गुरुवार, 25 मार्च 2010

उम्मीद-ए-रोशनी क़ायम है लेकिन भाई गाँधी से

कवि देवमणि पाण्डेय, कथाकार आर.के.पालीवाल, न्यायमूर्ति श्री चन्द्रशेखर धर्माधिकारी, डॉ. सुशीला गुप्ता


गांधी जी की प्रसिद्ध कृति हिन्द स्वराज पर संगोष्ठी 

महात्मा गांधी से पूछा गया- क्या आप तमाम यंत्रों के ख़िलाफ़ हैं ? उन्होंने उत्तर दिया- मैं यंत्रों के ख़िलाफ़ नहीं हूँ मगर यंत्रों के उपयोग के पीछे जो प्रेरक कारण है वह श्रम की बचत नहीं है, बल्कि धन का लोभ है। इस लिए यंत्रों को मुझे परखना होगा। सिंगर की सीने की मशीन का मैं स्वागत करूँगा। उसकी खोज के पीछे एक अदभुत इतिहास है। सिंगर ने अपनी पत्नी को सीने और बखिया लगाने का उकताने वाला काम करते देखा। पत्नी के प्रति उसके प्रेम ने, ग़ैर ज़रूरी मेहनत से उसे बचाने के लिए, सिंगर को ऐसी मशीन बनाने की प्रेरणा दी। ऐसी खोज करके सिंगर ने न सिर्फ़ अपनी पत्नी का ही श्रम बचाया, बल्कि जो भी ऐसी सीने की मशीन ख़रीद सकते हैं, उन सबको हाथ से सीने के उबाने वाले श्रम से छुड़ाया। सिंगर मशीन के पीछे प्रेम था, इस लिए मानव सुख का विचार मुख्य था। यंत्र का उद्देश्य है- मानव श्रम की बचत। उसका इस्तेमाल करने के पीछे मकसद धन के लोभ का नहीं होना चाहिए।

यह रोचक प्रसंग महात्मा गांधी की चर्चित पुस्तक ‘हिंद स्वराज’ का है जिसे प्रकाशित हुए सौ वर्ष हो गए हैं और अब पूरी दुनिया में इसके पुनर्मूल्यांकन का दौर चल रहा है। सुभाष पंत के सम्पादन में निकलने वाली दिल्ली की साहित्यिक पत्रिका शब्दयोग और मुम्बई की संस्था हिन्दुस्तानी प्रचार सभा के संयुक्त तत्वावधान मे हिन्द स्वराज की समकालीन प्रासंगिकता पर एक संगोष्ठी हिन्दुस्तानी प्रचार सभा के सभागार में सोमवार २२ मार्च २०१० को आयोजित की गई जिसकी अध्यक्षता न्यायमूर्ति श्री चन्द्रशेखर धर्माधिकारी ने की। एक समर्पित गाँधीवादी होने के साथ-साथ धर्माधिकारीजी ने दस सालों तक महात्मा गांधी के साथ आज़ादी के आंदोलन में सक्रिय भागीदारी भी की थी। महात्मा गांधी के ‘हिन्द स्वराज’ पर केंद्रित समाज सेवी संस्था योगदान की त्रैमासिक पत्रिका शब्दयोग के इस विषेशांक का परिचय कराते हुए संगोष्ठी के संचालक देवमणि पाण्डेय ने महात्मा गांधी के योगदान को अकबर इलाहाबादी के शब्दों में इस तरह रेखांकित किया-

बुझी जाती थी शम्मा मशरिकी, मगरिब की आँधी से
उम्मीद-ए-रोशनी क़ायम है लेकिन भाई गाँधी


कथाकार डॉ. सूर्यबाला, कवयित्री रेखा मैत्र ( अमेरिका ), हिंदीसेवी डॉ.रत्ना झा, कथाकार कमलेश बख्शी, गाँधीवादी हंसाबेन

शब्दयोग के अतिथि सम्पादक प्रतिष्ठित कथाकार आर.के.पालीवाल ने इस अंक की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालते हुए कहा कि महात्मा गांधी के गुरु श्री गोपालकृष्ण गोखले ने ‘हिंद स्वराज’ को ‘पागलपन के किन्हीं क्षणों में लिखी किताब’ कहकर खारिज़ कर दिया था मगर विश्व प्रसिद्ध लेखक टॉलस्टाय को इसमें ‘क्रांतिकारों विचारों का पुंज’ दिखाई पड़ा और उन्होंने इसकी तारीफ़ करते हुए कहा कि यह एक ऐसी किताब है जिसे हर आदमी को पढ़ना चाहिए । पालीवालजी ने बताया कि ‘हिंद स्वराज’ के ज़रिए गाँधीजी ने पुस्तक लेखन में एक नया प्रयोग किया है। प्रश्नोत्तर शैली में लिखी गई इस पुस्तक में उन्होंने अपने विचारों से असहमति जताने वाले सभी लोगों को ‘पाठक’ के प्रश्नों में प्रतिनिधित्व दिया है। इस तरह उन्होंने उन सब संशयों, विरोधों और असहमति के स्वरों को एक साथ अपने उत्तरों से संतुष्ट करने की पुरज़ोर कोशिश की है जो गाँधीजी के समर्थकों, विरोधियों या स्वयं गाँधीजी के मन में उपजे थे । कवि शैलेश सिंह ने हिंद स्वराज के प्रमुख अंशों का पाठ किया । हिंदुस्तानी प्रचार सभा की मानद निदेशक डॉ. सुशीला गुप्ता ने अपने आलेख में हिंद स्वराज के प्रमुख बिंदुओं पर रोशनी डाली ।

