देवमणि पांडेय
की ग़ज़ल
साहिल पर जो खड़े हुए थे डूब गए हैरानी में
मोती उसके हाथ लगे जो उतरा गहरे पानी में
दुख और ग़म के बीच ज़िंदगी कितनी प्यारी लगती है
जैसे कोई फूल खिला हो काँटों की निगरानी में
दुनिया जिसको दिन कहती है तुम कहते हो रात उसे
कुछ सच की गुंजाइश रक्खो अपनी साफ़बयानी में
जिसको देखो ढूँढ रहा है काश ज़िंदगी मिल जाए
जाने कैसी कशिश छुपी है इस पगली दीवानी में
हुशियारी और चालाकी में डूब गई है ये दुनिया
फिर भी सारा ज्ञान छुपा है बच्चों की नादानी में
देवमणि पांडेय : 98210-82126
2 टिप्पणियां:
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (28.11.2014) को "लड़ रहे यारो" (चर्चा अंक-1811)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है।
बहुत उम्दा प्रस्तुति...
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