शुक्रवार, 18 मार्च 2011

कुछ ख़्वाब सजाने से : देवमणि पांडेय की ग़ज़ल


देवमणि पांडेय की ग़ज़ल

कुछ ख़्वाब सजाने से, कुछ ज़ख़्म छुपाने से
रिश्ता तो मुहब्बत का निभता है निभाने से

रस्मों को बदलने की ज़िद मँहगी पड़ी लेकिन
जीने का मज़ा आया टकराके ज़माने से

ये प्यार वो जज़्बा है तासीर अजब जिसकी
मिलता है मज़ा इसमें घर-बार लुटाने से

रुस्वाई से चाहत का रिश्ता ही पुराना है
छुपता ही नहीं दिल का ये दाग़ छुपाने से

गलियों में भटकने की आदत है हमें अबतक
मिलते हैं यहीं अक्सर कुछ दोस्त पुराने से


मधुप शर्मा के ग़ज़ल  संग्रह का लोकार्पण अभिनेता इरफ़ान ख़ान और डॉ चंद्रप्रकाश द्विवेदी ने किया।


देवमणि पांडेय : 98210-82126

3 टिप्‍पणियां:

सुभाष नीरव ने कहा…

आपके ये दोहे तो कमाल के हैं। बार बार पढ़ने को मन करता है। बधाई !

pran sharma ने कहा…

AAPKE DOHON KE RANGON SE TUN TO
KYA MUN BHEE RANG GAYAA HAI .
KASH , AAPKEE MADHUR VANI MEIN
SUNE HOTE .

सुनील गज्जाणी ने कहा…

namaskaar 1
khob surat doho ke liue badhai !
sadhuwad !