ज़फ़र गोरखपुरी के गीत
ज़फ़र गोरखपुरी की जड़ें गाँव में हैं। इसलिए खेत, बाग़, पनघट, नदी, तालाब, किसान, फ़सल, चौपाल, सावन भादों वग़ैरह ज़फ़र के एहसास का अटूट हिस्सा हैं। और यही उनका सबसे बड़ा ख़ज़ाना भी है। इन्हें पढ़ने वाला शख़्स गाँव पहुँच जाता है। ज़फ़र का अंदाज़ दिल को छू लेने वाला अंदाज़ है। उनके गीतों में इंसानी जज्ब़ात और एहसासात की बेक़रार लहरे हैं। वहाँ इंसानी पीड़ा, गम़ की धीमी-धीमी आँच, समाजी वाक़यात की हलकी, गहरी परछाइयाँ और ज़िंदगी की लड़ाई में पीछे छूट गए इंसान का दुख-दर्द साँस लेता है। मिलन और जुदाई के रंग भी इनके गीतों में हैं लेकिन इनके यहाँ ये सारी चीज़ें सामाजिक सरोकार के साथ हाज़िर होती हैं।
उनके गीत साफ़, सुरीले, और बामानी हैं। मुझे ये कहने में कोई झिझक नहीं है कि उर्दू-हिंदी के ख़ज़ाने में ज़फ़र के गीत क़ीमती इज़ाफ़ा हैं, बल्कि यूँ कहा जाए कि ये गीत एक ऐसे मोड़ का पता देते हैं जहाँ से गीतों का एक नया क़ाफ़िला आगे की ओर रवाना होगा। ज़फ़र गोरखपुरी ने कई लोकप्रिय फ़िल्मों में गीत लिखे हैं। ‘किताबें बहुत सी पढीं होंगी तुमने / कभी कोई चेहरा भी तुमने पढ़ा है’ (बाज़ीगर), ‘ये आईने जो तुम्हें कम पसंद करते हैं / इन्हें पता है तुम्हें हम पसंद करते हैं’ (तमन्ना), ‘और आहिस्ता कीजिए बातें, धड़कनें कोई सुन रहा होगा’ (दि स्टोलन मूमेंट) जैसे स्तरीय और सुपरहिट गीत लिखने वाले ज़फ़र गोरखपुरी चाहते हैं कि उन्हें फ़िल्म के हवाले से नहीं बल्कि अदब के हवाले से जाना जाए। -देवमणि पांडेय
(1) लाल लाल मिट्टी
हरे भरे
गाँव की ...... लाल लाल मिट्टी
बच गए रेवड़ सलामत हैं द्दप्पर
मिट्टी में खेलेंगे बच्चे बरसभर
सरहद से घूम गई
बाढ़ सखी आकर
करने से बच गई बाल बाल मिट्टी
-लाल लाल मिट्टी
खेतों पे सूरज का लावा सा छलका
क़तरा पसीने का माथे से ढलका
साजन तू छू ले
तोहर बोझ हल्का
खाँची में थोड़ी सी और डाल मिट्टी
-लाल लाल मिट्टी
गोरी खजूर तले बैठी हुई है
गुमसुम है चुप चुप है खोई हुई है
गौने की तारीख़
पक्की हुई है
हवा लट उड़ाए , हुए गाल मिट्टी
हरे-भरे
गाँव की ...... लाल लाल मिट्टी
(2) फ़ोन पर गोरी
सर पे पल्लू है
और
हाथ में फ़ोन है
फ़ोन पर गोरी साजन से बातें करे
ख़त पहुंच जाएगा, शायद ऐसा नहीं
डाक वालों का कोई भरोसा नहीं
ख़त मिले न मिले
सोचकर जी डरे
फ़ोन पर गोरी साजन से बातें करे
हेलो हेलो सजन.......
कुछ सुना आपने.......
फ़ोन क्या मोबाइल भी है गाँव में
कार आकर खड़ी नीम की छाँव में
हाट-बाज़ार सब
शहर जैसे भरे
फ़ोन पर गोरी साजन से बातें करे
हेलो हेलो पिया
सुन रहे हो न तुम......
