हमको ज़हीन लोग हमेशा अज़ीज़ थे : जावेद अख़्तर
जब इंसान की शोहरत की बुलंदियों को छूने लगती है तब उसके बारे में कई क़िस्से कहानियां चल पड़ते हैं। एक रियल्टी शो में शायर जावेद अख़्तर से सवाल पूछा गया- क्या आप और शबाना आज़मी में कभी लड़ाई-झगड़ा भी होता है ? जावेद बोले - दरअसल हमारे पास झगड़े के लिए वक़्त ही नहीं हैं। महीने में 20 दिन शबाना बाहर रहती हैं। महीने में 10 दिन मैं बाहर रहता हूँ। संयोगवश कभी कभार एयरपोर्ट पर आमना सामना हो जाता है तो हलो-हाय कर लेते हैं। जब साथ होंगे ही नहीं तो झगड़े कब होंगे।
ख़ुश शक्ल भी है वो ये अलग बात है मगर
हमको ज़हीन लोग हमेशा अज़ीज़ थे
मुंबई के पांच सितारा होटल सहारा स्टार में मुनव्वर राना की किताब 'नए मौसम के फूल' का लोकार्पण सहारा समय के न्यूज डायरेक्टर उपेंद्र राय ने आयोजित किया था। संचालन की ज़िम्मेदारी मुझे सौंपी गई थी। समारोह में भरोसा न्यास इंदौर के संयोजक अरविंद मंडलोई मौजूद थे। उन्होंने मुझसे निवेदन किया कि इंदौर में चार केंद्रीय मंत्रियों की मौजूदगी में जावेद अख़्तर को भरोसा अवार्ड से नवाज़ा जाएगा। आप इस कार्यक्रम का संचालन कर दीजिए।
जावेद अख़्तर को भरोसा आवार्ड
इंदौर के शांतिमंडप में बड़े घराने की शादियां सम्पन्न होती हैं। 11 फरवरी 2010 को दोपहर 12 बजे वहां सचमुच शादी जैसा माहौल था। चाट, चायनीज़, और इटालियन पास्ता से लेकर रजवाड़ी भोजन तक के स्टाल सजे हुए थे। जावेद अख़्तर की रचनात्मक उपलब्धियों पर केंद्रित पुस्तक ‘जैसे जलता दिया’ का यह लोकार्पण समारोह था। बतौर संचालक मैंने माइक संभाला। मंच पर बैठे राजनेता बलराम जाखड़, जस्टिस जे.एस .वर्मा, शायर मुनव्वर राणा, संस्थाध्याक्ष शरद डोशी और सत्कार मूर्ति जावेद अख़्तर मंडप की रंगीनियां और ख़ुशलिबास भीड़ देखकर मुस्करा कर रहे थे। यह पता लगाना मुश्किल था कि सामने जो लोग बरातियों की तरह सजधज कर आए हैं उन्हें शायरी से ्मुहब्बत है या स्वादिस्ट व्यंजनों से लगाव है। मौक़े की नज़ाकत देखते हुए मैंने भूमिका बांधी। इस वक़्त मुंबई में गगनचुम्बी इमारतें बन रही हैं। हम इस ऊँचाई पर गर्व कर सकते हैं। मगर ऐसी चीजों के साइड इफेक्ट भी होते हैं। इस मौज़ू पर बीस साल पहले ही जावेद अख़्तर ने एक शेर कहकर हमें आगाह कर दिया था -
ऊँची इमारतों से मकां मेरा घिर गया
कुछ लोग मेरे हिस्से का सूरज भी खा गये
यह शेर सुनकर लोगों ने तालियां बजाईं। शाम को अभय प्रशाल स्टेडियम में लगभग दस हज़ार लोगों की भीड़ थी। मैंने फिर भूमिका बांधी कि कैसे एक शायर अपने समय से आगे होता है और इंदौर शहर के भौतिक विकास का ज़िक्र करते हुए मैंने जावेद अख़्तर का एक शेर कोट कर दिया -
इस शहर में जीने के अंदाज़ निराले हैं
होठों पे लतीफे हैं, आवाज़ में छाले हैं
तालियां बज गईं। मंच पर पद्मश्री गोपलदास नीरज और पदमश्री बेकल उत्साही के साथ ही चार केंद्रीय मंत्री भी मौजूद थे- बलराम जाखड़, फ़ारूक़ अब्दुल्ला, सलमान ख़ुर्शीद और श्रीप्रकाश जायसवाल। जावेद अख़्तर को एक लाख रुपये के भरोसा आवार्ड से सम्मानित किया गया। जावेद अख़्तर ने ‘ये वक़्त क्या है’ नज़्म सुनाकर श्रोताओं से भरपूर दाद वसूल की।
