गुरुवार, 14 जनवरी 2016

किस नगर से आ रही हैं शोख़ बासंती हवाएँ



बसंत का गीत : देवमणि पाण्डेय

धूप का ओढ़े दुशाला और  महकाती दिशाएँ
किस नगर से आ रही हैं शोख़ बासंती हवाएँ

आम के यूँ बौर महके
भर गई मन में मिठास
फूल जूड़े ने सजाए
नैन में जागी है प्यास

कह रही कोयल चलो अब प्रेम का इक गीत गाएँ
किस नगर से आ रही हैं शोख़ बासंती हवाएँ

झूमती मदहोश होकर
खेत में गेहूँ की बाली
लाज का पहरा है मुख पर
प्यार की छलकी है लाली

धड़कनें मद्धम सुरों में दे रहीं किसको सदाएँ
किस नगर से आ रही हैं शोख़ बासंती हवाएँ  

ओढ़कर पीली चुनरिया
आँख में सपना सजाए
कर रही सरसों शिकायत
दिन ढला सजना न आए

साँझ बोली चल सखी हम आस का दीपक जलाएँ
किस नगर से आ रही हैं शोख़ बासंती हवाएँ



देवमणि पाण्डेय : M : 98210-82126

2 टिप्‍पणियां:

Neeraj Neer ने कहा…

बहुत बढ़िया गीत पाण्डेय जी।

Unknown ने कहा…

बह रही है हवा फिर तेरे नाम की --- होटों पे मुस्कुराहट आई फिर तेरे नाम की

सुंदर ,शहर के प्रवास में कोई गावोँ कि याद दिलाता है,,,,,,
बधाई देकर प्रशंसा करने लायक नहीं
पर मेरी ओर से बधाई ग्रहण करें