सोमवार, 3 नवंबर 2025

उद्भ्रांत की आत्मकथा काली रात का मुसाफ़िर

 


चित्रनगरी संवाद मंच मुम्बई में पुस्तक चर्चा 

दिल्ली के प्रतिष्ठित कवि उद्भ्रांत की आत्मकथा "मैंने जो जिया" का तीसरा भाग 'काली रात का मुसाफ़िर' नाम से प्रकाशित हुआ है। रविवार 2 नवम्बर 2025 को चित्रनगरी संवाद मंच मुम्बई की ओर से मृणालताई हाल, केशव गोरे स्मारक ट्रस्ट, गोरेगांव में इस पुस्तक पर चर्चा का आयोजन किया गया। कवि रमाकांत शर्मा उद्भ्रांत ने इस पुस्तक के कुछ अंशों का पाठ किया। पुस्तक की रचना प्रक्रिया पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि यह आत्मकथा ख़ुद को थर्ड पर्सन में रख कर लिखी गई है। आत्मकथा लेखन में ऐसा पहली बार हुआ है। उनके इस प्रयोग को सराहा गया। 


प्रस्तावना पेश करते हुए कार्यक्रम के संयोजक कवि देवमणि पांडेय ने कहा- "सरस भाषा में लिखी हुई इस आत्मकथा में घटनाओं को रोचक तरीके से पेश किया गया है। हमेशा यह उत्सुकता बनी रहती है कि आगे क्या हुआ। सूक्ष्म विवरणों को भी उद्भ्रांत जी ने जिस कौशल के साथ दर्ज किया है वह सराहनीय है। इस कृति में कई महत्वपूर्ण रचनाकारों से संबंधित घटनाओं का उल्लेख किया गया है। इस तरह यह अपने समय का महत्वपूर्ण दस्तावेज़ बन जाती है। इस आत्मकथा में साहित्य, पत्रकारिता, शिक्षा, सिने जगत और सरकारी तंत्र मौजूद है। यानी एक दुनिया में कई दुनियां शामिल हैं। उद्भ्रांत जी ने साहस के साथ सच का सामना किया है और उसको उजागर किया है। उन्होंने लोगों की नाराज़गी और अपनी इमेज की परवाह नहीं की है। कुल मिलाकर यह आत्मकथा एक महत्वपूर्ण और रोचक कृति के रूप में याद की जाएगी।"


देवमणि जी ने प्रस्तावना में इस पुस्तक पर नामवर सिंह, ज्ञानरंजन, कर्ण सिंह चौहान और यश मालवीय की टिप्पणियों के अंश भी उद्धरित किए गए। इन विद्वानों ने कवि उद्भ्रांत के प्रमाणिक कथ्य, प्रवाहमयी भाषा और अभिव्यक्ति कौशल की तारीफ़ की है।

इस अवसर पर कवयित्री अभिनेत्री दीप्ति मिश्र ने एक सवाल उठाया कि इस आत्मकथा में दृश्य और किरदार तो मौजूद हैं  लेकिन लेखक की सोच सामने नहीं आती। कुछ विद्वानों के उद्धरण के हवाले से इस सवाल का जवाब देते हुए कवि उद्भ्रांत ने कहा कि उन्होंने तटस्थ भाव से आत्मकथा का लेखन किया है। 


कार्यक्रम की शुरूआत में शुक्रवार 31 अक्टूबर 2025 को दिवंगत दिल्ली के प्रतिष्ठित साहित्यकार रामदरश मिश्र को याद किया गया गया। धरोहर के अंतर्गत मधुबाला शुक्ल ने उनकी लोकप्रिय ग़ज़ल "बनाया है मैंने ये घर धीरे-धीरे" का पाठ किया। कविता पाठ के सत्र में तूलिका सनाढ्य, गुलशन मदान, प्रदीप गुप्ता, दीप्ति मिश्र, असीमा भट्ट, अम्बिका झा, क़मर हाजीपुरी और महेश साहू ने काव्य पाठ किया। कवि रमाकांत शर्मा उद्भ्रांत ने अपनी दो ग़ज़लें सुनाकर कार्यक्रम को पूर्णता प्रदान की। 



उद्भ्रात की आत्मकथा काली रात का मुसाफ़िर के बारे में नामवर सिंह कहते हैं कि यह गद्य नहीं, कविता है।

ज्ञानरंजन उनकी आत्मकथा की तुलना उग्र की आत्मकथा 'अपनी खबर' से करते हैं। सच भी है। उद्भ्रांत ने अपने जीवन की कड़वी सच्चाइयों को अपनी लेखनी से जिस तरह उघारा है यह मिलना मुश्किल है। 

कर्ण सिंह चौहान ने उनकी आत्मकथा की तुलना गांधी की आत्मकथा से की है। वे लिखते हैं कि उद्भ्रांत की आत्मकथा की खूबी यह है कि उसने अपने जीवन से जुड़ी किसी भी बात को छिपाया नहीं है, न उसे अपने पक्ष में गौरवान्वित करने का प्रयास किया है और कमाल की बात यह है कि इतने विस्तृत ब्यौरों के बाद भी उसमें कोई उबाऊपन और नीरसता नहीं है। 

से रा यात्री जी का कहना है कि कवि के लिए गद्य एक कसौटी है और बच्चन व उद्भ्रांत के अतिरिक्त कोई अन्य इस पर खरा नहीं उतरता। राजेन्द्र राव एवं देवेन्द्र चौबे जैसे कुछ और प्रतिष्ठित साहित्यकारों ने भी उनके लेखन को उल्लेखनीय बताया है।

यश मालवीय के अनुसार यह एक मानक आत्मकथा है, जिसमें लेखक ने एक बड़ा कालखंड समेटा है। वृत्तांत में वेगवती नदी का सा प्रवाह है, भाषा भी उतनी ही पानीदार है। यह एक न भूलने वाला दस्तावेज़ है, जिसके लिए कवि उद्भ्रांत याद किए जाएंगे क्योंकि उन्होंने विस्मरण के इस घनघोर समय में स्मरण की गंगा बहा दी है। बेशक इसे पाण्डेय बेचन शर्मा उग्र की अपनी ख़बर और बच्चन जी की आत्मकथाओं के सभी खण्डों की परंपरा में रखकर देखा जा सकता है।


 देवमणि पाण्डेय : 98210 82126              

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