देवमणि पांडेय ग़ज़ल
इक फूल मुहब्बत का फिर दिल
में खिले कोई
इस शहर की गलियों में अपना
तो मिले कोई
आ जाए मुहब्बत का इस सिम्त
कोई झोंका
उम्मीद की शाख़ों पे पत्ता
तो हिले कोई
आँखों में उतर आए चेहरा वो
ग़ज़ल जैसा
फिर नींद मेरी महके,फिर
ख़्वाब खिले कोई
उजड़े हुए इस दिल की बस
इतनी तमन्ना है
फिर टूट के पहले-सा एक बार
मिले कोई
होंठों से नहीं कहता क्या
मुझसे शिकायत है
ख़ामोश निगाहों से करता है
गिले कोई
Contact : 98210-82126
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें