शनिवार, 9 अक्टूबर 2010

सजा है इक नया सपना : देवमणि पांडेय की ग़ज़ल


देवमणि पांडेय की ग़ज़ल  

सजा है इक नया सपना हमारे मन की आँखों में
कि जैसे भोर की किरनें किसी आँगन की आँखों में

शरारत है, अदा है और भोलेपन की ख़ुशबू है
कभी संजीदगी मत ढूँढिए बचपन की आँखों में

कहीं झूला, कहीं कजली, कहीं रिमझिम फुहारें हैं
खिले हैं रंग कितने देखिए सावन की आँखों में

जो इसके सामने आए सँवर जाता है वो इंसां
छुपा है कौन-सा जादू भला दरपन की आँखों में

सुलगती है कहीं कैसे कोई भीगी हुई लकड़ी
दिखाई देगा ये मंज़र किसी बिरहन की आँखों में

फ़क़ीरी है, अमीरी है, मुहब्बत है, इबादत है
नज़र आई है इक दुनिया मुझे जोगन की आँखों में

देवमणि पाण्डेय 1988 (छायाकार स्व.बादल) 


आपका
देवमणिपांडेय
सम्पर्क : बी-103, दिव्य स्तुति,
कन्या पाडा, गोकुलधाम, फिल्मसिटी रोड,
गोरेगांव पूर्व, मुम्बई-400063, 98210-82126

14 टिप्‍पणियां:

  1. क्‍या कहूँ। सब तो आपकी ग़ज़लों ने कह दिया और जब हर शेर उम्‍दा हो तो मैं इतना निष्‍ठुर भी नहीं हो सकता कि कुछ उद्धरित कर कुछ को छोड़ दूँ।
    ग़ज़ल 4 के शेर तीन कीपहली पंक्ति में स्‍पष्‍ट है कि तोड़ ग़लती से टंकित हो गया है।
    तुमने ही तो दिल में मेरे फूल खिलाए ज़ख़्मों के
    नाम तुम्हारा शामिल कर लूँ मैं कैसे बेगानों में।
    और
    दिल के ज़ख़्म हुए गहरे तो हमको यह महसूस हुआ
    छुपे हुए थे कितने काँटे कलियों सी मुस्कानों में।
    आपके फ़ोटो के ज़माने केशेर लगते हैं।

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  2. बहुत खूब ! उम्दा गजलें ! यदि तनहा -तनहा अलबम का लिंक भी डाल देते तो हम उन गजलों को सुनने का लुत्फ़ भी ले लेते |
    इला

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  3. आदरणीय देवमणि पाण्डेय जी

    नमस्कार !

    शहर-शहर , कस्बे-कस्बे , गांव-गांव कसैला , नमकीन ,प्रदूषित , बेस्वाद पानी
    सूखते कंठ , खिंचती जीभ और सफेद पड़ते होंठों की हालत पर तरस खा'कर मज़बूरी में
    बेमन से दो-दो घूंट गटकने को विवश मुसाफ़िर को
    बढ़िया क़्वालिटी के स्वच्छ-शीतल मिनरल वाटर की चार बोतलें एक साथ मिल जाए तो … … …

    बस, यही अनुभूति आपकी ग़ज़लें पढ़ कर हुई है ।

    पत्र-पत्रिकाओं में पढ़ते हुए बहुत पहले से आपकी रचनाओं का तलबगार रहा हूं ।

    यहां प्रस्तुत चारों ग़ज़लें एक से बढ़कर एक हैं । बस , एक एक दो दो शे'र मन की तृप्ति के लिए कोट कर रहा हूं , अन्यथा तमाम अश्'आर कोट करने लायक हैं ।

    दिल अदालत है, इस अदालत में
    वक़्त का फ़ैसला नहीं चलता

    लोग चेहरे बदलते रहते हैं
    कौन क्या है पता नहीं चलता



    जिधर भी देखिए दामन हैं तरबतर सबके
    कभी तो दर्द की शिद्दत में कुछ कमी मिलती



    पढ़के देखीं किताबें मोहब्बत की सब
    आंसुओं के अलावा मिला कुछ नहीं

    हर ख़ुशी का मज़ा ग़म की निस्बत से है
    ग़म अगर ना मिले तो मज़ा कुछ नहीं



    उसे दुआ देनी पड़ती है जिसने दिल को तोड़ा है
    कुछ मज़बूरी भी होती है चाहत के अफ़सानों में