न्यायमूर्ति चन्द्रशेखर धर्माधिकारी ने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि दुनिया के कई देशों में हिंद स्वराज की सौवीं जयंती मनाई जा रही है। अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा से लेकर कई देशों के राष्ट्राध्यक्ष हिंद स्वराज में अपनी आस्था व्यक्त कर चुके हैं । मेरे विचार से हर हिंदुस्तानी को महात्मा गांधी की इस किताब को अवश्य पढ़ना चाहिए और इस पर चिंतन करना चाहिए । गांधी जी ने अगर मशीनों, वकीलों और डॉक्टरों के खिलाफ़ लिखा तो उनके पास इसके लिए तर्कसंगत आधार भी था ।

कार्यक्रम की शुरुआत में सुश्री चंद्रिका पटेल ने गांधी जी का प्रिय भजन ‘वैष्णव जन तो तेने कहिए’ प्रस्तुत किया । हिंदुस्तानी प्रचार सभा के संयुक्त मानद सचिव सुनील कोठारे ने आभार व्यक्त किया । इस आयोजन में मुंबई के साहित्य जगत से कथाकार डॉ. सूर्यबाला, कथाकार कमलेश बख्शी, कवि अनिल मिश्र, कथाकार ओमा शर्मा, कवि तुषार धवल सिंह, कवि ह्रदयेश मयंक, कवि हरि मदुल, कवि रमेश यादव, डॉ. रत्ना झा और महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी के कार्यकारी अध्यक्ष श्री नंदकिशोर नौटियाल मौजूद थे । अमेरिका से पधारी कवयित्री रेखा मैत्र और मुख्य आयकर आयुक्त द्वय श्री बी.पी. गौड़ और श्री एन.सी. जोशी ने भी अपनी उपस्थिति से कार्यक्रम की गरिमा बढ़ाई । कार्यक्रम का समापन राष्ट्रगान से हुआ। अंत में संगोष्ठी के संचालक कवि देवमणि पाण्डेय ने महात्मा गाँधी पर लिखी मुम्बई के वरिष्ठ कवि प्रो.नंदलाल पाठक की कविता की कुछ लाइनें उद्धरित कीं-

महामानव ! तुम्हें जो देवता का रूप देने पर उतारू हैं
कदाचित वे यहाँ कुछ भूल करते हैं
तरसते देवता जिसकी मनुजता को , उसे हम देवता बनने नहीं देंगे

न जब तक सीख लेता विश्व जीने की कला तुमसे
तुम्हें जीना पड़ेगा आदमी बनकर महामानव


एक उल्लेखनीय बात यह भी है कि गांधीजी की दुर्लभ पुस्तक ‘हिंद स्वराज’ को शब्दयोग ने अपने इस विशेषांक में पूरा प्रकाशित कर दिया है। शब्दयोग का संकल्प है कि ‘हिंद स्वराज’ को कम से कम दो हज़ार विद्यार्थियों तक ज़रूर पहुँचाया जाए।

आपका
देवमणिपांडेय

सम्पर्क : बी-103, दिव्य स्तुति,
कन्या पाडा, गोकुलधाम, फिल्मसिटी रोड,

गोरेगांव पूर्व, मुम्बई-400063, 98210-82126

4 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

gandhi ji ke hind svaraj ko kuchh dino pahale naya gyanoday ne reprint kiya tha .shabdayog ne bhi ise reprint kar yuva peedhee ke liye upalabdh karaya hai.yah prasannata aur santosh ki baat hai. iski 10 pratiya mujhe bhi chahiye,dehradun me kuchh vishist logon me vitaran ke liye.abharee hounga.buddhinath mishra/deodha house/galee-5/vasant vihar enclave/dehradun-248006 mo.919412992244

लता 'हया' ने कहा…

आदरणीय देव जी
वाटिका में मेरे मुताल्लिक़ अपने जो राय व्यक्त की है उसके लिए मैं आपकी बेहद आभारी हूँ और जो दुआएं दी हैं वो अगर मेरे ब्लॉग पर आकर देते तो और भी आभारी होती ,मंचों से हटकर ब्लॉग में मुलाक़ात करने का अपना ही मज़ा है .
शुक्रिया ---------लता 'हया '

hind swaraj se avgat karwane ke liye dhanyawad.

बेनामी ने कहा…

सौ वर्ष पूर्व प्रकाशित 'हिन्द स्वराज' का पुनर्मूल्यांकन होना हमारे लिए गर्व की बात है.इस अच्छी और सुन्दर खबर के लिए धन्यवाद.

Ashok Kumar pandey ने कहा…

हिंद स्वराज का एक और मूल्यांकन

http://economyinmyview.blogspot.in/2009/09/blog-post_26.html