दर्द के फूल खिलते हैं बिखर जाते हैं
ज़ख़्म कैसे भी हों कुछ रोज़ में भर जाते हैं
जावेद अख़्तर के टाक शो में तसलीमा नसरीन
अगले दिन 12 फरवरी 2010 को इंदौर के रवींद्र नाट्यगृह में एक टॉक शो का आयोजन था। जावेद अख़्तर ने ऐलान कर दिया कि सभागार में मौजूद कोई भी आदमी कोई भी सवाल पूछ सकता है। सफेद कुर्ते-पाज़ामे में सजधज कर आए जावेद तेज़ रोशनी में काफ़ी चमक रहे थे। एक मोटे आदमी ने पहला सवाल किया- आप इतने तरो-ताज़ा कैसे रहते हैं ? सवाल सुनकर लोग हंसने लगे। जावेद ने जवाब दिया- अगर आप मेरी तरह रात में देर से सोएं, सुबह देर से उठें और जो भी अंट-शंट मिले खाएं तो आप भी मेरी तरह तरो-ताज़ा दिखने लगेंगे। ज़ाहिर है फिर से ठहाका लगा।
हमसे दिलचस्प कभी सच्चे नहीं होते हैं
अच्छे लगते हैं मगर अच्छे नहीं होते हैं
एक पत्रकार ने सवाल किया- आपको भी सरकारी सुरक्षा क्यों दी गई थी। जावेद ने बताया- यह सुरक्षा न तो मुझे बाल ठाकरे के कारण मिली थी और न ही राज ठाकरे के कारण। दरअसल यह सुरक्षा मुझे अपने ही मुस्लिम भाइयों के कारण मिली। हुआ यह कि मुंबई के एक मुस्लिम संगठन ने फतवा जारी कर दिया कि अगर तसलीमा नसरीन मुंबई आएंगी तो उनका सर काट दिया जाएगा। यह फतवा पढ़कर मैंने ख़ासतौर से तसलीमा को मुंबई बुलवाया। एक अदबी समारोह में उनका सम्मान और भाषण हुआ। वे सकुशल वापस गईं। हमारे मुस्लिम भाइयों की नाराज़गी को देखते हुए सरकार ने मुझे छ: महीने तक सरकारी सुरक्षा मुहैया कराई।
अपनी वजहे-बरबादी सुनिए तो मज़े की है
ज़िंदगी से यूँ खेले, जैसे दूसरे की है
उर्दू भाषा पर पूछे गए एक सवाल के जवाब में जावेद अख़्तर ने ज़ोर देकर कहा कि उर्दू मुसलमानों की भाषा नहीं है। यह नार्थ इंडिया की भाषा है और इसमें वहां का कल्चर समाया हुआ है। अगर इसे मुसलमानों तक सीमित किया गया तो यह नार्थ इंडिया के कल्चर से महरुम हो जाएगी।
फ़िल्म जगत में साम्प्रदायिकता के सवाल पर जावेद अख़्तर ने कहा कि बॉलीवुड का वर्क कल्चर साम्प्रदायिकता से बहुत ऊपर है। आप एक फ़िल्म में एक गाना देखते हैं तो उसके पीछे गीतकार, संगीतकार और गायक से लेकर कम से कम दस लोगों की मेहनत होती है। हर आदमी इसी भावना से काम करता है कि गीत को कामयाबी मिले। एक ही लक्ष्य होने के कारण दिल में साम्प्रदायिकता की भावना आती ही नहीं। अगर हमारे देश के सारे नेता देश की कामयाबी को ही अपना लक्ष्य बना लें तो हमारे देश से साम्प्रदायिकता ख़त्म हो जाएगी।
समूचे शहर को जामू सुगंध कर दूंगा
मेरे पास जावेद अख़्तर का जो काव्य संकलन ‘तरकश’ है उस पर उनके हस्ताक्षर के नीचे 1-1-1996 तारीख़ है। उस दौरान जावेद को कविता पाठ के लिए काफी जगहों पर बुलाया गया और वे गए। आईडीबीआई बैंक, कफ परेड, मुंबई के एक कवि सम्मेलन में शिरकत करके हम लोग वापस लौट रहे थे। जावेद की कार में मैं और कवि सूर्यभानु गुप्त भी थे। चर्चगेट में इरोस सिनेमा पर फ़िल्म की जो होर्डिंग लगी थी उस पर नीचे लिखा था- दिग्दर्शक जामू सुगंध। जावेद ने कहा- यार ये नाम बहुत अच्छा है। इसके साथ क़ाफ़िया क्या लगेगा ? सूर्यभानु जी बोले- चंद, बंद, छंद चल जाएगा। मसलन- शराफ़त मैं बंद करा दूंगा। जावेद बोल पड़े-
