बुधवार, 25 दिसंबर 2024

लखनऊ यात्रा की मधुर यादें

 

(1) सुख़नवरी साझा ग़ज़ल संग्रह 

रचनात्मकता को नया आयाम देने वाले कुछ कार्य ऐसे होते हैं जो वक़्त का शिलालेख बन जाते हैं। ‘महकते जज़्बात परिवार’ की ख़ूबसूरत पेशकश ‘सुख़नवरी’ एक ऐसा ही अहम दस्तावेज़ है। ‘महकते जज़्बात परिवार’ के संस्थापक अध्यक्ष शायर मंजुल मंज़र लखनवी द्वारा सम्पादित इस सामूहिक ग़ज़ल संग्रह में देश के 51 महत्वपूर्ण ग़ज़लकार शामिल हैं। अपने अंदर सभी रंगों को समेटे हुए यह संग्रह सृजनात्मकता के क्षितिज पर इंद्रधनुष की तरह उपस्थित है। यह संग्रह इन ग़ज़लकारों को एक ऐसा प्लेटफार्म उपलब्ध कराता है जहां से उनकी पहचान को एक नया आसमान मिलता है। मंजुल मंज़र लखनवी की पारखी नज़रों ने कमाल का संपादन किया है। ग़ज़लों के इस ख़ूबसूरत गुलदस्ते में ज़िंदगी की विविधरंगी तस्वीरें हैं। इनमें जदीदियत का हुस्न है तो रिवायात की दिलकशी भी है। इन ग़ज़लों में एहसासात और जज़्बात के साथ देश एवं समाज के हालात और वक़्त के सवालात शामिल हैं। कुल मिलाकर आज के दौर को जानने समझने के लिए और ग़ज़ल की परवाज़ को देखने के लिए यह संग्रह बेहद महत्वपूर्ण है। उर्दू अकादमी लखनऊ के लोकार्पण-समारोह एवं मुशायरे में शनिवार 7 दिसंबर 2024 को इस साझा ग़ज़ल संग्रह का लोकार्पण हुआ।  ‘सुख़नवरी’ में शामिल सभी ग़ज़लकारों को मैं दिल से बधाई देता हूं और उम्मीद करता हूं कि ग़ज़ल प्रेमियों की दुनिया में इस गुलदस्ते का भरपूर स्वागत होगा। 

(2) अलका त्रिपाठी का ग़ज़ल संग्रह 

उर्दू अकादमी लखनऊ के लोकार्पण-समारोह में सम्वेदनशील कवयित्री अलका त्रिपाठी ने मुझे अपने दो ग़ज़ल संग्रह भेंट किए - 'लफ़्ज़ों से परे' और 'हमसफ़र'। दोनों से गुज़रते हुए यह महसूस हुआ कि अलका त्रिपाठी की ग़ज़लें इस तथ्य को रेखांकित करती हैं कि ग़ज़ल कोमल भावनाओं की नाज़ुक अभिव्यक्ति है। सरल सहज भाषा में कही गईं ये दिलकश ग़ज़लें भावनाओं की झील पर किसी कश्ती की मानिंद गुज़रती हैं।

तुम सा सुंदर यहाँ का नज़ारा नहीं
तुमको जी भर अभी तो निहारा नहीं
संग ले के सनम तुमको डूबेंगे हम
चाहतों के भंवर में किनारा नहीं

यह भी अच्छी बात है कि अलका जी की अभिव्यक्ति में कहीं कोई गति अवरोधक नहीं है। बिना किसी लाग लपेट के वे अपनी बात साफ़ साफ़ कह देतीं हैं। इन ग़ज़लों में गेयता है। संगीत की लयात्मकता है। ये ग़ज़लें दिल से निकली हैं और दिल तक पहुंचती हैं।

धड़कनों की लय पे हमने गीत गाए हैं सदा
अश्क जब मोती हुए तो मुस्कराए हैं सदा

अलका त्रिपाठी की अभिव्यक्ति में ऐसी सादगी और आत्मीयता है कि ये ग़ज़लें पाठकों को अपने दिल के बहुत क़रीब महसूस होंगी। वस्तुतः यही उनकी रचनात्मक उपलब्धि है। मुझे उम्मीद है कि इन दिलकश ग़ज़लों के ज़रिए वे रचनाकार जगत में अपनी विशिष्ट पहचान बनाएंगी। निरंतर प्रगति की शुभकामनाएं।

