मंगलवार, 1 जून 2010

कथाकार आबिद सुरती उर्फ़ ढब्बूजी पचहत्तर के हुए

देवमणि पाण्डेय, आर.के.पालीवाल, आबिद सुरती, दिनकर जोशी, साजिद रशीद, प्रतिमा जोशी, सुधा अरोड़ा


आबिद सुरती का सम्मान समारोह 

नमक-काली मिर्च जैसे खिचड़ी बाल, बेतरतीब दाढ़ी, आदिदास या नाइकी छाप एक 'हेप' टीशर्ट या टॉप, कमर पर कसी चौड़ी बेल्ट में अटका सनग्लास का वॉलेट, घिसी फेडेड जीन्स और एक खूबसूरत सा झोला लिए पीठ बिल्कुल सीधी रखकर अठारह साल के लड़के के अंदाज़ में झूमता हुआ चलता सत्तर पार का एक लहीम सहीम, कोई हरफनमौला शख्स नज़र आ जाए तो समझ लें कि वह आबिद सुरती है जिनके भीतर का ढब्बू जी हमेशा उनके साथ साथ इतराता चलता है। आबिदजी का यह हुलिया बयान किया कथाकर सुधा अरोड़ा ने। आबिद सुरती के 75 वें जन्म दिन के अवसर पर आबिद सुरती का सम्मान समारोह और उन्हीं पर केंद्रित शब्दयोग के विशेषांक का लोकार्पण हिन्दुस्तानी प्रचार सभा मुम्बई के सभागार में 28 मई 2010 को आयोजित हुआ। इस अवसर पर समाज सेवी संस्था ‘योगदान’ के सचिव आर.के.अग्रवाल ने आबिद सुरती की पानी बचाओ मुहिम के लिये दस हजार रुपये का चेक भेंट किया। सम्मान स्वरूप उन्हें शाल और श्रीफल के बजाय उनके व्यक्तित्व के अनुरूप कैपरीन (बरमूडा) और रंगीन टी शर्ट भेंट किया गया। आबिद ने पूछा- इसे पहनाएगा कौन ? तो श्रोता मुक्त भाव से हँस पड़े। संचालक देवमणि पांडेय ने जवाब दिया- बच्चे बड़े हो जाते हैं तो अपने कपड़े ख़ुद पहनते हैं ! सभागार में ठहाका फूट पड़ा।

कार्यक्रम की शुरुआत में आर.के.पालीवाल की आबिद सुरती पर लिखी लम्बी कविता ‘आबिद और मैं’ का पाठ फिल्म अभिनेत्री एडीना वाडीवाला ने किया। बीस-बाईस साल की दिखने वाली इस अभिनेत्री ने जब 75 साल के आबिद को ‘आबिद भाई’ कहकर सम्बोधित किया तो श्रोताओं में हँसी फूट पड़ी। एडीना की टूटी-फूटी हिंदी में ऐसी मासूमियत घुली थी कि सुनने वालों को काफ़ी मज़ा आया। सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार शरद जोशी की एक चर्चित रचना ‘मैं, आबिद और ब्लैक आउट’ का पाठ उनकी सुपुत्री एवं सुपरिचित अभिनेत्री नेहा शरद ने स्वर्गीय शरद जोशी के अंदाज़ में प्रस्तुत करके हास्य-व्यंग्य का अदभुत महौल रच दिया।


आर.के.पालीवाल और आबिद सुरती

संचालक देवमणि पांडेय ने आबिद सुरती को घुमक्कड़, फक्कड़ और हरफ़नमौला रचनाकार बताते हुए निदा फ़ाज़ली के एक शेर के हवाले से उनकी शख़्सियत को रेखांकित किया-