बस आज से ही शराफ़त मैं बंद कर दूंगा
समूचे शहर को जामू सुगंध कर दूंगा
जावेद की मां सफ़िया अख़्तर ने अपनी किताब ‘ज़ेरे-लब’ में ज़िक्र किया है कि जावेद ने 5 साल की उम्र से ही तुकबंदी शुरु कर दी थी। अब तो वे बात बात में अपना यह हुनर दिखा देते हैं। एक दिन मैं उनसे मिलने जुहू उनके घर गया। मिलते ही उन्होंने पूछा- और निदा साहब के क्या हाल हैं! मैंने बताया- रविवार को ‘जनसत्ता सबरंग’ में उनकी एक ग़ज़ल प्रकाशित हुई है -
कहीं कहीं से हर चेहरा तुम जैसा लगता है
जावेद अख़्तर ने दूसरा मिसरा सुनाने का मौक़ा मुझे नहीं दिया। झट से दूसरा मिसरा लगा दिया-
ऐसी ग़ज़लें छपवाने में पैसा लगता है
सन् 1996 में अपने काव्य संग्रह 'तरकश' को जावेद अख़्तर ने अपनी आवाज़ में रिकॉर्ड करके ऑडियो बुक बनवाई। चर्चगेट मुम्बई के एसएनडीटी कॉलेज में उनका कविता पाठ था। उन्होंने हाल के बाहर अपनी किताब के पोस्टर लगवाए। बुक और ऑडियोबुक का स्टाल लगवाया। कविता पाठ के समय कहा- विदेशों में लोग घर का सामान ख़रीदने की लिस्ट बनाते हैं तो उसमें उन किताबों के नाम भी शामिल कर लेते हैं जिन्हें ख़रीदना होता है। मैं चाहता हूं कि हिंदुस्तान में भी राशन की दुकान पर किताबों की बिक्री हो तो बेहतर होगा।
जावेद अख़्तर के फ़िल्मी कैरियर से आप सब भलीभांति वाक़िफ़ हैं। बतौर गीतकार उनकी पहली फ़िल्म थी 'साथ साथ' मगर 'सिलसिला' पहले रिलीज़ हो गई। फ़िल्म साथ साथ में कुलदीप सिंह का संगीत था। फ़िल्म के सारे गीत पसंद किए गए। "तुमको देखा तो ये ख़याल आया" गीत बहुत मशहूर हुआ। निर्देशक रमन कुमार की फ़िल्म 'साथ साथ' (1985) के समय जावेद हिंदी सिनेमा के स्टार राइटर थे। कुलदीप सिंह नए संगीतकार थे। उन्होंने कुलदीप सिंह का क्लास ले लिया। उन्हें एक नज़्म दी- "ये तेरा घर ये मेरा घर"। कहा- पापा जी, इसे कम्पोज़ करके लाइए फिर देखता हूं आगे क्या करना है। कुलदीप सिंह की बनाई धुन जावेद को पसंद आई। उन्होंने फ़िल्म के सभी गाने लिखे।
फ़िल्म 'सिलसिला' में शिव हरि का संगीत है। शीर्षक गीत की धुन के अनुसार म्यूज़िक ट्रैक इतना ही था- "देखा एक ख़्वाब तो ये सिलसिले"। जावेद अख़्तर ने संगीतकार शिव हरि से म्यूजिक ट्रैक ज़रा सा तब्दील करने की गुज़ारिश की। संगीतकार उनकी बात मान गए तो ये गीत बना-
देखा एक ख़्वाब तो ये सिलसिले हुए
दूर तक निगाह में हैं गुल खिले हुए
करण जौहर ने फ़िल्म 'कुछ कुछ होता है' के गीत लिखने के लिए जावेद साहब को संपर्क किया। जावेद साहब को फ़िल्म का नाम बहुत बुरा लगा। उन्होंने साफ़-साफ़ लिखने से मना तो नहीं किया लेकिन प्यार से करण को समझाया कि इस समय मैं बहुत व्यस्त हूं। यह फ़िल्म बना लो। आगे फिर कभी साथ में काम करेंगे।
