चित्र में (बाएं से) : संचालक डॉ.अनंत श्रीमाली, शायर रामगोविंद अतहर, भजन सम्राट अनूप जलोटा, कवयित्री संध्या रियाज़, कवयित्री माया गोविंद, समारोह अध्यक्ष विश्वनाथ सचदेव, कवयित्री डॉ.अंजना संधीर, मुशायरे के सद्र जनाब जावेद सिद्दीक़ी और शायर देवमणि पांडेय।
लर्न हिंदी ऍण्ड हिंदी साँग का लोकार्पण
जीवंती फाउंडेशन ने शनिवार 23 अप्रैल 2016 की शाम को भवंस कल्चरल सेंटर मुम्बई के एसपी जैन सभागार में महफ़िल-ए-मुशायरा का आयोजन किया। इस अवसर पर डॉ.अंजना संधीर की किताब ‘लर्न हिंदी ऍण्ड हिंदी साँग’ का लोकार्पण भजन सम्राट अनूप जलोटा ने किया।
मुशायरे में शायर डॉ क़ासिम इमाम, माया गोविंद , रामगोविंद अतहर, देवमणि पांडेय, असद अजमेरी, आलम निज़ामी, डॉ.अंजना संधीर और संध्या रियाज़ ने शिरकत की। मुशायरे का संचालन प्रज्ञा विकास ने किया। मुशायरे की सदारत प्रतिष्ठित रंगकर्मी एवं फ़िल्म लेखक जनाब जावेद सिद्दीक़ी ने की।
फ़िल्म लेखक-निर्देशक रूमी जाफ़री, शायर हस्तीमल हस्ती और काव्य रसिक यूसुफ़ लकड़ावाला सम्माननीय अतिथि के रूप में मौजूद थे। भवंस कल्चरल सेंटर के ललित वर्मा ने स्वागत और जीवंती फाउंडेशन की अध्यक्ष माया गोविंद ने आभार व्यक्त किया। समारोह का संचालन डॉ.अनंत श्रीमाली ने किया।
दर्शक दीर्घा की पहली क़तार में प्रतिष्ठित गायिका छाया गाँगुली, श्री एवं श्रीमती करुणाशंकर उपाध्याय, कथाकार संतोष श्रीवास्तव और फ़िल्म लेखक-निर्देशक रूमी जाफ़री तथा दूसरी क़तार में संगीतकार कुलदीप सिंह, गिरीश सेटिया और अभिनेता अरुण वर्मा मौजूद थे।
देवमणि पांडेय की ग़ज़ल
खोए खोए रहते हो तुम भूल गए हो मुस्काना
इतना भी आसान नहीं है इक चेहरे पर मर जाना
छलक रहा है प्यार का सागर उसकी मस्त निगाहों से
ऐसी दिलकश आंखों को मैं क्यूं न लिख दूं मयख़ाना
महानगर के बाशिंदों तुम इसको जीना कहते हो
सुबह निकलना काम पे अपने शाम को वापस घर जाना
पाल पोस कर बड़े जतन से जिनको हमने बड़ा किया
दिल कैसे ये सहन करेगा उन सपनों का मर जाना
जो कुछ उसके पास था मेरा वो सब वापस भेज दिया
जाने क्यूँ वो भूल गया है मेरे दिल को लौटाना
भूल के अपनी क़ीमत जैसे सीप में मोती रहता है
सोच रहा हूं दिल में उसके बस ऐसे ही रह जाना
यार-दोस्तों की महफ़िल में यूं तो हो मसरूफ़ बहुत
वक़्त मिले तो कभी किसी दिन हमसे मिलने आ जाना
सुबह निकलना काम पे अपने शाम को वापस घर जाना
पाल पोस कर बड़े जतन से जिनको हमने बड़ा किया
दिल कैसे ये सहन करेगा उन सपनों का मर जाना
जो कुछ उसके पास था मेरा वो सब वापस भेज दिया
जाने क्यूँ वो भूल गया है मेरे दिल को लौटाना
भूल के अपनी क़ीमत जैसे सीप में मोती रहता है
सोच रहा हूं दिल में उसके बस ऐसे ही रह जाना
यार-दोस्तों की महफ़िल में यूं तो हो मसरूफ़ बहुत
वक़्त मिले तो कभी किसी दिन हमसे मिलने आ जाना
देवमणि पाण्डेय : 98210-82126