शनिवार, 14 जनवरी 2012

अपना तो मिले कोई : ग़ज़ल संग्रह का लोकार्पण

प्रज्ञा विकास, शायर देवमणि पांडेय, शायर ज़फ़र गोरखपुरी, गायिका डॉ. शैलेश श्रीवास्तव, 
शायरा दीप्ति मिश्र, कवयित्री माया गोविंद, चित्रकार जैन कमल

ग़ज़ल संग्रह अपना तो मिले कोई का लोकार्पण

शायर देवमणि पाण्डेय के ग़ज़ल संग्रह अपना तो मिले कोई का विमोचन 12 फरवरी 2012 को भवंस कल्चरल सेंटर, मुम्बई के एसपी जैन सभागार में धूमधाम से सम्पन्न हुआ। इस मौके पर सभागार में कई महत्वपूर्ण शायर, कवि, पत्रकार और कलाकार मौजूद थे। किताब का लोकार्पण करते हुए मशहूर शायर ज़फ़र गोरखपुरी ने कहा कि इस किताब के बाद देवमणि पांडेय ने अपने अदबी सफर का पहला पड़ाव पार कर लिया है। इस किताब को पढ़ते हुए कई शेरों पर उंगली ठहर गई और कई शेर चमकते हुए दिखे। देवमणि ने अपनी मेहनत से पाठकों का एतबार हासिल किया है। उन्होने देवमणि पाण्डेय के कुछ शेर भी पढ़े। मसलन-

दिल में मेरे पल रही है ये तमन्ना आज भी
इक समंदर पी चुकूँ और तिश्नगी बाक़ी रहे

ज़फ़र गोरखपुरी ने आगे कहा कि मेरी नज़र में अच्छी शायरी वो है जो अपने पाठकों के ज़ौक़ पर पूरी उतरे, उन्हें ज़हनी सुकून और रूहानी मसर्रत अता करे। जो पाठकों को मायूस न करे बल्कि उनमें ज़िदगी से लड़ने का हौसला पैदा करे। मुझे ख़ुशी है कि देवमणि पांडेय की ग़ज़लों में ये ख़ासियत मौजूद है। मेरी दुआ है कि देवमणि पांडेय का ये शेरी मजमुआ हिंदी और उर्दू दोनों ज़बानों में मक़बूल हो। दिल की बातें और ख़ुशबू की लकीरें के बाद देवमणि पांडेय की यह तीसरी किताब है। इस किताब में सौ ग़ज़लें शामिल हैं।

इस किताब पर अपनी राय जाहिर करते हुए जाने-माने शायर शमीम तारिक़ ने कहा कि देवमणि पांडेय की ग़ज़लें ग़ज़ल के मिजाज़ से और उसकी तहज़ीब से बहुत ख़ूबसूरत रिश्ता रखती हैं। यही रिश्ता उनके कामयाब ग़ज़लगो होने की ज़मानत है। ग़ज़ल अरबी से फारसी में, फारसी से उर्दू में और उर्दू से दीगर भारतीय भाषाओं में सफ़र करती हुई मक़बूल हो रही है। अब ग़ज़ल पर देवमणि पांडेय का भी उतना ही हक़ है जितना किसी उर्दू शायर का। मैं न केवल उनको मुबारकवाद पेश करता हूँ बल्कि पूरे यक़ीन से ऐलान करता हूँ कि एक अच्छे ग़ज़लगो के तौर पर देवमणि पांडेय मक़बूल होंगे।

मशहूर शायर और अदीब अब्दुल अहद साज़ ने कहा कि हिंदी ग़ज़ल से उर्दू शायरी की तरफ़ आने वालों में देवमणि पांडेय का नाम अलग मुकाम रखता है। यूँ तो देवमणि पाण्डेय के कलाम में कई पहलू हैं मगर दो पहलू ज़्यादा साफ़ हैं। एक तो उनका तज़रुब-ए-इश्क़ (प्रेम-अनुभव) और दूसरा आज के समाज के बीच बसर करते हुए सामान्य आदमी का कर्ब और घुटन! उन्होंने अपने पैरो चली ज़मीन और अपने सर पर लदे हुए आसमान को अपने क़लम से ब-ख़ूबी दर्शाया है। देवमणि पाण्डेय का यह काव्य संकलन ‘अपना तो मिले कोई’ पढ़ते हुए आपको ये अंदाज़ा बख़ूबी हो सकेगा कि उर्दू के आसमान पर हिंदी के सितारे कितनी ख़ूबसूरती से टाँके जा सकते हैं और हिंदी के गुलशन में उर्दू के फूल कितने प्यार से खिलाए जा सकते हैं। मशहूर फॉक सिंगर डॉ. शैलेश श्रीवास्तव ने तरन्नुम में देवमणि पाण्डेय की एक ग़ज़ल सुनाकर मुशायरे का आगाज किया-

