रम में पंछी की इस किताब का इस्तक़बाल किया गया। इसकी निज़ामत शायर रोहित विक्रम भदोरिया ने की। सदारत की ज़िम्मेदारी आपके दोस्त देवमणि पांडेय को सौंपी गई थी।
इस सुंदर किताब के लिए मैं पंछी जालौनवी को हार्दिक बधाई देता हूं। मेरी दुआ है कि उनकी रचनात्मकता का यह सिलसिला इसी तरह कामयाबी के साथ जारी रहे।
आपका-
देवमणि पांडेय
सम्पर्क : बी-103, दिव्य स्तुति,
कन्या पाड़ा, गोकुलधाम, फ़िल्म सिटी रोड,
गोरेगांव पूर्व, मुंबई- 400063, 98210-82126
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