tag:blogger.com,1999:blog-765514892586429286.post1536984063908490272..comments2023-08-18T09:05:14.983-07:00Comments on Apna To Mile Koi : कौन बसंती धो गई नदी में अपने गाल : ज़फ़र गोराखपुरीदेवमणि पांडेय Devmani Pandeyhttp://www.blogger.com/profile/09583435334580761206noreply@blogger.comBlogger17125tag:blogger.com,1999:blog-765514892586429286.post-74111255670778106332021-09-09T08:35:06.174-07:002021-09-09T08:35:06.174-07:00दोहों पर जिसकी लाठी उसकी भैंस तो बिलकुल नहीं चलेगा...दोहों पर जिसकी लाठी उसकी भैंस तो बिलकुल नहीं चलेगा जनाब..लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'https://www.blogger.com/profile/05198912605828743198noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-765514892586429286.post-71680828912434158032020-07-21T21:26:23.259-07:002020-07-21T21:26:23.259-07:00जो दोहे के व्याकरण पर खरे नहीं वो दोहे नहीं हो सकत...जो दोहे के व्याकरण पर खरे नहीं वो दोहे नहीं हो सकते चाहे जितना ज्ञानी शायर या साहित्यकार लिखे <br />सादरAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/08035878691104126618noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-765514892586429286.post-10196669766844193472010-08-10T05:21:14.004-07:002010-08-10T05:21:14.004-07:00दोहे की पहचान है, उलट सोरठा होय
वर्ना ये कुछ और है...दोहे की पहचान है, उलट सोरठा होय<br />वर्ना ये कुछ और है, दोहा लगे न मोयHimanshu Mohanhttps://www.blogger.com/profile/16662169298950506955noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-765514892586429286.post-77911866677618266422010-07-31T01:54:40.964-07:002010-07-31T01:54:40.964-07:00devmani ji ,
aapne bahut acchi baat ko apni is p...devmani ji , <br /><br />aapne bahut acchi baat ko apni is post me uthaya hai , doho ki apni ek mithaas hoti hai aur padhte waqt ya sunte waqt ek rythematic effect daalti hai zehan par ..aur isi khaas wazah se dohe aksar yaad rah jaate hai aur rozmarra ki bolchaal me bole jaate hai .. aapne dono mahan shayro ki rachnao ka zikr karke is post ko aur bhi khoobsurut bana dala hai .<br />main jyada to kuch nahi kah sakta ,kyonki mujhe utna gyaan nahi hai is baare me , par bahut acchi post aur dono shayaaro ko salaam .vijay kumar sappattihttps://www.blogger.com/profile/06924893340980797554noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-765514892586429286.post-64977808146488090272010-07-24T00:09:48.673-07:002010-07-24T00:09:48.673-07:00मुम्बई से युवा शायर हैदर नजमी लिखते हैं...
