मंगलवार, 12 फ़रवरी 2013

लखनऊ में लोकार्पण : देवमणि पांडेय का ग़ज़ल संग्रह

कवि देवमणि पांडेय, पूर्व सांसद-साहित्यकार उदय प्रताप सिंह और शायर अनवर जलालपुरी

अपना तो मिले कोई का लोकार्पण लखनऊ में

मुम्बई के शायर देवमणि पांडेय के ग़ज़ल संग्रह ‘अपना तो मिले कोई’ का लोकार्पण पूर्व सांसद, साहित्यकार एवं उ.प्र. हिंदी संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष श्री उदय प्रताप सिंह ने किया। हिंदी संस्थान, हज़रतगंज, लखनऊ के प्रेमचंद सभागार में 9 फरवरी 2013 की शाम को आयोजित इस कार्यक्रम में प्रमुख अतिथि के रूप में बोलते हुए उदय प्रताप सिंह ने कहा कि हिंदी और उर्दू दरअसल एक ही भाषाएं हैं। राज दरबारों में बोली जाने वाली ज़बान को उर्दू नाम दिया गया जब कि समाज में बोली जाने वाली भाषा को हिंदी कहा गया। कवि देवमणि पांडेय की ग़ज़लों की ज़बान भी यही है। इसे आप चाहे हिंदी, चाहे उर्दू कह सकते हैं। इसी आम फ़हम ज़बान में पांडेयजी ने अपने समय और समाज की सच्चाइयों को असरदार तरीके़ से अभिव्यक्त किया है। 

कार्यक्रम के अध्यक्ष जाने-माने शायर जनाब अनवर जलालपुरी ने कहा कि देवमणि पांडेय की ग़ज़लों में एक तरफ़ तो गाँव की ज़िंदगी मुस्कराती है तो दूसरी तरफ़ शहरों का अजा़ब (दर्द) भी चहलकदमी करता दिखाई देता है। उन्होंने आगे कहा कि उर्दू के अधिकतर शायरों ने हिंदी में लिखना-पढ़ना सीख लिया है। अगर हिंदी के 25 प्रतिशत शायर भी उर्दू स्क्रिप्ट सीख लें तो दोनों ज़बानों में बहुत अच्छा तालमेल हो जाएगा और दोनों की तरक़्की़ होगी। देवमणि पांडेय ने उर्दू सीखकर इस दिशा में क़ाबिले-तारीफ़ काम किया है। 

डॉ.हारून रशीद, देवमणि पांडेय, अनवर जलालपुरी, हसन काज़मी, रशीद क़ुरेशी
कार्यक्रम की शुरूआत में कवयित्री नीतू सिंह ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की। नीतू जी ने देवमणि पांडेय की एक ग़ज़ल भी तरन्नुम में पेश की -

जो मिल गया है उससे भी बेहतर तलाश कर 
क़तरे में भी छुपा है समंदर तलाश कर

हाथों की इन लकीरों ने मुझसे यही कहा
अपनी लगन से अपना मुक़द्दर तलाश कर

शायर आमिर मुख़्तार ने भी देवमणि पांडेय की एक ग़ज़ल तरन्नुम में पेश की -

प्यासी ज़मीं थी और मैं बादल नहीं हुआ
इक ख़्वाब था मगर वो मुकम्मल नहीं हुआ

ख़ुशबू मेरी निगाह की तुझसे लिपट गई
क्या बात है कि दिल तेरा संदल नहीं हुआ

उर्दू माहनामा ला-रैब के सम्पादक जनाब रशीद कु़रेशी ने ‘अपना तो मिले कोई’ पर इज़हारे ख़याल करते हुए कहा कि देवमणि पांडेय की ग़ज़लें ऊपर से देखने में बेहद सरल और आसान लगती हैं लेकिन उनके भीतर गहरा अर्थ छुपा होता है। सहारा समय न्यूज़ चैनल के पत्रकार व शायर हसन काज़मी ने कहा कि देवमणि पांडेय की ग़ज़लें दिल से निकली हुई ग़ज़लें हैं और दिल को छूती हैं। । कथाकार दयानंद पांडेय, व्यंग्यकार सूर्यकुमार पांडेय और ईटीवी के वरिष्ठ सम्पादक-शायर तारिक़ क़मर ने भी कवि देवमणि पांडेय को बधाई दी। 

इस अवसर पर आयोजित कवि सम्मेलन-मुशायरे में हिंदी-उर्दू के प्रमुख कवियों-शायरों ने शिरकत की। प्रमुख अतिथि उदय प्रताप सिंह ने चुनिंदा शेर सुनाए- 

न मेरा है न तेरा है, ये हिंदोस्तान सबका है
नहीं समझी गई ये बात तो नुकसा़न सबका है

श्रोताओं की माँग पर देवमणि पांडेय को कई ग़ज़लें पेश करनी पड़ी। दो शेर देखिए-

सजा है इक नया सपना हमारे मन की आँखों में 
कि जैसे भोर की किरणें किसी आँगन की आँखो में

सुलगती है कहीं कैसे कोई भीगी हुई लकड़ी
दिखाई देगा ये मंज़र तुम्हें बिरहन की आँखों में

शायर अनवर जलालपुरी, रशीद क़ुरेशी, डॉ. मेराज साहिल, इमरान अनवारवी, आमिर मुख़्तार, इस्लाम फ़ैसल, अहमद फ़राज़, सलमान ज़फ़र, ओ.पी. तिवारी, मनोज श्रीवास्तव, जनेश्वर तिवारी और नीतू सिंह के कविता पाठ का श्रोताओं ने जमकर लुत्फ़ उठाया। सहारा समय न्यूज़ चैनल से जुड़े पत्रकार-शायर हसन काज़मी ने तरन्नुम में अपनी लोकप्रिय ग़ज़ल पेश की-

खू़बसूरत हैं आखें तेरी रातों को जागना छोड़ दे
खु़द बखु़द नींद आ जाएगी तू मुझे सोचना छोड़ दे

डॉ.हारून रशीद ने कार्यक्रम का रोचक संचालन किया। संयोजन वीरेंद्र नारायण सिंह ने और नराकास (लखनऊ) के अध्यक्ष संजय पांडेय ने आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम में अच्छी तादाद में लखनऊ महानगर के रचनाकार-पत्रकार और गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे। 

देवमणि पांडेय : 98210-82126

2 टिप्‍पणियां:

ashokkhachar56@gmail.com ने कहा…

shubhkmnaye or aapki kitabe post mil ske to pta muje dena sr plz

कविता रावत ने कहा…

बहुत बढ़िया प्रस्तुति ..
ग़ज़ल संग्रह अपना तो मिले कोई का लोकार्पण पर आपको बहुत बहुत बधाई ..
आज प्रदेश टुडे में आपका लेख 'जिगर ने इस दुनिया को दिया मजरुह सुल्तानपुरी' पढ़ा, जो बहुत बढ़िया लगा ...मजरुह सुल्तानपुरी के गीत कानों में गूंजने लगे हैं ....
उन्हें याद करने के लिए आपका आभार ..