(3) डॉ इंदु अग्रवाल का ग़ज़ल संग्रह 

उर्दू अकादमी लखनऊ के भव्य समारोह में शनिवार 7 दिसम्बर 2024 को देहरादून की वरिष्ठ कवयित्री डॉ इंदु अग्रवाल के ग़ज़ल संग्रह 'दीवान-ए-इंदु' का लोकार्पण हुआ। बेहद आकर्षक साज-सज्जा के साथ प्रकाशित यह ग़ज़ल संग्रह ख़ुद में एक नायाब तोहफ़ा है। दीवान प्रकाशित कराना आसान काम नहीं है। वर्णमाला के सभी अक्षरों को रदीफ़ में शामिल करके ग़ज़लें कहनी पड़तीं हैं। इंदु जी ने इस परम्परा का पालन सराहनीय ढंग से किया है। उनका दीवान बेहतरीन ग़ज़लों का ख़ूबसूरत गुलदस्ता है। तकनीकी ज़रूरतों को पूरा करने के साथ ही उन्होंने सरल सहज भाषा में ज़िंदगी के जो रंग, जज़्बात और एहसासात ग़ज़लों में पिरोए हैं वे दिल के तार झंकृत कर देते हैं-

बेटा-बेटी सब प्यारे
दोनों में लें किसका पक्ष
आज सभी के घर में हो
दादा-दादी का भी कक्ष

देखती रात भर रहीं आँखें
ख़्वाब जो भी मिले विरासत में

गाँव के गाँव ख़ाली हुए
मुर्दनी झाँकती हर तरफ़

जब बुलंदी न हो उसकी क़िस्मत में तो
चाहिए आदमी सब्र से काम ले

ग़ज़ल में लफ़्ज़ों को बरतने का सलीक़ा और भावनाओं के इज़हार का तरीक़ा देखने के लिए ख़ुद में यह कृति एक दस्तावेज़ है। इस रचनात्मक उपलब्धि के लिए डॉ इंदु अग्रवाल को बहुत-बहुत बधाई। मेरी दिली कामना है कि वे इसी तरह अपनी सोच और सरोकार से रचनात्मकता के गुलशन को आबाद करती रहें। ढेर सारी शुभकामनाएं।

(4) लखनऊ के फोनिक्स प्लासियो मॉल में कॉफ़ी

कवयित्री नीतू सिंह ने मुझे गोमती नगर, लखनऊ के फोनिक्स प्लासियो मॉल में कॉफ़ी के लिए आमंत्रित दिया। उनके साथ गपशप में आनंद आया। प्लासियो मॉल बहुत भव्य और शानदार है। यह माल इतना बड़ा है कि चारों दिशाओं में इसके प्रवेश द्वार हैं।

कवयित्री नीतू सिंह गोमती नगर के पुलिस मुख्यालय में सब इंस्पेक्टर हैं। वे बेहतरीन गायिकी हैं। उन्होंने संगीत विशारद किया है। सन् 2012 में मेरे ग़ज़ल संग्रह 'अपना तो मिले कोई' का लोकार्पण हज़रतगंज, लखनऊ में हुआ था। उस आयोजन में नीतू सिंह ने मेरी एक ग़ज़ल गाई थी' "जो मिल गया है उससे भी बेहतर तलाश कर / क़तरे में भी छुपा है समंदर तलाश कर"। उनके गायन की काफ़ी तारीफ़ हुई थी। नीतू सिंह के जीवनसाथी परमदेव पेशे से शिक्षक हैं।। उनसे मिलकर अच्छा लगा। नीतू की 6 साल की बेटी प्रक्षालिका भी बहुत प्यारी है। शाम को नीतू सिंह ने मेरे साथ निराला नगर में आयोजित काव्य संध्या में शिरकत की। कुल मिलाकर लखनऊ की यात्रा बहुत सुखद और यादगार रही।
▪️

आपका : देवमणि पांडेय मुम्बई