शनिवार, 22 जनवरी 2022

अभिनेता अरुण वर्मा का इंतक़ाल

 

एक कुंवारे अभिनेता का दुखद अंत


अभिनेता अरुण वर्मा की जाने की उम्र नहीं थी मगर 20 जनवरी 2022 की सुबह वे चले गए। उनके गृहनगर भोपाल में उन्होंने अंतिम सांस ली। यहां के रंग मंडल में बतौर रंगकर्मी उन्होंने काफ़ी योगदान किया था। बा. व. कारंत के साथ कई नाटकों में वे अभिनय का इतिहास रच चुके थे।

'मुझसे शादी करोगी' फ़िल्म में आपने अभिनेता अरुण वर्मा को जादूगर के रूप में देखा। 'हीरोपंती' में टाइगर के जीजा के रूप में उन्हें आप देख चुके हैं। फ़िल्म 'किक' में वे एक ऐसे चौकीदार की भूमिका में थे जिसे घर से दस लाख की नकदी निकलती है। हिना, प्रेम ग्रंथ, खलनायक, डकैत आदि बड़े बैनर की कई फ़िल्मों में वे एक अच्छे अभिनेता के रूप में सराहनीय भागीदारी कर चुके हैं।


कोरोना की दूसरी लहर के बाद अरुण वर्मा मुम्बई लौटे। एक मेगा सीरियल में उनकी रात्रिकालीन शूटिंग शुरू हो गई। कुछ दिन बाद भोपाल से उनका फ़ोन आया कि रात में शूटिंग और दिन में स्क्रीन टेस्ट दे दे कर उनको पर्याप्त नींद नहीं मिली और तबीयत ख़राब हो गई। फिर भी वे इस बात से ख़ुश थे कि उन्हें अपने बुज़ुर्ग पिता की सेवा करने का अवसर मिल रहा है।

बज़्मे इंशाद दिल्ली जाने से पहले 17 दिसंबर 2021 को मैंने अरुण को फ़ोन किया। मैंने उनसे मशवरा मांगा कि दिल्ली के मुशायरे में क्या मैं काली शर्ट और काले पैंट के ऊपर सफ़ेद कोट पहन सकता हूं। वे झट से बोले- हां पहनिए और कंधे पर एक काला दुपट्टा लटका लीजिए। मैंने उनकी सलाह पर अमल किया। दिल्ली से लौटकर मैंने उन्हें फ़ोन किया तो उन्होंने फ़ोन नहीं उठाया। वे पहले से ज़्यादा अस्वस्थ हो गए थे। नया साल मुबारक बोलने के लिए भी मैंने फ़ोन किया था मगर उन्होंने नहीं उठाया।


अरुण वर्मा मुझसे कविता सुनाकर मशवरा मानते थे और मैं उनसे पोशाक के बारे में। उनके मशवरे पर ही मैंने लिनेन का सफ़ेद कोट बनवाया था। लोखंडवाला मार्केट में घूमते हुए उनकी नज़र एक जींस जैकेट पर पड़ी। बोले इसे ख़रीद लीजिए। मैंने ख़रीद लिया और पूछा- इसे कब पहनूं। वे बोले- जब आप हवाई यात्रा करते हैं तो आते जाते समय जींस के पैंट पर जींस की जैकेट पहनिए। इसी तरह एक बार उनकी नज़र एक लाल ब्लेज़र पर गई। उनके सुझाव पर मैंने उसे ख़रीद लिया। उनके कहने से मैंने लाल जैकेट भी ख़रीदी। उनका कहना था कि जब आप मंच पर जाते हैं तब हर बार आपका नया लुक दिखाई पड़ना चाहिए। इस तरह लिबास के बारे में मैंने उनसे बहुत कुछ सीखा। वे कहते थे- जूतों पर ख़ास निगाह रखो। आप स्टेज पर जाते हैं तो सबसे पहले लोग आप का जूता देखते हैं। मैंने हमेशा उनके मशवरे का पालन किया।