बाबा बीमार हैं, फ़स्ल आई नहीं
हाथ ख़ाली हैं बस में दवाई नहीं
रात सर्दी से
दादा ठिठरकर मरे
फ़ोन पर गोरी साजन से बातें करे
(3) ख़ुशबू- मैंने तुझको देखा
चिड़िया ने बच्चे के आगे
चोंच से दाना फेंका
ख़ुशबू
मैंने तुझको देखा
चम्पा सारे गाँव की बेटी
तन पर ब्याह का जोड़ा
आँगन की कच्ची मिट्टी ने
लाला दुशाला ओढ़ा
छेड़, शरारत, हल्दी,मेंहदी
जो भी करो सब थोड़ा
राधा के हाथों में ढोलक, तान उड़ाए ज़ुलेखा
ख़ुशबू
मैंने तुझको देखा
एक लड़का परदेस को जाए
सारा घर बेक़ाबू
काँधे पर ख़्वाबों की गठरी
उजले शहर का जादू
बच्चे, बूढ़े,टोला-मोहल्ला
सबकी आंख में आँसू
तपते रिश्ते, छाँव दुआ की, आशीर्वाद का टेका
ख़ुशबू
मैंने तुझको देखा
हैवानों का गोल कहीं से
बस्ती भीतर आया
ख़ून उड़ा, धरती थर्राई
आसमान चिल्लाया
हमसाए ने हमसाए के
बच्चे को लिपटाया
दुख-सुख के रिश्ते से छोटी दीन-धरम की रेखा
ख़ुशबू
मैंने तुझको देखा
(4) किधर गई बारिश
किधर गई बारिश
किधर गई बारिश
चूनर भिगोकर
अगिन मन में बोकर
चोरों सी कैसी गुज़र गई बारिश
किधर गई बारिश
ऊँचे पहाड़ों की गलियों से आई
बालों से उलझी, बदन में समाई
छाती को चीरा
तनमन को फूँका
आँखों में आकर ठहर गई बारिश
किधर गई बारिश
माटी ज़ुबां मुँह से बाहर निकाले
पेड़ों के जिस्मों पे फूलों के छाले
अम्बर पे घूमें
नीचे न उतरें
लगता है प्यासों से डर गई बारिश
किधर गई बारिश
अच्छी भली थी बसा ध्यान में क्या
जाने हवा ने कहा कान में क्या
नहरों से बचती
नालों से बचती
दरिया में सीधे उतर गई बारिश
किधर गई बारिश
ओ री सखी ऐसी क्या थी लड़ाई
अबके तो तन भी जलाने न आई
कोई बताए
समझ में न आए
ज़िंदा है बारिश कि मर गई बारिश
किधर गई बारिश
(5) बादल में गिनती की बूंदें
जब दिल ने ये जाना साजन
कच्चे हैं सब बंधन
मैंने
ध्यान में तुमको बाँधा
जा न सकोगे, अब दरवाज़ा पूरा खुले या आधा
कोहरा था पलकों के नीचे
धुंध जमी थी मन पर
आज तो बस आँखें ही आँखें
उगी हैं सारे तन पर
कहाँ छुपोगे, हर कोने से देख रही है राधा
मैंने
ध्यान में तुमको बांधा
वक़्त ने पल पल दामन पकड़ा
जग ने हाँक लगाई
सिवा तुम्हारी आवाज़ों के
और न कुछ सुन पाई
अब चाहे बदनामी दो तुम या राखो मर्यादा
मैंने
ध्यान में तुमको बांधा
दिल पर ऐसे छम छम बरसो
जैसे बरसे पानी
धानी चूनर भीगके साजन
और हो जाए धानी
बादल में गिनती की बूंदें मन की प्यास ज़ियादा
मैंने
ध्यान में तुमको बाँधा
(6) जीवन तू क्या जाने
तन भोगी
मन जोगी
जीवन तू क्या जाने हम पर क्या कुछ बीती होगी
तन माँगे है छप्पर छाया
कपड़ा, दाना-पानी
मन को इनसे लाग नहीं कुछ
मन की अलग कहानी
मन जनमों से चंदन जैसा तन जनमों का रोगी
तन सौदागर लोभ का मारा
माल गिने धन जोड़े
मन पागल बस दर्द बटोरे
बाक़ी चीजें छोड़े
तन को बस एक अपनी चिंता मन सबका सहयोगी
मन सीमाएं तोड़ना चाहे
तन अपने में सिकुड़ा
दो पाटों के बीच में सारा जीवन टुकड़ा-टुकड़ा
सोचो इस संसार में हमने कैसे बसर की होगी
तन भोगी
मन जोगी
देवमणि पांडेय : 98210-82126
4 टिप्पणियां:
राग और जोग में डूबी कविताएं तन मन दोनों आप्लावित कर देती हैं. बहुत बहुत सुन्दर। जफर गोरखपुरी जी को इन सुन्दर रचनाओं के लिए व आपको इस मनभावन प्रस्तुति के लिए आभार।
-शैल अग्रवाल
यही कहूँगा
अद्भुत अद्भुत अद्भुत
आप बहुत अच्छा कारी कर रहे हैं पाण्डेय जी
घनाक्षरी समापन पोस्ट - १० कवि, २३ भाषा-बोली, २५ छन्द
ZAFAR GORAKHPURI KE GEETON KAA
NAYAPAN MAN KO CHHOO GAYAA HAI .
UNKE SARAS GEETON KO PADHWAANE
KE LIYE DEVMANI PANDEY JI KAA
AABHAAR .
जफर गोरखपुरी जी के गीत तो अच्छे हैं ही।
आपको 'खुशबू की लकीरें'पुस्तक के प्रकाशन पर हार्दिक शुभकामनायें।
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