शुक्रवार, 28 नवंबर 2025

आरजे प्रीति गौड़ की अंतिम यात्रा



अलविदा प्रीति गौड़

रहने को सदा दहर में आता नहीं कोई

तुम जैसे गए ऐसे भी जाता नहीं कोई 

 में रचनाकार, कलाकार, इष्टमित्र और पारिवारिक सदस्य अच्छी तादाद में मौजूद थे। गोरेगांव के शिवधाम शमशान गृह में सभी ने नम आँखों से उन्हें अंतिम विदाई दी। वे कैंसर से पीड़ित थीं। 28 नवम्बर 2025 को सुबह 10:25 बजे मुम्बई के ऑस्कर हॉस्पिटल में उनका आकस्मिक निधन हुआ। 

प्रीति के जीवन साथी शैलेंद्र गौड़ के आँसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। उन्होंने बताया कि पिछले चार साल से प्रीति का इलाज चल रहा था। उसने किसी को बताने से मना किया था। पिछले दो साल में प्रीति कई बार चित्रनगरी संवाद मंच के कार्यक्रमों में आईं। उन्होंने कई कार्यक्रमों में हंसते मुस्कुराते हुए शिरकत की। अपने रोचक क़िस्सों से ठहाके लगवाए। मगर कभी उनके चेहरे पर कोई शिकन नहीं दिखाई पड़ी। 


साल भर पहले मेरे जन्मदिन पर शैलेंद्र के साथ प्रीति गौड़ मेरे घर आईं। वहां भी उन्होंने धूम मचाई। वे एक बेहतरीन उदघोषक होने के साथ ही अच्छी अभिनेत्री भी थीं। जब वे अभिनय के साथ कामवाली बाइयों की बातचीत सुनातीं तो लोग हंसते-हंसते लोटपोट हो जाते थे। प्रीति गौड़ को एक ज़िंदादिल, विनम्र और मिलनसार इंसान के रूप में में हमेशा याद किया जाएगा। 


मौत को स्वीकार करना ज़िंदगी की सच्चाई है। लेकिन जिस तरह प्रीति ने हंसते-हंसते मौत का सामना किया वह हम सबके लिए प्रेरणा स्रोत है।  आपके साथ कुछ तस्वीरें साझा कर रहा हूं। ये प्रीति गौड़ के हंसते खिलखिलाते जीवन की साक्षी हैं। ऐसी मधुर स्मृतियों में वह हमेशा हम सबके साथ मौजूद रहेगी। वह जहां भी रहे सुकून से रहे, हम सब की यही दुआएं हैं। 



आपका : देवमणि पांडेय

सम्पर्क : 98210 82126 

गुरुवार, 27 नवंबर 2025

गरिमा सक्सेना का ग़ज़ल संग्रह 'रोशनी के पक्ष में'


रोशनी के पक्ष में : गरिमा सक्सेना का ग़ज़ल संग्रह

ग़ज़ल के दरिया में अब तक न जाने कितना पानी बह चुका है। इसी के साथ ही रचनात्मकता के इस क़ाफ़िले में नए विचार, नए कथ्य और नए दृश्य शामिल हुए। अभिव्यक्ति की यही नवीनता ग़ज़ल की पूंजी है जो उसे और समृद्ध बनाती है। आज के दौर में ग़ज़ल की इन्हीं ख़ूबियों की साक्षी हैं गरिमा सक्सेना। श्वेतवर्णा प्रकाशन नोएडा से प्रकाशित उनके ग़ज़ल संग्रह का नाम है “रोशनी के पक्ष में”। वे अपनी ग़ज़ल के वितान में ऐसे चिंतन, मनन और अनुभव को शामिल करती हैं जो उनकी रचनात्मकता को एक नई ऊर्जा से संपन्न करते हैं। 

जो किसी को दे उजाला, उस ख़ुशी के पक्ष में, 
इस अंधेरे वक़्त में हूं रोशनी के पक्ष में। 

कभी रंगीन परदों से, कभी दिलकश नज़ारों से,
हमारा सच छुपाया जा रहा है इश्तहारों से। 

आज हम जिस आधुनिक समय में जी रहे हैं वहां ऐसी चीज़ों को अनदेखा नहीं कर सकते जो हमारे दिन प्रतिदिन के व्यवहार में दखल रखती हैं। यही कारण है कि गरिमा की ग़ज़लों में मोबाइल से लेकर इंस्टाग्राम तक शामिल हैं। सोशल मीडिया उनके यहां एक रचनात्मक ज़रूरत के तहत मौजूद है। 

उत्सव का असली मतलब अब शेष बचा क्या? 
सेल्फ़ी लेने तक ही बस मुस्काते उत्सव। 

हमारे आसपास की दुनिया में स्याह रंग अधिक हैं। बेशक़ उनकी अभिव्यक्ति होनी चाहिए मगर ज़िंदगी के कैनवास पर मुहब्बत की तस्वीर भी ज़रूरी है। गरिमा सक्सेना की ग़ज़लों में कभी-कभार दिलों के तार झंकृत करने वाले अशआर भी नज़र आते हैं। हौसलों की उड़ान और रिश्तों की गर्माहट भी दस्तक देती है- 