देव साह...मुम्बई से युवा शायर हैदर नजमी लिखते हैं...<br />देव साहब, <br />दोहे पर गुफ़्तगू के लिए वक़्त चाहिए। जहाँ तक मेरा अपना ज़ाती सोचना है वो ये कि जिस तरह ग़ज़ल मख़सूस लबो-लहजा चाहती है और अगर ग़ज़ल की शायरी में उस लहजे, उस लफ़्ज़ियत का इस्तेमाल न हो तो ग़ज़ल गूँगी-बहरी मालूम होगी…यही बात दोहे के साथ भी लागू होती है। अमीर ख़ुसरो ने फ़ारसी में भी और उर्दू में भी कलाम कहे। वो चाहते तो दोनों में ही उर्दू-फ़ारसी लफ़्ज़ों का इस्तेमाल कर सकते थे, मगर उन्होंने ऐसा नहीं किया। ख़ैर अगर दोहे में ख़ालिस उर्दू लफ़्ज़ों का इस्तेमाल कर भी लिया जाए तो दोहा थोड़ा-थोड़ा शेर का मज़ा देने लगता है मगर दोहे की रूह फ़ना हो जाती है। मुझे अपना एक दोहा याद आ रहा है-<br /><br />मुल्ला की बातें सुनीं, पंडित के उपदेस<br />इंसा किसके वास्ते बदले इतने भेसदेवमणि पांडेय Devmani Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/09583435334580761206noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-765514892586429286.post-73701926855330724672010-07-23T04:50:58.173-07:002010-07-23T04:50:58.173-07:00दोनो ही शायर विद्वान और वरिष्ठ हैं. मेरे ख्याल से ...दोनो ही शायर विद्वान और वरिष्ठ हैं. मेरे ख्याल से दोनो अपनी-अपनी जगह बिल्कुल सही हैं.गानो को ही ले लीजिए बिना सिर पैर के लिरिक है.लिखने वाले युवा हैं.लेकिन उन्ही गीतो की धूम मची है..समय के साथ रहते कुछ ढील तो देनी होगी वरना आज का युवा जो पहले ही अंग्रेजी गीतों का मुरीद है बन्दिशों के चलते गज़ल दोहों से विरक्त होता चला जायेगा. वैसे भी गज़ल प्रेमिकाओं को समर्पित होती है...जरुरी तो नही केवल शायर ही अपनी प्रेमिका पर गज़ल लिख सकते हैं. जिसे न आती हो वो क्या करे...भई छूट देनी होगी.चर्चित गज़लकार दुष्यन्त जी को भी ऐसे ही विरोधाभास झेलने पढे़। देखा जाय तो गज़ल दोहों के श्रोता जिन्हें बहर और रदीफ़ काफ़ियों का पता ही नहीं होता वे असल जज होते हैं..उन्हें आपके शब्द जो भीतर तक भिगो डालते है ..वे तो बस उतना ही जानते हैं..उन्हीं की वाह वाही से बनती है एक उम्दा गज़ल. केवल आपस में ही एक विद्वान दूसरे विद्वान से सहमत न हो तो अजीब बात है. किसे सही किसे गलत घोषित करना अपनी विधा का मजाक ही है.हिन्दी साहित्य और विधाएं इसलिए पापुलर नहीं हो पाती क्योंकि इस्में अनुशासन और पांडित्यपन का मापदंड कुछ ज्यादा ही है..समय के साथ-साथ कुछ न कुछ तो बदलाव आयेगा ही!!Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-765514892586429286.post-87393063867594031672010-07-22T10:22:51.720-07:002010-07-22T10:22:51.720-07:00मैं निरंतर इस पोस्ट को चैक कर रहा हूँ, चर्चा में ...मैं निरंतर इस पोस्ट को चैक कर रहा हूँ, चर्चा में खुलकर भाग लेने में सेकोच की स्थिति दिख रही है जो साहित्यधर्मिता की दृष्टि से उचित नहीं है। यहॉं प्रश्न ज़फ़र साहब या नक्श साहब जैसी हस्तियों के कथन पर टिप्पणी का नहीं एक खुली चर्चा में भाग लेने का है। मैनें तो खुलकर अपनी समझ रखी वरना बड़ी आसानी से मैं एक शेर कहकर छुट्टी पा लेता कि:<br /> <br />मेरा तो सर भी वहॉं तक नहीं पहुँच पाता<br />जहॉं कदम के निशॉं आप छोड़ आये हैं।