गुरुवार, 1 जुलाई 2010

हम पंडितों के इश्क़ में बरबाद हो गए : मुनव्वर राना


नए मौसम के फूल के लोकार्पण समारोह में पत्रकार उपेंद्र राय, शायर मुनव्वर राना, सहारा इंडिया परिवार के डिप्टी एम.डी.ओ.पी. श्रीवास्तव, प्रकाशक नीरज अरोड़ा और शायर-संचालक देवमणि पाण्डेय (मुम्बई 21 मार्च 2009)

नए मौसम के फूल : मुनव्वर राना

बादशाहों को सिखाया है कलंदर होना

आप आसान समझते हैं मुनव्वर होना

मुनव्वर राना की शायरी में पारिवारिक रिश्तों की एक मोहक ख़ुशबू है। लफ़्ज़ों को बरतने का एक ख़ूबसूरत सलीक़ा है। अपने तजुर्बात को पेश करने का एक लासानी अंदाज है। यही ख़ासियतें उन्हें अलग और पुख़्ता पहचान देती हैं। वे अपनी मिट्टी,पानी और हवा से जुड़े हस्सास शायर हैं। वे तर्के- तआल्लुक़ात के इस दौर में भी संयुक्त परिवार का परचम लहराते हुए दिखाई पड़ते हैं – वो भी मुख़्तलिफ़ अंदाज़ में-

न कमरा जान पाता है न अँगनाई समझती है
कहां देवर का दिल अटका है भौजाई समझती है

मुनव्वर राणा का ख़ानदान विभाजन के वक़्त पाकिस्तान चला गया था। उनके पिता पं.जवाहरलाल नेहरू के आग्रह पर यहीं रह गए। इस मौज़ू पर उनका एक शेर है-

हिजरत को भूल-भालकर आबाद हो गए
हम पंडितों के इश्क़ में बरबाद हो गए

भारत-पाक विभाजन के दर्द पर मुनव्वर राणा ने एक ग़ज़ल कही है-

मुहाजिर हैं मगर हम एक दुनिया छोड़ आए हैं
तुम्हारे पास जितना है हम उतना छोड़ आए हैं

इसके ज़रिए उन्होंने एक नया रिकार्ड कायम किया है। इस ग़ज़ल में पाँच सौ शेर हैं। यानी इसे एक लम्बी नज़्म भी कह सकते हैं। कुछ दिनों पहले उन्होंने बताया कि यह तवील ग़ज़ल एक किताब की शक़्ल में ‘मुहाजिरनामा’ नाम से शाया हो गई है। इस आलेख के आख़िर में ‘मुहाजिरनामा’ से चंद अशआर आपके लिए पेश किए गए हैं।

हमारे सीनियर शायर जब हमें किताबें भेंट करते हैं तो अच्छा लगता है। शायर मुनव्वर राना ने मुझे अपनी किताब ‘घर अकेला हो गया’ दिनांक 24-11-04 को भेंट की। किताब के इस नाम के पीछे एक एहसास छुपा हुआ है। भाई राना की पांच बेटियां हैं। इनमें चार की शादी हो चुकी है। चौथी बेटी की शादी पटना (बिहार) में हुई है। एक दिन इस बेटी ने उनको एक एसएमएस भेजा ‘पापा ! आप और मम्मी सोचते होंगे कि हमारी शादी करके आप अपनी ज़िम्मेदारियों से मुक्त हो गए। मगर हम ये सोचते हैं कि अगर कुछ दिन और मम्मी-पापा की सेवा कर लेते तो बेहतर होता।’ इसे पढ़कर राना को देर रात तक नींद नहीं आई। फिर उन्होंने बेटी को एक शेर एसएमएस किया-

ऐसा लगता है कि जैसे ख़त्म मेला हो गया
उड़ गईं आंगन से चिड़ियां घर अकेला हो गया

इसी मौज़ू पर लिखा हुआ उनका एक शेर और भी मक़बूल हुआ-

ये बच्ची चाहती है और कुछ दिन मां को ख़ुश रखना
ये कपड़ो की मदत से अपनी लम्बाई छुपाती है

जनवरी में एक दिन राना साहब से बात हुई। बोले- यार सर्दियों में बीवी से रिश्ते बड़े अच्छे हो जाते हैं क्योंकि ज्य़ादातर समय मैं घर पर ही रहता हूँ। वैसे कभी-कभी मुझे सर्दी में भी गर्मी लगती है। एक बार लालक़िले के मुशायरे में जनवरी में कुर्ता-पायजामा पहनकर चला गया। बाक़ी शायर टाई-शूट में या कम्बल ओढ़कर आए थे। मेरे पीछे फुसफुसाहट शुरु हो गई – ‘देखो साला पीकर आया है, इसलिए इसे ठंड नहीं लग रही है।’