ये दुनिया है यहाँ कब कौन किसका साथ देता है
जो अपना है वही ग़म की हमें सौग़ात देता है
चित्रकार जैन कमल, शायर देवमणि पांडेय,  ज़फ़र गोरखपुरी,  नक़्श लायलपुरी, कवयित्री माया गोविंद, 
शायरा दीप्ति मिश्र, लोक गायिका डॉ. शैलेश श्रीवास्तव, शायर ज़मीर काज़मी

युवा शायर युसूफ दीवान ने दमदार आवाज में ग़ज़लें पेश की- कीजिए सबको ख़बरदार न समझा जाए / मंजिले इश्क को हमवार न समझा जाए। नई नस्ल के मारूफ़ शायर हैदर नज्मी ने देवमणि पाण्डेय को उनकी इस किताब के लिए मुबारक बाद देते हुए अपने ताजा कलाम पेश किए-

तुम्हारा नाम अगर लूँ तो झूठ बोलूँगा 
मुझे तो गम मेरा परवरदिगार देता है 

शायरा दीप्ति मिश्र ने अपने चुनिंदा कलाम पेश किए। उनकी शायरी को लोगों ने खूब सराहा-

दुखती रग पे उंगली रख कर पूछ रहे हो कैसी हो
तुमसे ये उम्मीद नहीं थी, दुनिया चाह जैसी हो

अब्दुल अहद साज ने अपना कलाम यूँ पेश किया-राहे जहन्नम के राही, हम करम नगर के वासी हैं। इसके बाद ज़मीर काजमी ने कई उम्दा शेर पेश किए- मताए उम्र की गठरी मैं ले जाऊँ, कहाँ रखूँ / गुजरने वाला हर लम्हा ये दौलत लूट जाता है। फ़िल्म लेखक राम गोविंद अतहर ने भी बेहतर शेर सुनाकर दाद वसूल की-

पत्थरों को कोई ढोता नहीं है
ख़ाक बन जा फिर हवा ले जाएगी

शायर शमीम तारिक़ ने ग़ज़ल पेश की - सहर सर पर खड़ी है और सारी बात बाक़ी है। इसके बाद नामचीन शायर ज़फ़र गोरखपुरी ने निराले अंदाज में अपने कलाम पढ़े-

मेरी एक छोटी सी कोशिश तुझको पाने के लिए 
बन गई है मसअला सारे जमाने के लिए
मैं ज़फ़र ताज़िंदगी बिकता रहा परदेश में 
अपनी घरवाली को इक कंगन दिलने के लिए

सभागार में ज़फ़र साहब की शरीके-हयात किताबुन्निसा जी भी मौजूद थीं। देवमणि पांडेय ने शाल और गुलदस्ता भेंट करके उनका इस्तकबाल किया। समारोह अध्यक्ष नक़्श लायलपुरी साहब के उम्दा शेर सामयीन ने दिल लगाकर सुने और भरपूर दाद दी -

एक आँसू गिरा सोचते-सोचते 
याद क्या आ गया सोचते-सोचते
जैसे तस्वीर लटकी हो दीवार पे 
हाल ये हो गया सोचते-सोचते 

देवमणि पाण्डेय ने अपनी तख़लीक़ी सफ़र पर इज़हारे-ख़याल करते हुए मजरूह सुल्तानपुरी को याद किया और बोले कि मेरा परिचय यही है कि मैं मजरूह साहब के नगर सुल्तानपुर का हूँ। उन्होंने कुछ ग़ज़लें पेश कीं तो सामयीन ने उन्हें सराहा और दिल खोलकर दाद दी-

कुछ तीरगी में गुज़री, उजालों में कट गई
इक ज़िंदगी मिली थी, सवालों में कट गई
कितनी अजीब होती है शायर की ज़िंदगी
लफ़्जों की जुस्तजू में रिसालों में कट गई


कवयित्री माया गोविंद ने देवमणि पांडेय को उनकी लगनशीलता और लेखन की तारीफ करते हुए इस तरह बधाई दी-

अपना तो मिले कोई’ कृति ये जो तुम्हारी है
हर दिल में उतर जाए आशीष हमारी है
बज़्में अदब में छाए यह है दुआ हमारी
हर दिल अज़ीज़ होगी हर इक ग़ज़ल तुम्हारी
तेरे सुख़न का ऐ देव अंदाज़ है निराला
घायल के लिए मरहम प्यासों के लिए प्याला