जावेद अख़्तर संगीतकारों के साथ सहयोग बनाए रखते हैं। ऐसे मौक़े कई बार आए हैं जब उन्होंने संगीतकार के कहने पर अपने लिखे गीतों में तब्दीलियां की हैं। फ़िलहाल फ़िल्म जगत का मौसम बदल गया है। अजीब तरह की फ़िल्में बन रही हैं। उनमें अजीब तरह के गीत आ रहे हैं। ऐसे माहौल में अब जावेद अख़्तर जैसे जहीन और हुनरमंद गीतकार की ज़रूरत कभी-कभी ही महसूस की जाती है।
जावेद अख़्तर की शायरी
ग़म होते हैं जहां ज़हानत होती है
दुनिया में हर शय की क़ीमत होती है
अकसर वो कहते हैं वो बस मेरे हैं
अकसर क्यूं कहते हैं हैरत होती है
ये तसल्ली है कि हैं नाशाद सब
मैं अकेला ही नहीं बरबाद सब
सबकी ख़ातिर हैं यहां सब अजनबी
और कहने को हैं घर आबाद सब
सच ये है बेकार हमें ग़म होता है
जो चाहा था दुनिया में कम होता है
ज़ख़्म तो हमने इन आँखों से देखे हैं
लोगों से सुनते हैं मरहम होता है
जिधर जाते हैं सब जाना उधर अच्छा नहीं लगता
मुझे पामाल रस्तों का सफ़र अच्छा नहीं लगता
मुझे दुश्मन से भी ख़ुद्दारी की उम्मीद रहती है
किसी का भी हो सर क़दमों में सर अच्छा नहीं लगता
मुझे दुश्मन से भी ख़ुद्दारी की उम्मीद रहती है
किसी का भी हो सर क़दमों में सर अच्छा नहीं लगता
आपका-
देवमणि पांडेय
सम्पर्क : बी-103, दिव्य स्तुति,
कन्या पाडा, गोकुलधाम, फिल्मसिटी रोड,
गोरेगांव पूर्व, मुम्बई-400063, 98210 82126
devmanipandey.blogspot.Com
9 टिप्पणियां:
वाकई आप के ब्लॉग को पढ़ कर बहुत सारी पुरानी यादें ताज़ा हो जाती हैं |
sahi kaha urdu me north ka poora culture hai aur urdu sab kii hai.
जावेद साहब के बारे में आपकी ये पोस्ट बहुत दिलचस्प है...उनकी हाज़िर जवाबी और सेन्स आफ हयूमर कमाल का है...उनकी लेखनी से निकले हर अशआर को बार बार पढने को जी करता है...जयपुर में उन्हें बहुत से कार्यक्रमों में खूब सुना है जबकि मुंबई में ये हसरत अभी तक पूरी नहीं हुई...क्या पता आपके माध्यम से ये भी कभी हो जाये...
मेरी अगले हफ्ते आने वाली पोस्ट उनके वालदैन जां निसार अख्तर साहब की शायरी पर है वक्त मिले तो जरूर पढियेगा...
नीरज
प्रिय भाई
जावेद अख्तर पर आपका संस्मरणात्मक आलेख एक ही सांस में पड़ने पर बाध्य हुआ , इसकी रोचकता और आपकी भाषा की ताज़गी का असर है की यह बातें मुझ bhullakaR की याद की हिस्सा बन गयी लगाती हैं
आपको बधाई
जन्मेजय
जावेद साहिब की शायरी को पढ़ना मुझे कभी कभी अपने आप से बात करने जैसा लगता है। बेमिसाल शायर हैं जावेद अख़्तर साह्ब। इनका हर अशआर भीतर तक स्पर्श करता है। इनकी शख़्शियत के बारे में इधर उधर पढ़ा है अब आपके द्वारा दी गई जानकारी ने भी इजाफ़ा कर दिया। आपका शुक्रिया !
आनन्द आ गया...
कभी तरकश पढ़ी थी.
आभार!
एक विनम्र अपील:
कृपया किसी के प्रति कोई गलत धारणा न बनायें.
शायद लेखक की कुछ मजबूरियाँ होंगी, उन्हें क्षमा करते हुए अपने आसपास इस वजह से उठ रहे विवादों को नजर अंदाज कर निस्वार्थ हिन्दी की सेवा करते रहें, यही समय की मांग है.
हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार में आपका योगदान अनुकरणीय है, साधुवाद एवं अनेक शुभकामनाएँ.