पीने से तो नहीं मगर पान पराग ज़्यादा खाने से मुनव्वर राना बीमार पड़ गए। डाक्टर के पास गए। डाक्टर ने कहा-‘अगर जीना चाहते हो तो गुटका (पान पराग) खाना छोड़ दो ।’ राना बोले, डाक्टर साहब ! अभी-अभी एक मतला हुआ है। सुनिए-

ये ज़हर ए जुदाई हमें पीना भी पड़ेगा
क्या सारे नशे छोड़कर जीना भी पड़ेगा

डाक्टर हँसने लगा। यानी दूसरों को हँसाने का हुनर राना साहब को मालूम है। दुष्यंत कुमार ने कहा था - मैं जिसे ओढ़ता बिछाता हूँ, वो ग़ज़ल आपको सुनाता हूँ । सचमुच राना के लिए ग़ज़ल अब उनका ओढ़ना बिछौना बन गई है । 21 मार्च 2009 को मुंबई के पांच सितारा होटल सहारा स्टार में उनकी नई किताब ‘नए मौसम के फूल’ का लोकार्पण हुआ। उन्होंने बताया- ‘पहले घर से निकालता था तो देखता था – कौन सा शूट रखना है, कौन सा कुर्ता पायज़ामा रखना है । अब घर से बाहर जाता हूँ तो देखता हूँ कौन सी दवा रखनी है, कौन सी टेबलेट लेनी है।’ ज़िंदगी के इस मुकाम को उन्होंने ग़ज़ल में इस तरह दर्ज किया –

हमारे कुछ गुनाहों की सज़ा भी साथ चलती है
मैं अब तनहा नहीं चलता दवा भी साथ चलती है
अभी ज़िंदा है मां मेरी मुझे कुछ भी नहीं होगा
मैं जब घर से निकालता हूँ दुआ भी साथ चलती है

मुनव्वर राना इस समय मुशायरों के सुपरहिट शायर हैं। पूरी दुनिया में उनके प्रशंसक मौजूद हैं। शायद इसलिए कि वे हर उम्र और हर वर्ग के आदमी को अपनी शायरी का किरदार बना लेते हैं। बुज़ुर्गों की शान में उनके फ़न का कमाल देखिए-

हम सायादार पेड़ ज़माने के काम आए
जब सूखने लगे तो जलाने के काम आए
तलवार की मियान कभी फेंकना नहीं
मुमकिन है दुश्मनों को डराने के काम आए

एक अच्छा शायर कहीं न कहीं अपने फ़न के ज़रिए अपनी शाख्सियत से भी रुबरु होता है । राना साहब भी कहते हैं-

ख़ुश ख़ुश दिखाई देता हूँ बीमार मैं भी हूँ
दुनिया को क्या पता कि अदाकार मैं भी हूँ
करता रहा हूँ अपने मसाइल से रोज़ जंग
छोटे से इक कबीले का सरदार मैं भी हूँ


उनके कुछ प्रशंसकों का कहना है कि राना साहब तो फ़कीर हैं। वैसे उनकी शायरी मैं फ़कीराना अदा भी दिखाई देती है –


आए हो तो इक मुहरे-गदागर भी लगा दो
इस चांद से माथे पे ये झूमर भी लगा दो
अजदाद की ख़ुशबू मुझे जाने नहीं देगी
इस पेड़ के नीचे मेरा बिस्तर भी लगा दो

सीधे साधे लफ़्ज़ों में गहरी बात कह देना शायरी में बहुत बड़ा हुनर माना जाता है। मुनव्वर राना इस हुनर के बाकमाल शायर हैं –

कलंदर संगमरमर के मकानों में नहीं मिलता
मैं असली घी हूँ बनियों की दुकानों में नहीं मिलता

ग़ज़ल में कैसे कैसे रुख निकाले हैं मुनव्वर ने
किसी भी शेर को पढ़िए तो तहदारी निकलती है


कमाल का ये हुनर हासिल कैसे होता है ? एक जगह मुनव्वर राना ने इज़हारे-ख़याल किया है –

ख़ुद से चलके नहीं ये तर्ज़े-सुख़न आया है
पांव दाबे हैं बुज़ुर्गो के तो ये फ़न आया है


मानी की गहराई, एहसास की ऊँचाई और अल्फाज़ की नरमाई के चलते मुनव्वर राना अक्सर ऐसे शेर कह जाते हैं जो सुनने-पढ़ने वालों को एक बार में ही याद होकर उनके वजूद का हिस्सा बन जाते हैं,मसलन -
भुला पाना बहुत मुश्किल है सब कुछ याद रहता है
मोहब्बत करने वाला इस लिए बरबाद रहता है

