रविवार, 12 जुलाई 2020

डॉ उर्मिलेश : आत्मीय लहजे के लोकप्रिय ग़ज़लकार



आत्मीय लहजे के ग़ज़लकार डॉ उर्मिलेश

हिंदी काव्य विधा में ग़ज़ल कलात्मक अभिव्यक्ति का सबसे प्रभावशाली सलीक़ा है। अपने सोच की अभिव्यक्ति के लिए दुष्यंत कुमार ने इसका कारगर इस्तेमाल किया। दुष्यंत को हिंदी ग़ज़ल में मील का पत्थर माना जाता है। ग़ज़ल की भाषा कैसी हो, कथ्य क्या हो और लहजा कैसा हो इसका निर्धारण दुष्यंत कुमार की ग़ज़लों ने कर दिया। दुष्यंत कुमार ने हिंदी ग़ज़ल को ज़बान, फ़िक्र और बयान का जो तोहफ़ा दिया उससे बाद के ग़ज़लकारों को आगे बढ़ने के लिए एक राजमार्ग मिल गया। डॉ उर्मिलेश ग़ज़ल के इसी राजमार्ग पर चलने वाले ऐसे समर्थ रचनाकार हैं जो अपने अलग तेवर से पहचाने जाते हैं-

सब उसको देख देख के बाहर चले गए
वो आईना था घर में अकेला खड़ा रहा

ग़ज़ल के राजमार्ग पर चलते हुए हिंदी के जिन ग़ज़लकारों ने दुष्यंत कुमार के सिलसिले को ख़ूबसूरती से आगे बढ़ाया उनमें डॉ उर्मिलेश का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। डॉ उर्मिलेश के पास सामाजिक सरोकार की अभिव्यक्ति के लिए ख़ास नज़रिया और जीवंत भाषा के साथ एक लिरिकल लहजा है। इस लहजे के कारण उनकी ग़ज़लें पढ़ने सुनने वालों को अपने बहुत क़रीब लगती हैं।

कल न बदला वो आज बदलेगा
वक़्त अपना मिज़ाज बदलेगा

आदमी की यहाँ तलाश करो
आदमी ही समाज बदलेगा

दुष्यंत कुमार ने ग़ज़लों को सत्ता और व्यवस्था के गलियारों तक पहुंचाया। अदम गोंडवी ने ग़ज़ल को खेतों खलिहानों और मेहनतकशों तक पहुंचाया। हिंदी ग़ज़ल के इस सफ़र को आगे बढ़ाते हुए डॉ उर्मिलेश ने उसे घर आंगन की दहलीज़ में हंसते-मुस्कुराते, सुख-दुख में एक साथ सांस लेते रिश्ते-नातों तक पहुंचा दिया। 

पहले दस से पांच तक नौकर थे दफ़्तर के पिता
अब बिना पैसे के पूरे दिन के नौकर हैं पिता

मेरे बच्चे जब पिता कहते हैं ख़ुश होता हूँ मैं
इसका मतलब है कि अब भी मेरे भीतर हैं पिता

रिश्तों की इस दुनिया में वे सारे किरदार शामिल हैं जो ज़िंदगी और समाज को ख़ूबसूरत बनाते हैं। इनके साथ वक़्त का बदलता हुआ चेहरा है जिसे डॉ उर्मिलेश आईना दिखाते हैं-

अपनी तहज़ीब के जामे में रहा करते थे
हम भी बेटे कभी कॉलेज में पढ़ा करते थे

पहले ट्यूशन की दुकानें भी नहीं होती थीं
फिर भी हैरत है कि हम टॉप किया करते थे

ग़ज़ल धीमे सुर में बात करने वाली काव्यात्मक अभिव्यक्ति की एक कलात्मक विधा है। अपने रदीफ़, क़ाफ़िए और बहर के साथ ग़ज़ल हमें एक ऐसे मुक़ाम पर ले जाती है जहां से आम आदमी के स्वप्न, संघर्ष, एहसास और जज़्बात की तस्वीर नज़र आती है। आम आदमी ऐसे माहौल में ज़िंदगी बसर करता है जहाँ सत्ता है और सत्ता की राजनीति है। धर्म, मज़हब और साम्प्रदायिकता के ख़तरों से उसे आगाह करना डॉ उर्मिलेश अपना कर्तव्य समझते हैं-

बाँटकर जिस्मों को अब वो बाँटने निकले हैं दिल
फ़ैसला वो भी ग़लत था, फ़ैसला ये भी ग़लत

इस सियासत ने हमें हिन्दू - मुसलमां मानकर
तब छला वो भी ग़लत था, अब छला ये भी ग़लत

जिस दौर में आज हम जी रहे हैं उस दौर का सच आकर्षक भी हो सकता है और बदरंग भी। छोटा भी हो सकता है और बड़ा भी। डॉ उर्मिलेश की ग़ज़लों में सच को सच कहने की ईमानदारी है। इस दौर के सच की सहज अभिव्यक्ति है। बड़े से बड़े सच को ग़ज़ल में अभिव्यक्त करते हुए वे कभी लाउड नहीं होते-

हादसों पर फ़िदा हो गई
ज़िन्दगी क्या से क्या हो गई

एक सच हमने क्या कह दिया
सारी दुनिया ख़फ़ा हो गई

ग़ज़ल हमें मीरो-ग़ालिब से यानी उर्दू काव्य पम्परा से हासिल हुई है। डॉ उर्मिलेश ने अपनी ग़ज़लों को उर्दू की पुरानी तरक़ीबों और प्रतीकों से बचाया है। उसे हिंदुस्तानी रंग और लिबास से सजाया है। उर्दू शायरी में दूसरी औरत से इजहारे-इश्क़ किया जाता है। डॉ उर्मेलेश की ग़ज़लों में नज़र आने वाली औरत दाम्पत्य प्रेम की प्रतीक हिंदुस्तानी औरत है। अपना घर-आँगन सजाने वाली घरेलू औरत है- 

उसकी चूड़ी, उसकी बेंदी, उसकी चूनर से अलग
मैं सफ़र में भी न हो पाया कभी घर से अलग

पत्रिकाएं उसके पढ़ने को मैं लाया था कई
फिर भी उसने कुछ न देखा मेरे स्वेटर से अलग

अपने सोच और सरोकार को सामने लाने के लिए डॉ उर्मिलेश हमेशा ग़ज़ल के इजहार के कौशल को बरकरार रखते हैं। उनके यहाँ कोई उलझन या जटिलता दिखाई नहीं देती। सम्प्रेषणीयता उनकी ग़ज़लों का ख़ास गुण है। यही कारण है कि उनकी ग़ज़लें पाठकों में बहुत लोकप्रिय हैं। उनके कई शेर आवाम की सोच का हिस्सा बन चुके हैं। डॉ उर्मिलेश ने हिंदी ग़ज़ल को जीवंत भाषा, सामयिक सोच और आत्मीय लहजे से समृद्ध किया। ग़ज़ल की राह पर आने वाली नई नस्लों का पथ प्रशस्त करके लिए उन्होंने बेहद सराहनीय कार्य किया है। अपनी इस रचनात्मक उपलब्धि के लिए वे हमेशा याद किए जाएंगे।

आपका-
देवमणि पांडेय

सम्पर्क : बी-103, दिव्य स्तुति, 
कन्या पाड़ा, गोकुलधाम, फ़िल्म सिटी रोड, 
गोरेगांव पूर्व, मुंबई- 400063, 98210-82126
devmanipandey.blogspot.com
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