<br />हमारी संस्कृति में अग्रजनों का स्थान सम्माननीय है लेकिन यहॉ तो खुली चर्चा है।तिलक राज कपूरhttps://www.blogger.com/profile/03900942218081084081noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-765514892586429286.post-83741495050566669872010-07-22T04:55:15.535-07:002010-07-22T04:55:15.535-07:00Pran ji ne bilkul sahi kaha hai . Itne maqbool sha...Pran ji ne bilkul sahi kaha hai . Itne maqbool shaiir laayalpuri ji ne bina soche samjhe SARSEE Chand ko dohe ka modified version kyon kaha ye samajh se baahar hai.<br /><br />rahi baat urdu shaiiri ki aur hindi ghazal ki -<br />dono ki apnee-apnee mahak hai aur swaad hai.सतपाल ख़यालhttps://www.blogger.com/profile/18211208184259327099noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-765514892586429286.post-77173041113885402512010-07-21T07:33:51.186-07:002010-07-21T07:33:51.186-07:00Main sudhee pathkon aur lekhkon/
kaviyon se appeal...Main sudhee pathkon aur lekhkon/<br />kaviyon se appeal kartaa hoon ki<br />ve aage aayen aur janaab Subhash<br />Neerav,Chandarbhan Bhardwaj,Tilak<br />raj ,Neeraj Goswami aur Pran <br />Sharma kee tarah " Doha" se sambandhit bahas mein bhaag len.<br />Janaab Devmani Pandey apne blog par Hindi aur Urdu kee nishtha <br />ke saath jo sewa kar rahe hain,vah<br />nissandeh saraahniy hai.pran sharmahttps://www.blogger.com/profile/14658673113780007596noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-765514892586429286.post-91903428257994356822010-07-21T06:03:22.522-07:002010-07-21T06:03:22.522-07:00दोहे और शायरी की खूबी अलग अलग है...एक गुलाब का फूल...दोहे और शायरी की खूबी अलग अलग है...एक गुलाब का फूल है तो दूसरा मोगरे का...दोनों फूल हैं लेकिन खुशबू बिलकुल जुदा...प्राण साहब ने इस बात को बहुत ही बहतर ढंग से समझाया है...इसके बाद कुछ कहने को नहीं रह जाता...अलबत्ता ज़फर साहब के दोहों में बहुत दम है...उर्दू में निदा साहब ने भी दोहों को बहुत मकबूल किया है...शुक्रिया आपका नक्श साहब और ज़फर साहब की रचनाएँ हम तक पहुँचाने के लिए...<br /><br /><br /><br />नीरजनीरज गोस्वामीhttps://www.blogger.com/profile/07783169049273015154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-765514892586429286.post-85022823056473572182010-07-21T05:42:04.394-07:002010-07-21T05:42:04.394-07:00यू.के.से वरिष्ठ शायर प्राण शर्मा ने मेल किया-
दोहा...यू.के.से वरिष्ठ शायर प्राण शर्मा ने मेल किया-<br />दोहा दोहा है। इसके विषम चरणों में तेरह और सम चरणों में ग्यारह मात्राएँ होती हैं। इसकी बंदिश में रह कर कविता या शायरी की ख़ूबसूरती है। नए छंदों की खोज की जानी चाहिए लेकिन प्रचलित छंदों को बिगाड़ कर नहीं। अगर कुछ शायरों ने दोहा को <br />नया रूप दिया है तो यह उसके साथ खिलवाड़ करने जैसी बात है। जनाब नक्श लायलपुरी दोहा को जो नया रूप देने का जो दावा करते हैं, दरअस्ल उसका रूप पहले ही से हिंदी छंद शास्त्र में विद्यमान है। उस छंद का नाम है - " सरसी "। यह भी मात्रिक छंद है। इसमें सत्ताईस मात्राएँ होती हैं। सोलह,ग्यारह पर यति और आखिर में एक गुरु (2)और एक लघु (1) होते हैं। देखिये इस छंद में विख्यात कवि नाथूराम शंकर की पंक्तियाँ---<br />काम, क्रोध ,मद लोभ ,मोह की,<br />पञ्च रंगी कर दूर <br />एक रंग तन मन वाणी में,<br />भर ले तू भरपूर <br />प्रेम प्रसार न भूल <br />भलाई , वैर ,विरोध बिसार <br />भक्ति ,भाव से भज शंकर को,<br />भक्ति दया उर धारसंस्कृति संगमhttps://www.blogger.com/profile/03461952640177315274noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-765514892586429286.post-71742027222000458652010-07-21T05:41:59.485-07:002010-07-21T05:41:59.485-07:00यू.के.से वरिष्ठ शायर प्राण शर्मा ने मेल किया-
दोहा...यू.के.से वरिष्ठ शायर प्राण शर्मा ने मेल किया-<br />दोहा दोहा है। इसके विषम चरणों में तेरह और सम चरणों में ग्यारह मात्राएँ होती हैं। इसकी बंदिश में रह कर कविता या शायरी की ख़ूबसूरती है। नए छंदों की खोज की जानी चाहिए लेकिन प्रचलित छंदों को बिगाड़ कर नहीं। अगर कुछ शायरों ने दोहा को <br />नया रूप दिया है तो यह उसके साथ खिलवाड़ करने जैसी बात है। जनाब नक्श लायलपुरी दोहा को जो नया रूप देने का जो दावा करते हैं, दरअस्ल उसका रूप पहले ही से हिंदी छंद शास्त्र में विद्यमान है। उस छंद का नाम है - " सरसी "। यह भी मात्रिक छंद है। इसमें सत्ताईस मात्राएँ होती हैं। सोलह,ग्यारह पर यति और आखिर में एक गुरु (2)और एक लघु (1) होते हैं। देखिये इस छंद में विख्यात कवि नाथूराम शंकर की पंक्तियाँ---<br />काम, क्रोध ,मद लोभ ,मोह की,<br />पञ्च रंगी कर दूर <br />एक रंग तन मन वाणी में,<br />भर ले तू भरपूर <br />प्रेम प्रसार न भूल <br />भलाई , वैर ,विरोध बिसार <br />भक्ति ,भाव से भज शंकर को,<br />भक्ति दया उर धारसंस्कृति संगमhttps://www.blogger.com/profile/03461952640177315274noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-765514892586429286.post-19117264470935867432010-07-21T03:34:12.177-07:002010-07-21T03:34:12.177-07:00Doha ke visham charnon mein terah
aur sam charnon ...Doha ke visham charnon mein terah<br />aur sam charnon mein gyarah matrayen hotee hain.Iskee bandish<br />mein rah kar hee kavita yaa shayree<br />kee khoobsoortee hai.Doha Ameer<br />khusro se lekar bihari jaesee mahaan kaviyon ne likha.Unkee<br />viraasat ko sanjo kar rakhnaa kaviyon aur shaayron kaa dharm hai.<br />Doha ghar - ghar mein gaayaa jataa<br />hai.Agar kuchh shaayron ne doha ko <br />nayaa roop diya hai to ye uske saath khilwaad karne jaesee baat <br />hai.<br /> Janaab Naqsh laayalpuree doha ko nayaa roop dene kaa jo <br />daawaa karte hain,vah dohaa kaa roop nahin hai.Vah " Sarsee " <br />naamak hindi ka maatrik chhand hai.Is mein 27 matrayen hotee hain,<br />16,11 par yati aur aakhir mein <br />ek guru ( 2) aur ek laghu ( 1 )<br />hote hain.Dekhiye is chhand mein<br />vikhyaat kavi Nathu Ram Shankar kee<br />panktiyan-<br />kaam,krodh,mad,lobh kee,<br />panch