बहुत दिन से तुम्हें देखा नहीं है
ये आंखों के लिए अच्छा नहीं है

मोहब्बत में तुम्हें आँसू बहाना तक नहीं आया
बनारस में रहे और पान खाना तक नहीं आया


एक अच्छा शायर अगर अच्छा इंसान भी हो तो सोने में सुहागा। राना साहब अच्छे, विनम्र और मिलनसार इंसान हैं। वे हमेशा ख़ुश रहते हैं और दूसरों को भी ख़ुश देखना चाहते हैं।अगर उनके साथ दो-चार दोस्त भी हों तो प्रति मिनट एक ठहाके की गारंटी है। आइए मिलकर दुआ करें कि ऊपर वाला ऐसे नेक इंसान और उम्दा शायर को लम्बी उम्र बख़्शे। राना साहब का ही शेर है-

मौला ये तमन्ना है कि जब जान से जाऊँ
जिस शान से आया हूँ उसी शान से जाऊँ

पेश हैं मुहाजिरनामा से चंद अशआर-

मुहाजिर हैं मगर हम एक दुनिया छोड़ आए हैं
तुम्हारे पास जितना है हम उतना छोड़ आए हैं

कई आँखें अभी तक ये शिकायत करती रहती हैं
कि हम बहते हुए काजल का दरिया छोड़ आए हैं

कहानी का ये हिस्सा आज तक सब से छुपाया है
कि हम मिट्टी की ख़ातिर अपना सोना छोड़ आए हैं

नई दुनिया बसा लेने की इक कमज़ोर चाहत में
पुराने घर की दहलीज़ों को सूना छोड़ आए हैं

अक़ीदत से कलाई पर जो इक बच्ची ने बाँधी थी
वो राखी छोड़ आए हैं वो रिश्ता छोड़ आए हैं

किसी की आरज़ू के पाँवों में ज़ंजीर डाली थी
किसी की ऊन की तीली में फंदा छोड़ आए हैं

पकाकर रोटियाँ रखती थी माँ जिसमें सलीक़े से
निकलते वक़्त वो रोटी की डलिया छोड़ आए हैं

जो इक पतली सड़क उन्नाव से मोहान जाती है
वहीं हसरत के ख़्वाबों को भटकता छोड़ आए हैं

यक़ीं आता नहीं, लगता है कच्ची नींद में शायद
हम अपना घर गली अपना मोहल्ला छोड़ आए हैं

हमारे लौट आने की दुआएँ करता रहता है
हम अपनी छत पे जो चिड़ियों का जत्था छोड़ आए हैं
हमें हिजरत की इस अन्धी गुफ़ा में याद आता है
अजन्ता छोड़ आए हैं एलोरा छोड़ आए हैं

सभी त्योहार मिलजुल कर मनाते थे वहाँ जब थे
दिवाली छोड़ आए हैं दशहरा छोड़ आए हैं

हमें सूरज की किरनें इस लिए तक़लीफ़ देती हैं
अवध की शाम काशी का सवेरा छोड़ आए हैं

गले मिलती हुई नदियाँ गले मिलते हुए मज़हब
इलाहाबाद में कैसा नज़ारा छोड़ आए हैं

हम अपने साथ तस्वीरें तो ले आए हैं शादी की
किसी शायर ने लिक्खा था जो सेहरा छोड़ आए हैं

वज़ारत भी हमारे वास्ते कम मरतबा होगी
हम अपनी माँ के हथों में निवाला छोड़ आए हैं

अगर लिखने पे आ जाएं तो स्याही ख़त्म हो जाए
कि तेरे पास आए हैं तो क्या क्या छोड़ आए हैं

आपका-

देवमणि पांडेय : बी-103, दिव्य स्तुति, 
कन्या पाडा, गोकुलधाम, फ़िल्म सिटी रोड, 
गोरेगांव पूर्व, मुम्बई-400063, 98210 82126 

12 टिप्‍पणियां:

  1. "मौसम के फूल"मेरी पसंदीदा शायरी की किताबों में से एक है...मैंने अपने ब्लॉग पर इस किताब के बारे में लिखा भी है...इस किताब के साथ एक वि.डी.ओ. सी.डी. भी दी गयी थी जिसे मैं अक्सर देख कर मुनव्वर साहब को सुनता रहता हूँ...माँ पर कहे उनके शेर उर्दू शायरी की धरोहर हैं...सलामत रहे ये अजीम शायर...ये ही दुआ करते हैं...
    नीरज

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  2. एक शाइर का कलाम दूसरे शाइर की ऑंख से ऑंसुओं की गंगा बहा दे, तो कहने को कुछ नहीं रह जाता।
    अक़ीदत से कलाई पर जो इक बच्ची ने बाँधी थी
    वो राखी छोड़ आए हैं वो रिश्ता छोड़ आए हैं

    किसी की आरज़ू के पाँवों में ज़ंजीर डाली थी
    किसी की ऊन की तीली में फंदा छोड़ आए हैं
    किस किस शेर की बात करें।
    ये बँटवारे का दर्द, यादों से आकर इस सलीके से मुनव्‍वर साहब कि शाइरी में उतरा है कि बस....