बाग़ में उड़ती हुई इन तितलियों को देखकर, 
एक लड़की हो गई तैयार उड़ने के लिए। 

मेरे सिर में तो दर्द है लेकिन, 
कब अकेले मैं चाय पीती हूं। 

गरिमा सक्सेना गीत, नवगीत और दोहे लिखने में सिद्धहस्त हैं। इस रचनात्मक कौशल का फ़ायदा उनकी ग़ज़लों को भी मिला है। एक तरफ़ उनकी ग़ज़लों के कथ्य में ताज़गी और सामयिकता है तो दूसरी तरफ़ अभिव्यक्ति में व्यंजना और भाषा में जीवंतता है। सृजनात्मकता के यही तेवर उन्हें विशिष्ट पहचान देते हैं। वे जिस तरह अपनी ग़ज़लों में वे समय और समाज को दर्ज करती हैं वह कौशल सराहनीय है। उदाहरण के तौर पर उनके चंद शेर देखिए- 

कहीं पे चीड़, कहीं पे चिनार रोते हैं, 
पहाड़ मर रहे हैं, देवदार रोते हैं। 

गांव से हम तो निकल आए हैं लेकिन, 
गांव निकला ही नहीं मन से हमारे। 

यह खुले बाज़ार हैं केवल कमाई के लिए, 
मौत भी बिकती यहां पर ज़िंदगी की शक्ल में। 

ज़िंदगी की विविधरंगी छवियों को क़लम बंद करने के साथ ही गरिमा मानव मन की धूप छांव को भी अपनी रचनात्मकता के दायरे में लाती हैं - 

चार बच्चों का पिता भी अपनी मां को देखकर, 
खिल उठा है फूल जैसा एक बच्चे की तरह। 

हर एक हाल या सूरत में काम आते हैं, 
जो दोस्त हैं वो ज़रूरत में काम आते हैं। 

गरिमा सक्सेना ने अपने आसमान, अपनी ज़मीन और अपनी आंखों से देखी हुई दुनिया को अपनी अभिव्यक्ति का हमसफ़र बनाया है। उसे अपनी सोच और सरोकारों से सजाया है। आम आदमी के सुख-दुख, हिम्मत और हौसले को आज़माया है। उनकी ग़ज़लें ख़ुद अपनी रोशनी से जगमगाती हैं। इस उथल-पुथल भरे समय में उम्मीद की किरण की तरह नज़र आती हैं। 

आंखों में ख़्वाब, पांवों में छालों को पालकर, 
लाई हूं मैं अंधेरे से सूरज निकाल कर। 

इस ख़ूबसूरत ग़ज़ल संग्रह के ज़रिए गरिमा सक्सेना ने बेहतर संभावनाओं का संकेत दिया है। मुझे पूरी उम्मीद है कि अपनी प्रतिभा और लगन से वे ग़ज़लों के गुलशन में कुछ नए फूल खिलाने में कामयाब होंगी। उन्हें ढेर सारी शुभकामनाएं। 


देवमणि पांडेय : बी-103, दिव्य स्तुति, कन्या पाडा, गोकुलधाम, फ़िल्मसिटी रोड, गोरेगांव पूर्व, मुम्बई-400063, 98210 82126

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सोमवार, 3 नवंबर 2025

उद्भ्रांत की आत्मकथा काली रात का मुसाफ़िर

 


चित्रनगरी संवाद मंच मुम्बई में पुस्तक चर्चा 

दिल्ली के प्रतिष्ठित कवि उद्भ्रांत की आत्मकथा "मैंने जो जिया" का तीसरा भाग 'काली रात का मुसाफ़िर' नाम से प्रकाशित हुआ है। रविवार 2 नवम्बर 2025 को चित्रनगरी संवाद मंच मुम्बई की ओर से मृणालताई हाल, केशव गोरे स्मारक ट्रस्ट, गोरेगांव में इस पुस्तक पर चर्चा का आयोजन किया गया। कवि रमाकांत शर्मा उद्भ्रांत ने इस पुस्तक के कुछ अंशों का पाठ किया। पुस्तक की रचना प्रक्रिया पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि यह आत्मकथा ख़ुद को थर्ड पर्सन में रख कर लिखी गई है। आत्मकथा लेखन में ऐसा पहली बार हुआ है। उनके इस प्रयोग को सराहा गया। 


