बुधवार, 20 जनवरी 2016

देवमणि पांडेय की ग़ज़ल : फूल महके यूं फ़िज़ा में



देवमणि पांडेय की ग़ज़ल

फूल महके यूं फ़िज़ा में रुत सुहानी मिल गई 
दिल में ठहरे एक दरिया को रवानी मिल गई 

कुछ परिंदों ने बनाए आशियाने शाख़ पर
गाँव के बूढ़े शजर को फिर जवानी मिल गई

आ गए बादल ज़मीं पर सुनके मिट्टी की सदा
सूखती फ़सलों को पल में ज़िंदगानी मिल गई 

घर से निकला है पहनकर जिस्म ख़ुशबू का लिबास
लग रहा है गोया इसको रातरानी मिल गई 

जी ये चाहे उम्र भर मैं उसको पढ़ता ही रहूँ
याद की खिड़की पे बैठी इक कहानी मिल गई 

माँ की इक उँगली पकड़कर हँस रहा बचपन मेरा
एक अलबम में वही फोटो पुरानी मिल गई 

जैन समाज के एक कार्यक्रम में देवमणि पांडेय (मुम्बई 2014)



देवमणि पांडेय : 98210-82126




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