-समीर लाल ’समीर’
एक साहित्यकार की पहचान इससे नहीं होती कि उसने कितना कहा, उसे पहचाना जाता है उसके कहे की इस खासियत से कि पहुँचा कहॉं-कहॉं तक। जावेद साहब किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कायम इंसान हैं, उनका नाम सम्मान से लिया जाता है तो इसीलिये कि उन्होंने खूब कहा और जो भी कहा बहुत खूब कहा। जावेद साहब के लिये तो यही कह सकता हूँ कि:
मेरा तो सर भी वहाँ तक नहीं पहुँच पाता
जहॉं कदम के निशॉं आप छोड़ आये हैं।
Bahut hi badhiya Jankari Javed Akhtar sahab ke bare me. Ek aur badhiya lekh hai, Zarur Padhe:-
ईशवाणी हमारे कल्याण के लिए अवतरित की गई है , यदि इस पर ध्यानपूर्वक चिंतन और व्यवहार किया जाए तो यह नफ़रत और तबाही के हरेक कारण को मिटाने में सक्षम है ।
वेद:
समानं मन्त्रमभि मन्त्रये वः
मैं तुम सबको समान मन्त्र से अभिमन्त्रित करता हूं ।
ऋग्वेद , 10-191-3
कुरआन:
तुम कहो कि हे पूर्व ग्रन्थ वालों ! हमारे और तुम्हारे बीच जो समान मन्त्र हैं , उसकी ओर आओ ।
पवित्र कुरआन , 3-64 - शांति पैग़ाम , पृष्ठ 2, अनुवादकगण : स्वर्गीय आचार्य विष्णुदेव पंडित , अहमदाबाद , आचार्य डा. राजेन्द प्रसाद मिश्र , राजस्थान , सैयद अब्दुल्लाह तारिक़ , रामपुर
एक ब्रह्मवाक्य भी जीवन को दिशा देने और सच्ची मंज़िल तक पहुंचाने के लिए काफ़ी है ।
जो भी आदमी धर्म में विश्वास रखता है , वह यक़ीनी तौर पर ईश्वर पर भी विश्वास रखता है । वह किसी न किसी ईश्वरीय व्यवस्था में भी विश्वास रखता है । ईश्वरीय व्यवस्था में विश्वास रखने के बावजूद उसे भुलाकर जीवन गुज़ारने को आस्तिकता नहीं कहा जा सकता है । ईश्वर पूर्ण समर्पण चाहता है । कौन व्यक्ति उसके प्रति किस दर्जे समर्पित है , यह तय होगा उसके ‘कर्म‘ से , कि उसका कर्म ईश्वरीय व्यवस्था के कितना अनुकूल है ?
इस धरती और आकाश का और सारी चीज़ों का मालिक वही पालनहार है ।
हम उसी के राज्य के निवासी हैं । सच्चा राजा वही है । सारी प्रकृति उसी के अधीन है और उसके नियमों का पालन करती है । मनुष्य को भी अपने विवेक का सही इस्तेमाल करना चाहिये और उस सर्वशक्तिमान के नियमों का उल्लंघन नहीं करना चाहिये ताकि हम उसके दण्डनीय न हों । वास्तव में तो ईश्वर एक ही है और उसका धर्म भी , लेकिन अलग अलग काल में अलग अलग भाषाओं में प्रकाशित ईशवाणी के नवीन और प्राचीन संस्करणों में विश्वास रखने वाले सभी लोगों को चाहिये कि अपने और सबके कल्याण के लिए उन बातों आचरण में लाने पर बल दिया जाए जो समान हैं । ईशवाणी हमारे कल्याण के लिए अवतरित की गई है , यदि इस पर ध्यानपूर्वक चिंतन और व्यवहार किया जाए तो यह नफ़रत और तबाही के हरेक कारण को मिटाने में सक्षम है ।
आज की पोस्ट भाई अमित की इच्छा का आदर और उनसे किये गये अपने वादे को पूरा करने के उद्देश्य से लिखी गई है । उन्होंने मुझसे आग्रह किया था कि मैं वेद और कुरआन में समानता पर लेख लिखूं । मैंने अपना वादा पूरा किया । उम्मीद है कि लेख उन्हें और सभी प्रबुद्ध पाठकों को पसन्द आएगा
http://vedquran.blogspot.com/2010/05/blog-post.html
ऊँची इमारतों से मकां मेरा घिर गया
कुछ लोग मेरे हिस्से का सूरज भी खा गये
जावेद अख्तर जी का जबाव नहीं. उनके गीत हों या गजल सीधे दिल में उतर जाते हैं . उनकी सबसे बडी़ खासियत है कि वे एक सच्चे मुसलमान हैं.संप्रदायिकता को मुंहतोड़ जबाव देने वाले एक सच्चे हिन्दुस्तानी ! काश ऐसी सोच हमारे नताओं में होती. अच्छे आलेख के लिए आभार.
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