मंगलवार, 20 जनवरी 2015

देवमणि पांडेय की ग़ज़ल : साहिल पर जो खड़े हुए थे





         देवमणि पांडेय की ग़ज़ल 

साहिल पर जो खड़े हुए थे डूब गए हैरानी में
मोती उसके हाथ लगे जो उतरा गहरे पानी में 
 
दुख और ग़म के बीच ज़िंदगी कितनी प्यारी लगती है
जैसे कोई फूल खिला हो काँटों की निगरानी में 

दुनिया जिसको दिन कहती है तुम कहते हो रात उसे 
कुछ सच की गुंजाइश रक्खो अपनी साफ़बयानी में

जिसको देखो ढूँढ रहा है काश ज़िंदगी मिल जाए
जाने कैसी कशिश छुपी है इस पगली दीवानी में
   
हुशियारी और चालाकी में डूब गई है ये दुनिया

फिर भी सारा ज्ञान छुपा है बच्चों की नादानी में

चित्र (बाएं से दाएं): यात्री रंग समूह के खुला मंच़ कार्यक्रम में कवि संतोष कुमार झा, फ़िल्म निर्देशक अदीप चंदन, अभिनेत्री दिव्या जगदले, रंगकर्मी पारमिता चटर्जी, रंगकर्मी अशोक शर्मा, संगीतकार कुलदीप सिंह, रंगकर्मी ओम कटारे, शायर देवमणि पांडेय और कवि पुनीत कुमार पांडेय (मुम्बई 6 सितम्बर 2014)



देवमणि पांडेय : 98210-82126



2 टिप्‍पणियां:

Rajendra kumar ने कहा…

आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (28.11.2014) को "लड़ रहे यारो" (चर्चा अंक-1811)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है।

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत उम्दा प्रस्तुति...