लोकार्पण समारोह में किताब के डिजायनर जैन कमल ने अपनी बात रखी और एक जैनमुनि की ओर से देवमणि पांडेय को मोतियों की माला भेट की। समारोह के आरम्भ में वरिष्ठ शायर नंदलाल पाठक के हाथों शाल भेंट करके शायरों का सम्मान किया गया। समारोह का संचालन कवयित्री प्रज्ञा विकास ने किया। उन्होंने भी अपने कलाम पढ़े। आभार प्रदर्शन समकालीन हिंदी कविता के चर्चित कवि डॉ. बोधिसत्व ने किया। इस मौक़े पर साहित्य, संगीत और सिने जगत से कुमार प्रशांत, यज्ञ शर्मा, डॉ.सत्यदेव त्रिपाठी, हृदयेश मयंक, डॉ.सुषमा सेन, कविता गुप्ता, खन्ना मुज़फ्फरपुरी, रेखा रोशनी, बसंत आर्य, अनंत श्रीमाली, रासबिहारी पांडेय, शास्त्रीय गायक डॉ. परमानंद, ग़ज़ल गायक राजकुमार रिज़वी, संगीतकार विवेक प्रकाश, गायिका रश्मिश्री, उदघोषिका प्रीति गौड़ और वीर सावरकर फेम अभिनेता शैलेंद्र गौड़ उपस्थित थे।

आपका-
देवमणिपांडेय

सम्पर्क : बी-103, दिव्य स्तुति, कन्या पाडा, 
गोकुलधाम, निकट महाराजा टावर, फिल्मसिटी रोड,
 गोरेगांव पूर्व, मुम्बई-400063, 98210 82126

10 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही खूबसूरत पंक्तियाँ हैं.. एक प्रति हम भी ज़रूर खरीदेंगे! :)

    आभार
    प्यार में फर्क पर अपने विचार ज़रूर दें..

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  2. हर कवि/शायर की पहली पुस्तक उसके एक सपने का सच होना है
    हार्दिक बधाई

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  3. वीनस साहब
    यह देवमणि जी की तीसरी किताब है। हाँ यह जरूर है कि इस किताब में केवल गजलें शामिल हैं। तो आप कह सकते हैं कि यह गजलों की पहली किताब।

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  4. dev saab !
    aap ko bahut bahut badhai is anupam kriti ke liye , aap anvarat yuhi hi adab ki seva karte rahe ye dua karte hai ,
    bahut badhai
    saadar

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  5. देवमनी जी।
    बहुत बहुत मुबारक इस शानदार संग्रह के लिए और शानदार लोकार्पण के लिए भी।
    दिल में मेरे पल रही है ये तमन्ना आज भी
    इक समंदर पी चुकूँ और तिश्नगी बाक़ी रहे

    सच कहा है आपकी शान में
    "उर्दू के आसमान पर हिंदी के सितारे"
    खूब चमकते रहो, दमकते रहो और राहें रौशन करते रहो
    दिल की हर चाहत हो पूरी यह दुआ है आज भी
    शर्त है लेकिन, तमन्ना जीने की बाक़ी रहे
    बधाई व शुभकामनाओं के साथ

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  6. देव मणि जी ,
    बहुत- बहुत बधाई! आपकी तिश्नगी बाकी रहे औए आप ऐसे ही लिखते रहें !
    सादर
    इला

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  7. बहुत-बहुत बधाई देवमणि जी इस खूबसूरत संग्रह के लिए!!

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  8. DEVMANI JI , AAPKE GAZAL SANGARAH
    KE LOKARPAN KAA VIVRAN PADH KAR
    CHITT PRASANN HO GAYAA HAI . AAPKEE
    GAZALON MEIN CHAAND KEE CHAANDNI
    HAI , PHOOLON KEE KHUSHBOO HAI AUR
    SARITA KAA PRAWAAH HAI . AAPKEE
    GAZALON KO PADH KAR HMESHAA MUJHE
    SHANTI KAA AABHAAS HOTA HAI . YUN
    HEE LIKHTE RAHEN AUR RIJHAATE RAHEN

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  9. वाकई कार्यक्रम लोगों की जहन मे बरसों तक बना रहेगा.शायरों ने जो शमा बांधा वह अभूतपूर्व था.बोधिसत्व ने जिस तरह से काव्यमय आभार व्यक्त किया वह भी अभूतपूर्व.आप है ही अभूतपूर्व तो सबकुछ अभूतपूर्व होना ही था.बधाई.अगले संग्रह का इंतजार रहेगा.

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