सोमवार, 29 सितंबर 2025

मोलियर के प्रसिद्ध नाटक कंजूस का मंचन

  मोलियर के प्रसिद्ध नाटक कंजूस का मंचन

हंसी ठहाकों के बीच चित्रनगरी संवाद मंच मुंबई में मोलियर के मशहूर नाटक 'कंजूस' का मंचन हुआ। बारिश की आशंका के बावजूद 'कंजूस' के कारनामों पर ठहाका लगाने के लिए अच्छी तादाद में दर्शक पधारे और उन्होंने इस कॉमेडी नाटक का जमकर लुत्फ़ उठाया। ख़ुशी की बात यह है कि दशकों में कुछ बच्चे भी मौजूद थे और उन्हें भी इस प्रस्तुति में भरपूर आनंद आया। केशव गोरे स्मारक ट्रस्ट गोरेगांव के मृणालताई हाल में मंचित इस नाटक में रंगगर्मी विजय कुमार और उनके साथी कलाकारों का अभिनय ज़बरदस्त रहा। 


'कंजूस' की कहानी मिर्ज़ा शखावत बेग़ (विजय कुमार) नामक एक अमीर, लेकिन अत्यंत लालची बुज़ुर्ग के इर्द-गिर्द घूमती है। वह अपने पैसे से बहुत प्यार करता है। उसका लालच इतना बढ़ जाता है कि वह अपने बच्चों की ख़ुशी, प्यार और भविष्य की भी परवाह नहीं करता। वह अपने बेटे फारूक़ की प्रेमिका मरियम से ख़ुद शादी करना चाहता है और अपनी बेटी अज़रा का विवाह एक अमीर लेकिन बुज़ुर्ग व्यक्ति से कराना चाहता है।


कहानी में तब अद्भुत मोड़ आता है जब मिर्ज़ा बेग़ का छुपा हुआ धन चोरी हो जाता है, जिससे वह पागलों की तरह व्यवहार करने लगता है। बी.एम. शाह द्वारा निर्देशित कंजूसी और लालच जैसे गंभीर विषय पर आधारित इस क्लासिक कॉमेडी को रंगकर्मी विजय कुमार ने हास्य के माध्यम से जिस पुरलुत्फ़ तरीक़े से पेश किया है वह बेहद क़ाबिले तारीफ़ है। मिर्ज़ा बेग़ के चरित्र की सनक, उनके संवाद और ख़ासकर नौकरों के साथ उनकी नोंक-झोंक दर्शकों को ख़ूब हँसाती है। 


मिर्ज़ा बेग़ (कंजूस) का चरित्र सबसे मज़ेदार और चुनौतीपूर्ण है जो दर्शकों को बाँधे रखता है। विजय कुमार ने इसके लिए बॉडी लैंग्वेज़ का ज़बरदस्त इस्तेमाल किया है। कई बार उनकी देह भाषा दर्शकों से ताली बजवाती है। नाटक के बाक़ी सभी पात्रों ने अपनी अपनी भूमिका को सराहनीय ढंग से अंजाम तक पहुंचाया है। 

कुल मिलाकर, 'कंजूस' फ्रांसीसी नाटककार मोलियर के कालजयी नाटक का एक सफल हिंदी रूपांतरण है। कहा जाता है कि सन् 1963 में हज़रत आवारा ने इसका हिंदी रूपांतरण किया था। यह नाटक आज भी हास्य और व्यंग्य के माध्यम से लोभ-लालच के बुरे प्रभावों पर प्रकाश डालता है। मनोरंजक प्रस्तुति के कारण दर्शकों ने इसे ख़ूब पसंद किया। नाटक के अंत में विजय कुमार ने श्रोताओं से संवाद किया और अपना 'मन बसिया' गीत भी सुनाया। 


28 सितंबर स्वर कोकिला लता मंगेशकर का जन्मदिन है। दशकों ने उन्हें आदर के साथ याद किया। गायिका नाज़नीन ने उनकी पावन स्मृति में उनकी गाई हुई एक ग़ज़ल सुनाई जिसे मजरुह सुलतानपुरी ने लिखा है। अंत में डॉ मधुबाला शुक्ल ने आभार व्यक्त किया। 


इस अवसर पर दर्शकों में कई प्रतिष्ठित रंगकर्मी मौजूद थे। इनमें जयंत जी, हरीश जी, राजेश जादव, प्रमोद सचान, सोनू पाहूजा, राजकुमार कनौजिया और शाइस्ता ख़ान शामिल थे। रचनाकार जगत से आभा बोधिसत्व, अंबिका झा, मंजू शर्मा, अनिल गौड़, हेमंत शर्मा, राजू मिश्र कविरा और अनुज वर्मा उपस्थित थे। 


आपका : देवमणि पांडेयस

सम्पर्क : 98210 82126