rangee kar door<br />ek rang tan,man ,vaani mein,<br />bhar le too bharpoor <br /> --------------<br />prem pasaar n bhool bhalaaee,<br />vair , virodh bisaar <br />bhakti,bhaav se bhaj shankar ko ,<br />bhakti,dayaa ur dhaar <br /> Janaab Naqsh sahib kee <br />panktiyan " Doha " mein nahin,<br />" Sarsee " chhand mein hain.pran sharmahttps://www.blogger.com/profile/14658673113780007596noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-765514892586429286.post-5120653870870082632010-07-19T08:22:20.637-07:002010-07-19T08:22:20.637-07:00बहुत ही गंभीर और प्रासंगिक(आज के समय में) मुद्दा उ...बहुत ही गंभीर और प्रासंगिक(आज के समय में) मुद्दा उठाया है आपने। किसी भी फ़ैसले पर पहुँचने से पहले इन विधाओं के विद्वान शाइरों की राय से रू-ब-रू होना बेहद ज़रूरी है।सुभाष नीरवhttps://www.blogger.com/profile/03126575478140833321noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-765514892586429286.post-29213514639423049682010-07-19T00:13:03.096-07:002010-07-19T00:13:03.096-07:00श्री ज़फर गोरखपुरी जी और नक्श लायलपुरी जी दोनों ही ...श्री ज़फर गोरखपुरी जी और नक्श लायलपुरी जी दोनों ही वरिष्ठ शायर हैं उनके कहे पर कुछ कहना अच्छा नहीं लगता <br />लेकिन उनके विचारों पर अपने विचार रखना भी जरूरी हो गया है. <br />मैं ज़फर गोरखपुरी के कथन से पूरी तरह से सहमत हूँ कि दोहों में दोहों का अनुशासन नितांत आवश्यक है ताकि <br />उसकी शुद्धता बरकरार रहे तथा तेरह ग्यारह मात्रा की बंदिश जरूरी है <br />नक्श लायलपुरी का कथन कि शायर किसी बंदिश को तस्लीम नहीं करता अपनी जगह सही है लेकिन जिस विधा की<br />जो बंदिश है उसे तो मानना जरूरी है. पुरानी tradition में विकास लाने के लिए बदलाव जरूरी है यह भी सही है लेकिन <br />बदलाव में पुराना नाम ही क्यों रहे यदि अन्य बंदिशें लागू की जाती हैं उस विधा का नाम ही क्यों नहीं बदल दिया जाये.<br />ऐसा नहीं हो सकता कि आदमी के नाम पर गधे की परिभाषा रख दें और कहें कि विकास और बदलाव के नाम पर <br />अब गधे को ही आदमी कहेंगे <br />आज केवल रदीफ़ और काफिये की तुकबंदी करके बहुत सी ग़ज़लें लिखी जा रही हैं जो ऐसी ग़ज़लें लिख रहे हैं उन में से कई <br />शायरों से मेरी व्यक्तिगत चर्चा हुई है कि इन बेबहरी ग़ज़लों को ग़ज़ल नहीं कह सकते इस बहस में वे शायर भी यही दलील देते हैं <br />कि ग़ज़ल कि बंदिशों के नाम पर उनकी परवाज़ नहीं रोकी जा सकती तो क्या उन बेबहरी ग़ज़लों को भी ग़ज़ल मानना शुरू <br />करदें <br />नई बहरें बनाकर ग़ज़ल लिखना अलग बात है क्योंकि उसमें ग़ज़ल का अनुशासन तो रहता है लेकिन दोहे के लिए १३-११ मात्रा<br />के स्थान पर १२-११ १३-१३ १४-१४ या १२-१२ मात्राएँ रखना और उनको दोहा कहना दोहों के साथ अन्याय है. आप इसका दूसरा नाम <br />क्यों नहीं दे सकते. क्या जरूरी है कि उसे दोहा ही कहा जाए.chandrabhan bhardwajhttps://www.blogger.com/profile/09515769930349777559noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-765514892586429286.post-79978313697157443412010-07-18T08:41:26.153-07:002010-07-18T08:41:26.153-07:00इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.