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    1. वो सुराही वो पीपल वो छाँव छोड़ आये है
      पत्थरों के शहर में अपना गाँव छोड़ आये हैं
      किस किस से शिकायत करें अकेलेपन की
      जब खुद मकां की जिद में घर छोड़ आये हैं

      हटाएं
  3. मुनव्‍वर साहब कि शाइरी .....

    पहल;इ इत्मीनान से पढ़ते है फिर कुछ कहेंगे.

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  4. Janaab munnawwar rana ke vyaktitv
    aur unkee shaayree ke baare mein
    padh kar bahut achchha lagaa hai.
    1947 ke Bharat-vibhaajan ke dauran
    hue updravon par unke chand ashaar
    bhee padhen hain.Bahut khoob hain.
    Vibhaajan kee traasdee par Hindi
    kavita mein sabse pahle khul kar
    likhne waale Dr. Gautam Sachdev hain.Unhonne kaee saal pahle isee
    traasdee par lagbhag 53 ashaar
    kahe the.Saare ke saare ashaar ek
    se badh kar ek hain. Kuchhek ashaar
    hain --
    aaye nabh ke nayan bhar
    ghar chhod kar jab hum chale
    kyaa kahen deewaar - dar
    ghar chod kar jab hum chale

    saath apne zism ko hum
    kheench kar chalne lage
    rah gayaa dil taak par
    ghar chhod kar jab hum chle

    mushkilon ke patthron kaa
    bojh uthtaa hee n thaa
    ho gayee duhree qamar
    ghar chhod kar jab hum chale

    aaften barsee , giree phir
    sankton kee bijliyan
    thaa zamaana bemehar
    ghar chhod kar jab hum chale

    dher takleefen liye ,
    dukkhon kee laaden gathriyan
    qaafile aaye nazar
    ghar chhod kar jab hum chale

    raah mein hamlaa n ho
    lut jaaye n izzat kahin
    the bahut agyaat dar
    ghar chhod kar jab hum chale
    Sabhee ashar padhne ke liye
    kripyaa www.mahavir.blogspot.com
    kaa jan.2010 kaa ank dekhiye.

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  5. मुन्नवर राणा मेरे बेहद पसंदीदा शायर हैं। माँ पर कहे उनके शेर तो भुलाये नहीं जा सकते। अभी हाल ही में 21 मई 2010 को दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में मुझे अपनी पसंद की कविताएं पढ़ने के लिए 45 मिनिट का अवसर दिया गया तो मैंने हिंदी, पंजाबी, उर्दू, असमिया, फिलिस्तिनी कविताओं का पाठ किया था। उर्दू में मैंने मुन्नवर राणा जी की शायरी पढ़ी तो श्रोताओं ने बहुत पसंद किया। वे बहुत उँचे शायर हैं। बारीक से बारीक बात शायरी में बहुत उम्दा ढ़ंग से कहते हैं। आपने उनके बारे में अपने ब्लॉग में लिखा और उनकी चुनिंदा शायरी से नेट की दुनिया के पाठकों को रू ब रू करवाया, आपका बहुत बहुत शुक्रिया।

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  6. धन्यवाद देवमणि जी, मुन्नवर राणा जी को अक्सर etv उर्दू और दूरदर्शन पर सुना है .मेरे पसंदीदा शायर हैं उनके द्वारा मां पर कही गई शायरीयां तो गदगद कर जाती हैं.. उनकी लंबी उम्र के लिए ईश्वर से दुआ करते है .

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  7. हम चले आए मुनव्वर के जो पीछे-पीछे
    देखिए कैसा मिला अब सिला पीछे-पीछे

    देवमणि! आपने ये काम बहुत ख़ूब किया
    शुक्रिया, शुक्रिया फिर शुक्रिया पीछे-पीछे

    ग़ज़लगो हैं, तो ये दस्तूर निभाना होगा
    हाले-दिल दुनिया का,अपनी ज़ुबाँ पीछे-पीछे

    इश्क़ की रहनुमाई हमको बहुत रास आई
    आगे बरबादियाँ, हम भी यहाँ पीछे-पीछे

    आपको अपना, हमें रास्ता अपना है सही
    क्या ज़रूरी है ज़माना भी हो पीछे-पीछे

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  8. गजब की. शायर करते है राणा जी

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  9. गजब की. शायर करते है राणा जी

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