प्रस्तावना पेश करते हुए कार्यक्रम के संयोजक कवि देवमणि पांडेय ने कहा- "सरस भाषा में लिखी हुई इस आत्मकथा में घटनाओं को रोचक तरीके से पेश किया गया है। हमेशा यह उत्सुकता बनी रहती है कि आगे क्या हुआ। सूक्ष्म विवरणों को भी उद्भ्रांत जी ने जिस कौशल के साथ दर्ज किया है वह सराहनीय है। इस कृति में कई महत्वपूर्ण रचनाकारों से संबंधित घटनाओं का उल्लेख किया गया है। इस तरह यह अपने समय का महत्वपूर्ण दस्तावेज़ बन जाती है। इस आत्मकथा में साहित्य, पत्रकारिता, शिक्षा, सिने जगत और सरकारी तंत्र मौजूद है। यानी एक दुनिया में कई दुनियां शामिल हैं। उद्भ्रांत जी ने साहस के साथ सच का सामना किया है और उसको उजागर किया है। उन्होंने लोगों की नाराज़गी और अपनी इमेज की परवाह नहीं की है। कुल मिलाकर यह आत्मकथा एक महत्वपूर्ण और रोचक कृति के रूप में याद की जाएगी।"


देवमणि जी ने प्रस्तावना में इस पुस्तक पर नामवर सिंह, ज्ञानरंजन, कर्ण सिंह चौहान और यश मालवीय की टिप्पणियों के अंश भी उद्धरित किए गए। इन विद्वानों ने कवि उद्भ्रांत के प्रमाणिक कथ्य, प्रवाहमयी भाषा और अभिव्यक्ति कौशल की तारीफ़ की है।

इस अवसर पर कवयित्री अभिनेत्री दीप्ति मिश्र ने एक सवाल उठाया कि इस आत्मकथा में दृश्य और किरदार तो मौजूद हैं  लेकिन लेखक की सोच सामने नहीं आती। कुछ विद्वानों के उद्धरण के हवाले से इस सवाल का जवाब देते हुए कवि उद्भ्रांत ने कहा कि उन्होंने तटस्थ भाव से आत्मकथा का लेखन किया है। 


कार्यक्रम की शुरूआत में शुक्रवार 31 अक्टूबर 2025 को दिवंगत दिल्ली के प्रतिष्ठित साहित्यकार रामदरश मिश्र को याद किया गया गया। धरोहर के अंतर्गत मधुबाला शुक्ल ने उनकी लोकप्रिय ग़ज़ल "बनाया है मैंने ये घर धीरे-धीरे" का पाठ किया। कविता पाठ के सत्र में तूलिका सनाढ्य, गुलशन मदान, प्रदीप गुप्ता, दीप्ति मिश्र, असीमा भट्ट, अम्बिका झा, क़मर हाजीपुरी और महेश साहू ने काव्य पाठ किया। कवि रमाकांत शर्मा उद्भ्रांत ने अपनी दो ग़ज़लें सुनाकर कार्यक्रम को पूर्णता प्रदान की। 



उद्भ्रात की आत्मकथा काली रात का मुसाफ़िर के बारे में नामवर सिंह कहते हैं कि यह गद्य नहीं, कविता है।

ज्ञानरंजन उनकी आत्मकथा की तुलना उग्र की आत्मकथा 'अपनी खबर' से करते हैं। सच भी है। उद्भ्रांत ने अपने जीवन की कड़वी सच्चाइयों को अपनी लेखनी से जिस तरह उघारा है यह मिलना मुश्किल है। 

कर्ण सिंह चौहान ने उनकी आत्मकथा की तुलना गांधी की आत्मकथा से की है। वे लिखते हैं कि उद्भ्रांत की आत्मकथा की खूबी यह है कि उसने अपने जीवन से जुड़ी किसी भी बात को छिपाया नहीं है, न उसे अपने पक्ष में गौरवान्वित करने का प्रयास किया है और कमाल की बात यह है कि इतने विस्तृत ब्यौरों के बाद भी उसमें कोई उबाऊपन और नीरसता नहीं है। 

से रा यात्री जी का कहना है कि कवि के लिए गद्य एक कसौटी है और बच्चन व उद्भ्रांत के अतिरिक्त कोई अन्य इस पर खरा नहीं उतरता। राजेन्द्र राव एवं देवेन्द्र चौबे जैसे कुछ और प्रतिष्ठित साहित्यकारों ने भी उनके लेखन को उल्लेखनीय बताया है।

यश मालवीय के अनुसार यह एक मानक आत्मकथा है, जिसमें लेखक ने एक बड़ा कालखंड समेटा है। वृत्तांत में वेगवती नदी का सा प्रवाह है, भाषा भी उतनी ही पानीदार है। यह एक न भूलने वाला दस्तावेज़ है, जिसके लिए कवि उद्भ्रांत याद किए जाएंगे क्योंकि उन्होंने विस्मरण के इस घनघोर समय में स्मरण की गंगा बहा दी है। बेशक इसे पाण्डेय बेचन शर्मा उग्र की अपनी ख़बर और बच्चन जी की आत्मकथाओं के सभी खण्डों की परंपरा में रखकर देखा जा सकता है।


 देवमणि पाण्डेय : 98210 82126              

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