बुधवार, 29 अक्टूबर 2025

साहित्यायन फाउंडेशन मुम्बई का प्रथम साहित्य समारोह

दीक्षित दनकौरी को नंदलाल पाठक साहित्य पुरस्कार 

भिषेक सिंह को नंदलाल पाठक प्रतिभा पुरस्कार


मुम्बई ऐसा शहर है जहाँ प्रतिदिन सैकड़ों आयोजन पाँचसितारा होटलों से लेकर छोटे मोटे स्थानों पर होते है। लेकिन कुछ आयोजन ऐसे होते हैं जो यादगार होने के साथ ही अपनी एक अलग छाप छोड़ जाते है। आज जब मुंबई के बड़े कॉर्पोरेट घराने विभिन्न आयोजनों के नाम पर पश्चिमी सभ्यता को पोसने वाले कार्यक्रम कर करोड़ो रुपये खर्च कर देते हैं वहीँ बिड़ला उद्योग समूह की श्रीमती राजश्री बिड़ला ने हिंदी कवियों और हिंदी पुस्तक को समर्पित एक ऐसा आयोजन किया जिसकी सुरभि हिंदी साहित्य जगत को बरसों तक महकाती करती रहेगी। सबसे बड़ी बात ये है कि इस कार्यक्रम में श्रीमती राजश्री बिड़ला, उनके पुत्र कुमार मंगलम बिड़ला और उनका परिवार पूरे समय मौजूद रहा। यह अपने आप में एक दुर्लभ दृश्य था कि हिंदी साहित्य के किसी कार्यक्रम में देश के इतने बड़े उद्योगपति का परिवार इतने सम्मान और भाव से पूरे समय उपस्थित रहे।

समारोह अध्यक्ष पद्मभूषण राजश्री बिरला ने अपने वक्तव्य के ज़रिए साबित किया कि उन्हें कला, साहित्य और संस्कृति से गहरा अनुराग है। 97 वर्ष के ग़ज़लकार नंदलाल पाठक ने पुरस्कार के औचित्य पर प्रकाश डाला। सभागार में नंदलाल पाठक के कई चुनिंदा शेरों को ख़ूबसूरत पेंटिंग की तरह पेश किया गया था।  कार्यक्रम की भव्यता किसी कॉर्पोरेट कंपनी के आयोजन जैसी थी मगर रचनात्मकता किसी साहित्य उत्सव जैसी थी।

इस कार्यक्रम के माध्यम से दो नए पुरस्कारों की शुरुआत के साथ मुंबई में एक नए रचनात्मक माहौल का आगाज़ हुआ। दीपावली अवकाश और छठ उत्सव की दस्तक के बावजूद जिस उमंग और उत्साह के साथ इस पुरस्कार समारोह में श्रोताओं ने अपनी मौजूदगी दर्ज कराई वह अविस्मरणीय है। इनमें कला, साहित्य और व्यवसाय से जुड़े प्रमुख लोग थे यानी हर श्रोता अपने आप में विशिष्ट था। बिड़ला उद्योग समूह की श्रीमती राजश्री बिड़ला की प्रेरणा से स्थापित  साहित्यायन फाउंडेशन मुंबई का यह प्रथम आयोजन था। हिंदी काव्य साहित्य में विशिष्ट योगदान के लिए वरिष्ठ ग़ज़लकार दीक्षित दनकौरी को नंदलाल पाठक साहित्य पुरस्कार (₹ पांच लाख) और युवा ग़ज़लकार अभिषेक कुमार सिंह को नंदलाल पाठक प्रतिभा पुरस्कार (₹ एक लाख) मुम्बई में आयोजित एक साहित्य समारोह में मुख्य अतिथि सुधांशु त्रिवेदी (सांसद) ने दोनों रचनाकारों को पुरस्कार प्रदान करके सम्मानित किया।

ग़ज़लकार दीक्षित दनकौरी ने “ग़ज़ल दुष्यंत के बाद” (चार खंड) संकलन का संपादन किया है जिसमें एक हज़ार से अधिक ग़ज़लकार शामिल हैं। यह एक महत्वपूर्ण कार्य है। दूसरी तरफ़ पिछले 16 सालों से लगातार ग़ज़ल कुंभ का आयोजन करके उन्होंने ग़ज़ल के पक्ष में अच्छा माहौल बनाया है। अपने वक्तव्य में उन्होंने कहा कि वे पुरस्कार राशि का उपयोग निजी हित के लिए नहीं बल्कि ग़ज़ल के हित के लिए करेंगे।

अपने दो ग़ज़ल संग्रहों के ज़रिए ग़ज़लकार अभिषेक ने बेहतर संभावनाओं का संकेत दिया है। फ़िलहाल हम जिन वैश्विक चुनौतियों, वैचारिक संक्रीणताओं, धार्मिक उन्माद और प्रकृति के प्रकोप का सामना कर रहे हैं उनका प्रतिबिंब अभिषेक की ग़ज़लों में दिखाई देता है। अभिषेक ने इस बात पर ज़ोर दिया कि ग़ज़ल के विकास के लिए सामूहिक प्रयास की ज़रूरत है।

