शुक्रवार, 17 जनवरी 2014

देवमणि पांडेय ग़ज़ल : ये चाह कब है मुझे





देवमणि पांडेय ग़ज़ल

ये चाह कब है मुझे सब का सब जहान मिले 
मुझे तो मेरी ज़मीं, मेरा आसमान मिले 

कमी नहीं है सजावट की इन मकानों में 
सुकून भी तो कभी इनके दरमियान मिले 
   
ये मेरा शहर या ख़्वाबों का कोई मक़्तल है 
क़दम-क़दम पे लहू के यहाँ निशान मिले 

हर इक ज़ुबां पे है तारी अजब-सी ख़ामोशी 
हर इक नज़र में मगर अनगिनत बयान मिले 

जवां हैं ख़्वाब क़फ़स में भी जिन परिंदों के 
मेरी दुआ है उन्हें फिर से आसमान मिले

हो जिसमें प्यार की ख़ुशबू, मिठास चाहत की
हमारे दौर को ऐसी भी इक ज़बान मिले  
  

रवि 2 फरवरी 2014 की शाम को रवींद्र नाट्य भवन इंदौर में संगीतकार राजेश रोशन  और मंच पर संचालक देवमणि पांडेय


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