लगभग 90 फिल्में करने के बावजूद अरुण वर्मा मुंबई में अपना मकान नहीं बना पाए। वे हमेशा पैसे की तंगी में रहे। मैंने उन्हें सुझाव दिया कि वे मेरे साथ कवि सम्मेलन में कविता पाठ करें ताकि कुछ आमदनी तो हो। मेरा सुझाव मानकर अभिनेता अरुण वर्मा ने कुछ कवि सम्मेलनों में भागीदारी की। उन्हें मानदेय भी प्राप्त हुआ। एक बार मैंने उन्हें मालाड के एक गर्ल्स कॉलेज में कविता पाठ के लिए आमंत्रित किया। मानदेय की समुचित व्यवस्था थी। मगर अरुण वर्मा ने हाथ जोड़ लिए। बोले देवमणि जी, मुझे माफ़ कर दीजिए। मैं बहुत बड़ी ग़लती करने जा रहा था। मैं तो एक अभिनेता हूं। मुझे कवि सम्मेलन में कवि के रूप में कविता पाठ नहीं करना चाहिए। कविता पाठ मेरी शख्स़ियत के लिए हानिकारक है। आपसे अनुरोध है कि आगे जब कभी आप मुझे बुलाएं तो बतौर अभिनेता बुलाएं। दक्षिण मुंबई के बिरला मातुश्री सभागार में राजस्थानी महिला मंडल का कार्यक्रम था। मैंने अभिनेता अरुण वर्मा को मुख्य अतिथि के रूप में बुलाया।


अरुण वर्मा की शादी नहीं हुई। उन्होंने मान लिया था कि अब उनकी शादी नहीं होगी। अब वे 62 साल के हो चुके थे। एक दिन मेरे कुरेदने पर उन्होंने बताया कि लड़कियां मुंबई में उन्हीं लड़कों से शादियां करना चाहती है जिनके पास अपना मकान हो। मैंने कहा आपको ऐसी लड़की तलाश करनी चाहिए जिसके पास अपना मकान हो। उन्होंने कहा कि दो बार ऐसी लड़कियां मिली थीं मगर बात जमी नहीं। पहली लड़की ने उनसे कहा था कि आपको घर ख़र्च के लिए हर महीने मेरे खाते में 25 हज़ार जमा करने होंगे। दूसरी लड़की ने प्रस्ताव रखा था कि अगर वे उसके छोटे भाई की शिक्षा का सारा खर्च उठाएं तो वह शादी के लिए तैयार है। उन्होंने दोनों की शर्ते नहीं मानीं और कुंवारे रह गए।

अरुण के आग्रह पर कभी-कभी मैं चाय पीने उनके रूम पर चला जाता था। वहां वे कभी मुगले आज़म के संवाद सुनाते और कभी फ़िल्म यहूदी के। वे ठेठ भोपाली भाषा का भी नमूना पेश करते। साथ ही मारवाड़ी, सिंधी, पंजाबी आदि व्यापारियों के अंदाज़ ए बयां को भी सामने लाते। वे बेहद प्रतिभाशाली अभिनेता थे मगर उनको प्रतिभा के अनुसार काम नहीं मिला। फ़िल्म लेखक निर्देशक रूमी जाफ़री उनके ख़ास मित्रों में हैं लेकिन अपने बारे में कुछ बात करने में उन्हें बहुत संकोच होता था।

अरुण वर्मा एक अच्छे चित्रकार भी थे। ख़ासतौर से वे स्केच बहुत अच्छा बनाते थे। कोरोना के पहले लॉकडाउन में वे प्रतिदिन एक स्केच बनाते थे। अभिनय भी एक नशा है। एक बार इंसान इसमें डूब जाए तो बाहर नहीं निकल पाता। अरुण वर्मा को भी लगता था कि आने वाले कल में कुछ बहुत अच्छा होने वाला है। पिछली मुलाक़ात में उन्होंने कहा था- तीन चार फ़िल्मों में अच्छी भूमिका की बात चल रही है। इस बार पैसा मिलेगा तो मीरा रोड में एक छोटा सा फ्लैट खरीद लूंगा। मगर ऐसा नहीं हो पाया। अपने साथ अपना यह अधूरा ख़्वाब लेकर वे इस दुनिया से हमेशा के लिए विदा हो गए।

अलविदा अरुण वर्मा!

आपका-
देवमणि पांडेय
सम्पर्क : बी-103, दिव्य स्तुति, कन्या पाडा, गोकुलधाम, फ़िल्मसिटी रोड, गोरेगांव पूर्व, मुम्बई-400063 , 98210 82126

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