इस अवसर पर पाठक जी का ग़ज़ल संग्रह “जीवन एक ग़ज़ल है” का भी लोकार्पण  हुआ जिसके लिए वाणी प्रकाशन के मुखिया अरुण माहेश्वरी भी मौजूद थे। कार्यक्रम के समपान के बाद पाठकजी की पुस्तक की खरीदी के लिए उमड़ी भीड़ से ऐहसास हुआ कि पाठकजी और उनका रचनाकर्म मुंबई के साहित्यप्रेमियों के लिए क्या महत्व रखता है।

 श्री नंदलाल पाठक ने कहा कि देश में बिड़ला परिवार ने साहित्य संस्कृति, धर्म और परोपकार की ऐसी मिसालें कायम की है जिसका लाभ कई  पीढ़ियों से लोगों को मिल रहा है। उन्होंने कहा कि बिड़ला परिवार जो मंदिर बनवाता है उसमें देवता की मूर्ति का पता तो तब चलता है जब कोई मंदिर तक पहुँचता है लेकिन दूर से देखने वाले उसे बिड़ला मंदिर ही कहते हैं, कोई समाज किसी उद्योगपति को ऐसा सम्मान दे तो समझा जा सकता है कि उस उद्योगपति का समाज के प्रति क्या भाव है।

वर्ली, मुम्बई के फोर सीज़न्स होटल के बैंक्वेट हाल में आयोजित इस भव्य व गरिमामयी कार्यक्रम में हिंदी ग़ज़ल न सिर्फ़ दिखाई दी बल्कि सुनाई भी दी। इसे साहित्य की छोटी मोटी घटना मान कर अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए। बिड़ला परिवार शीर्ष व्यवसायी होने  के  साथ ही  स्वतन्त्रता   आंदोलन से लेकर धर्म, संस्कृति और शिक्षा के क्षेत्र में जो योगदान है उसी क्रम में श्रीमती राजश्री बिड़ला ने एक अध्याय साहित्य का भी जोड़ दिया है और अपने गुरू और हिंदी के जानेमाने ग़ज़लकार नंदलाल पाठक के नाम से सम्मान और पुरस्कार का सिलसिला शुरू किया है।

बीजेपी के फायरब्रांड प्रवक्ता  व कार्यक्रम के मुख्य अतिथि सांसद सुधांशु त्रिवेदी के रूप में उद्बोधन में एक अलग ही अंदाज़ में नज़र आए. सारगर्भित बात करके ताली बटोर कर ले गए। उन्होंने अपनी प्रत्युत्पन्नमति, संस्कृत श्लोकों, हिंदी कविताओं और गजलों से ऐसा समाँ बांधा कि उपस्थित श्रोता मंत्रमुग्ध होकर उन्हें सुनते रहे। अपने सुदीर्घ वक्तव्य में आचार्य मम्मट, वाल्मीकि, सुमित्रानंदन पंत, अटल बिहारी वाजपेई और नंदलाल पाठक की काव्य पंक्तियों को उद्धृत किया- “ज़हर पीता हुआ हर आदमी शंकर नहीं होता/ न जब तक आदमी इंसान हो शायर नहीं होता।”

सुधांशु जी को -” राष्ट्रीयता के आयाम” पर अपने विचार व्यक्त करना थे। अपने वक्तव्य को पूर्णता प्रदान करते हुए उन्होंने इस विचार को रेखांकित किया कि राष्ट्र जीवंत चेतना का प्रतीक होता है जिसे न काटा जा सकता है और न बांटा जा सकता है। उन्होंने ऐतिहासिक व आज के मौजूद प्रमाणों के साथ कहा कि पूरी दुनिया में चीन से लेकर कंबोडिया और इंडोनेशिया व जापान तक हिंदू संस्कृति के चिन्ह आज भी जीवित हैं और हम दावे से कह सकते हैं कि ये देश हमारी संस्कृति के अंग हैं।


साहित्यायन फाउंडेशन के इस प्रथम साहित्य समारोह में प्रो नंदलाल पाठक के ग़ज़ल संग्रह “जीवन एक ग़ज़ल है” का लोकार्पण किया गया। बात संचालन की की जाए तो देवमणि पाण्डेय ने अपने अभिनव अंदाज व सटीक ग़ज़लों के माध्यम से पूरे कार्यक्रम को एक रसभरी शाम में बदल दिया।

इस अवसर पर आयोजित ग़ज़ल संध्या में सुश्री पूनम विश्वकर्मा, सुमन जैन, अभिषेक कुमार सिंह, देवमणि पांडेय, दीक्षित दनकौरी और नंदलाल पाठक ने अपनी ग़ज़लों का पाठ किया। प्रतिष्ठित गायिका वृषाली बियानी ने नंदलाल पाठक की दो ग़ज़लों की संगीतमय प्रस्तुति की। अंत में वाणी प्रकाशन के निदेशक अरुण माहेश्वरी ने आभार व्यक्त किया। इस ग़ज़ल पाठ के श्रोताओं में मुम्बई महानगर के कई लेखकों, पत्रकारों और कलाकारों के साथ उद्योगपति कुमार मंगलम बिरला, उद्योगपति सुश्री किरण बजाज और सांसद सुधांशु त्रिवेदी भी मौजूद थे।

साभार : HINDIMEDIA.IN
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