तिलक राज कपूरhttps://www.blogger.com/profile/03900942218081084081noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-765514892586429286.post-9875222094153388152010-07-18T08:41:16.387-07:002010-07-18T08:41:16.387-07:00मैं व्यक्तिगत रूप से दोहा अलग-अलग विधाओं की खूबसू...मैं व्यक्तिगत रूप से दोहा अलग-अलग विधाओं की खूबसूरती पर विवाद के पक्ष में नहीं हूँ। कुछ समय से फ़्यूज़न के नाम पर कनफ़्यूज़न पैदा करने का फैशन देखने को मिल रहा है। फ़्यूज़न तभी अनुमत्य है जब दो विधायें साथ-साथ चलते हुए अपने मूल स्वरूप बनाये रखें। दोहे का छंद विधान ग़ज़ल के छंद विधान से अलग ही नहीं, बहुत अलग है। <br />दोहा और ग़ज़ल दोनों मात्रिक गणना पर आधारित हैं लेकिन दोहा में मात्रिक क्रम का बंधन नहीं है केवल चरणवार कुल मात्राओं का बंधन है। <br />ग़ज़ल का आधार बह्र है और ऐसी बह्र चुनी जा सकती है जो दोहा के नियमों का पालन करती हो और इसमें गुँजाईश है कि आप प्रथम चरण की तेरह मात्राऍं और द्वितीय चरण की 11 मात्राऍं किसी मान्य बह्र अनुसार चुन लें। ऐसी कोई भी ग़ज़ल दोहा ग़ज़ल कही जा सकती है; लेकिन ग़ज़ल वह तभी कहलाएगी जब उसमें ग़ज़ल के दो अन्य आधार तत्वों, यथा रदीफ़ व काफि़या का भी पालन किया गया हो। अगर यह सब है तो ऐसी ग़ज़ल को ग़ज़ल कहने में क्या एतराज़ है अनावश्यक रूप से इसे दोहा ग़ज़ल कहकर भ्रम क्यूँ पैदा करना। <br />दोहा की दो पंक्तियॉं नियम से ही पूर्ण स्वतंत्र रचना है जबकि ग़ज़ल नहीं। ग़ज़ल रदीफ़, काफि़या और बह्रका पालन करने वाले कुछ अशआर का समूह होती है। हॉं स्वतंत्र रचना के आधार पर दोहा और शेर में साम्य देखा जा सकता है अगर दोनों मान्य बह्र पर आधारित हों।<br />कुछ दोहों का मात्रिक क्रम ऐसा हो सकता है कि वो किसी मान्य बह्र से साम्य रखता हो लेकिन इतने मात्र से ऐसे दोहों के समूह को ग़ज़ल नहीं कहा जा सकता है। <br />दोहा ग़ज़ल के नाम पर जो कुछ छप रहा है, उसे देखें तो बात और साफ़ हो जाती है। मेरे देखने में आज तक कोई ऐसी तथाकथित दोहा ग़ज़ल नहीं आई जिसमें रदीफ़ भी रहा हो- चलिये मान लेते हैं कि ये गैर-मुरद्दफ़ हैं- फिर काफि़या का पालन (?) हर दोहा इस नज़रिये से मत्ला होता है, और इस प्रकार तथाकथित दोहा ग़ज़ल का हर तथाकथित शेर हुस्ने मत्ला अथवा मत्ला-ए-सानी होता चला जायेगा।<br />दोहा ग़ज़ल एक भ्रम है जो अधिकॉंश शाइर अपनी शाइरी के मध्यकाल में पाल लेते हैं जब उन्हें यह उनकी विशिष्ट उपलब्धि लगती है। शाइरी जैसे-जैसे समझ में आने लगती है भ्रम टूटने लगता है। <br />ज़फ़र साहब ने सही कहा कि 'पाकिस्तान में शायरों ने दोहा लिखने के लिए अलग बहर ;;;;;;उनका अनुकरण किया। अब ये तो मनमानी हो गयी; खूब कीजिये; कौन रोक सकता है। <br />'नक्श' साहब सम्माननीय हैं लेकिन मैं उनके पक्ष से सहमत नहीं, विधाओं से खिलवाड़ का अधिकार व्यक्ति को नहीं दिया जा सकता। हॉं संगोष्ठियों के माध्यम से इस विषय पर निरंतर चर्चा कर हिन्दी साहित्य में ग़ज़ल का मान्य स्वरूप निर्धारित किया जाना एक आवश्यकता का रूप ले चुका है।तिलक राज कपूरhttps://www.blogger.com/profile/03900942218081084081noreply@blogger.com