गुरुवार, 19 मई 2016

देवमणि पांडेय की ग़ज़ल : दीन-धरम बस यही है अपना



देवमणि पांडेय की ग़ज़ल


दीन-धरम बस यही है अपना साथ इसी के जीना है 
प्यार छुपा है जिस दिल में वो काशी और मदीना है 

मोल-भाव की इस नगरी में सबके अपने-अपने दाम 
मगर है क़ीमत जिसकी ज़्यादा समझो वही नगीना है 

गुज़रा है यह साल भी जैसे कोई तपता रेगिस्तान 
साथ सफ़र में रहने वाला अपना ख़ून-पसीना है 

नफ़रत का इक चढ़ता दरिया प्यार का साहिल कोसों दूर 
वक़्त के हाथों में पतवारें, डाँवाडोल सफ़ीना है 

गंगा, यमुना और गोमती सबके चेहरे स्याह हुए 
ज़हर घुला है दरियाओं में फिर भी हमको पीना है 




 Contact : 98210-82126
https://twitter.com/DevmaniPandey5

6 टिप्‍पणियां:

कविता रावत ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना ..

देवमणि पांडेय Devmani Pandey ने कहा…

कविता जी शुक्रिया

देवमणि पांडेय Devmani Pandey ने कहा…

कविता जी शुक्रिया

बेनामी ने कहा…

pad kar accha lgaa
http://www.helptoindian.com

प्रदीप कांत ने कहा…

क्यूँ कैसे मरा कोई क्या फ़िक्र हुकूमत को
पत्थर की तरह नेता बैठे हैं मकानों में


Dr. Nathuni Pandey ने कहा…

सहें हर मार मौसम का,सदा ही खिलखिलाने हैं
निभाते साथ कांटों का,सुमन फिर मुस्कुराते हैं ।
डाॅ नथुनी पाण्डेय