हर आदमी मे होते हैं दस बीस आदमी
जिसको भी देखना हो कई बार देखना


समाज सेवी संस्था ‘योगदान’ की त्रैमासिक पत्रिका शब्दयोग के इस विषेशांक का परिचय कराते हुए इस अंक के संयोजक प्रतिष्ठित कथाकार आर. के. पालीवाल ने कहा कि आबिद सुरती बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। कथाकार और व्यंग्यकार होने के साथ ही उन्होंने कार्टून विधा में महारत हासिल की है, पेंटिंग मे नाम कमाया है, फिल्म लेखन किया है और ग़ज़ल विधा में भी हाथ आजमाये हैं। ‘धर्मयुग’ जैसी कालजयी पत्रिका में 30 साल तक लगातार ‘कार्टून कोना ढब्बूजी’ पेश करके रिकार्ड बनाया है। इसीलिये इस अंक का संयोजन करने में भी काफी मशक्कत करनी पड़ी है क्योंकि आबिद सुरती को समग्रता मे प्रस्तुत करने के लिये उनके सभी पक्षों का समायोजन करना ज़रूरी था।

आबिद सुरती से सवाल पूछते हुए वरिष्ठ गुजराती साहित्यकार दिनकर जोशी

हिंदी साहित्यकार श्रीमती सुधा अरोड़ा ने आबिद सुरती से जुड़े कुछ रोचक संस्मरण सुनाये। उन्होंने ‘हंस’ में छपी आबिद जी की चर्चित एवम् विवादास्पद कहानी ‘कोरा कैनवास’ की आलोचना करते हुए कहा कि आबिद जैसी नेक शख़्सियत से ऐसी घटिया कहानी की उम्मीद नही थी। उर्दू साहित्यकार साजिद रशीद और मराठी साहित्यकार श्रीमती प्रतिमा जोशी ने भी आबिद जी की शख़्सियत पर प्रकाश डाला। वरिष्ठ गुजराती साहित्यकार दिनकर जोशी ने आबिद सुरती के साथ बिताये लम्बे साहित्य सहवास को याद करते हुए कहा कि आबिद पिछले कई सालों से अपने निराले अंदाज में लेखन मे सक्रिय हैं। यही उनके स्वास्थ्य एवम बच्चों जैसी चंचलता और सक्रियता का भी राज़ है।
श्रोताओं के प्रश्नों का उत्तर देते हुए आबिद सुरती


श्रोताओं के प्रश्नों का उत्तर देते हुए आबिद सुरती ने कहा कि मेरे सामने हमेशा एक सवाल रहता है कि मुझे पढ़ने के बाद पाठक क्या हासिल करेंगे। इसलिए मैं संदेश और उपदेश नहीं देता। आजकल मैं केवल प्रकाशक के लिए किताब नहीं लिखता और महज बेचने के लिए चित्र नहीं बनाता। मेरी पेंटिंग और मेरा लेखन मेरे आत्मसंतोष के लिए है। भविष्य में जो लिखूंगा अपनी प्रतिबद्धता (कमिटमेंट) के साथ लिखूंगा। श्रोताओं की फरमाइश पर आबिद जी ने अपनी एक ग़ज़ल का पाठ किया-

साथ तेरे है वक़्त भी तो ग़म नहीं
दिन कभी तो रात मेरी जेब में है
है न रोटी दो वक़्त की आबिद मगर
जहां सारा आज तेरी जेब में है


सुनकर सभागार में सन्नाटा छा गया। न कोई वाह हुई और न कोई आह हुई। इस सन्नाटे को तोड़ते हुए संचालक देवमणि पांडेय ने कहा कि आबिद जी की ग़ज़ल सुनकर मुनव्वर राना का शेर याद आ गया –

ग़ज़ल तो फूल से बच्चों की मीठी मुस्कराहट है
ग़ज़ल के साथ इतनी रुस्तमी अच्छी नहीं होती


