देवमणि
पांडेय की ग़ज़ल
दिल ने चाहा बहुत और मिला कुछ नहीं
ज़िंदगी हसरतों के सिवा
कुछ नहीं
मुझको रुसवा सरेआम उसने
किया
उसके बारे में मैंने कहा
कुछ नहीं
इश्क़ ने हमको सौग़ात में क्या दिया
ज़ख़्म ऐसे कि जिनकी दवा
कुछ नहीं
पढ़के देखी किताबे-मुहब्बत
मगर
आँसुओं के अलावा मिला कुछ
नहीं
हर ख़ुशी का मज़ा ग़म की
निस्बत से है
ग़म नहीं है अगर तो मज़ा
कुछ नहीं
ज़िंदगी ! मुझसे अब तक तू
क्यों दूर है
दरमियां अपने जब फ़ासला कुछ
नहीं
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