और सन्नाटा ठहाकों की गूँज में खो गया।
इस आयोजन में आबिद सुरती के बहुत से पाठकों एवम् प्रशंसकों के साथ मुंबई के साहित्य जगत से कथाकार ऊषा भटनागर, कथाकार कमलेश बख्शी, कथाकार सूरज प्रकाश , कवि ह्रदयेश मयंक, कवि रमेश यादव, कवि बसंत आर्य, हिंदी सेवी जितेंद्र जैन (जर्मनी), डॉ.रत्ना झा, ए.एम.अत्तार और चित्रकार जैन कमल मौजूद थे। प्रदीप पंडित (संपादक: शुक्रवार), डॉ. सुशील गुप्ता (संपादक: हिंदुस्तानी ज़बान), मनहर चौहान (संपादक: दमख़म), डॉ. राजम नटराजन पिल्लै (संपादक: क़ुतुबनुमा), दिव्या जैन (संपादक: अंतरंग संगिनी), मीनू जैन (सह संपादक: डिग्निटी डाइजेस्ट) ने भी अपनी उपस्थिति से कार्यक्रम की गरिमा बढ़ाई ।


आपका-

देवमणि पांडेय

सम्पर्क : बी-103, दिव्य स्तुति, 
कन्या पाडा, गोकुलधाम, फ़िल्म सिटी रोड, 
गोरेगांव पूर्व, मुम्बई-400063, 98210 82126 

10 टिप्‍पणियां:

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

आदरणीय आबिद जी को मेरा प्रणाम। उन के डब्बू जी को देख देख ही हम बड़े हुए।

Rajeev Bharol ने कहा…

आबिद जी के डबू जी के तो हम बचपन से FAN हैं.
प्रणाम आबिद जी.

पंकज मिश्रा ने कहा…

badhai.

रवि रतलामी ने कहा…

आबिद सुरती को समर्पित रचनकार की एक पोस्ट - काली किताब यहाँ पढ़ें -

http://rachanakar.blogspot.com/2010/06/blog-post_02.html

नीरज गोस्वामी ने कहा…

मुझे दुःख इस बात का है के देश में सिर्फ एक ही आबिद सुरती क्यूँ है? दस बारह होते तो शायद ही कोई दुखी होता...ऐसी विराट शख्शियत को सलाम...
नीरज

सुनील गज्जाणी ने कहा…

aadar jog shri aabid surai jee ko janam din ki ''aakharkalash'' ke pathako aur hum sab ki aur se hardik badhai,
saadar

www.navincchaturvedi.blogspot.com ने कहा…

lage raho dev bhai

तिलक राज कपूर ने कहा…

आबिद सुरती और डब्‍बू जी मेरे लिये पर्याय रहे हैं बचपन। काश इनके उस समय के कार्टून्‍स का कोई संकलन आम आदमी की पहुँच में होता।

Rajeev Bharol ने कहा…

आबिद जी से मुझे एक शिकायत है.. डब्बू जी के कारण मेरी कक्षा २ की परीक्षा खराब हो गई थी. हुआ ये की पड़ोस में एक अंकल थे उनके घर धर्मयुग आया करती थी. घर से मैं निकला परीक्षा के लिए और रास्ते में रुक गया उनके घर धर्मयुग के लिए. उनकी अलमारी(बड़ी सी) में बैठ कर पुराने डब्बू जी पढता रहा. घर वाले समझे की मैं स्कूल में हूँ और स्कूल में अध्यापिका जी चिंतित हो रही थीं. उन्होंने पता किया, खोज हुई तो मैं डब्बूजी पढता पाया गया..

अच्छी बात यह रही की परीक्षा मेरे लिए फिर से ली गयी.

लता 'हया' ने कहा…

बेहतरीन काम कर रहे हैं अपने ब्लॉग के ज़रिये .साहित्यिक गतिविधियों की जानकारी भी पाठकों तक पहुंचाना ज़रूरी है .काश आज के बच्चे भी 'ढब्बू जी' जैसे उम्दा - स्तरीय कार्टून से वाकिफ़ होते .