    तुमने ही तो दिल में हमारे फूल खिलाए ज़ख़्मों के
    नाम तुम्हारा शामिल कर लें हम कैसे बेगानों में


    सच तो ये है कि , आपकी रचनाएं किसी औपचारिक वाहवाही की मोहताज नहीं , इन पर बात करना बात करने वाले की स्वयं की संतुष्टि के लिए आवश्यक है ।

    हमारे अपने अलीजी गनीजी और राजकुमार रिज़वीजी को बेशक़ीमती हीरे छांटने में वैसे भी महारत है , इसलिए इनको भी मेरी दिली मुबारकबाद पहुंचे !


    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  4. … और हां ,
    वर्ष 1988 वाले देवमणि पाण्डेय से मिल कर बहुत अच्छा लगा :)

    इला जी का आग्रह मेरा भी है , संभव हो तो …


    राजेन्द्र स्वर्णकार

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  5. बहुत खूब ! हर ग़ज़ल उम्दा लगी। हर शेर दिल में उतरता चला गया। वाह ! बधाई !

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  6. mujhpar yun hee hansne waale
    kash , kabhee ye bhee sochen
    chain mayassar ho jaataa to
    kyon jaate maikhaanon mein
    Bhai Devmani jee , sher ke
    pahle misre mein agar " mujh par"
    ke sthaan par " hum par " kaa
    istemaal to behtar hota !
    Aapkee gazlon ke Seedhe saade shabdon mein seede saade bhavon ne mun mein aanand bhar diya hai .

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  7. उस तरफ़ चल के तुम कभी देखो
    जिस तरफ़ रास्ता नहीं चलता
    ***

    जिधर भी देखिए दामन हैं तरबतर सबके
    कभी तो दर्द की शिद्दत में कुछ कमी मिलती
    ***

    हर ख़ुशी का मज़ा ग़म की निस्बत से है
    ग़म अगर ना मिले तो मज़ा कुछ नहीं
    ***
    छा गए बॉस...क्या कहने...एक तो जवानी का फोटो और ऊपर से जवां शेर...सुभान अल्लाह...चश्मे बद्दूर...
    आपके इस शेर से
    मुझपर यूँ ही हँसने वाले काश कभी यह भी सोचें
    चैन मयस्सर हो जाता तो क्यों जाते मयख़ानों में
    ये शेर याद आ गया:
    दैरो हरम में चैन जो मिलता
    क्यूँ जाते मयखाने लोग
    और इस शेर से
    उसे दुआ देनी पड़ती है जिसने दिल को तोड़ा है
    कुछ मजबूरी भी होती है चाहत के अफ़सानों में
    ये शेर याद आया:
    कुछ तो मजबूरियां रहीं होंगी
    यूँ कोई बेवफा नहीं होता

    चरों ग़ज़लें कमाल हैं...दाद कबूल करें...

    नीरज















    8

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  8. लोग चेहरे बदलते रहते हैं
    कौन क्या है पता नहीं चलता
    .....

    चमन को फूल घटाओं को इक नदी मिलती
    हमें भी काश कभी अपनी ज़िंदगी मिलती
    ....
    bahut nayab gazlen hain aapki Devmani ji!daad qabool farmayen....

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  9. जब तलक रतजगा नहीं चलता

    इश्क़ क्या है पता नहीं चलता

    बहुत खूब .....!!

    उस तरफ़ चल के तुम कभी देखो

    जिस तरफ़ रास्ता नहीं चलता

    क्या बात है .....

    उगाते हम भी शजर एक दिन मोहब्बत का
    तुम्हारे दिल की ज़मीं में अगर नमी मिलती

    सुभानाल्लाह .....!!

    उसने रुसवा सरेआम मुझको किया
    जिसके बारे में मैंने कहा कुछ नहीं
    बहुत खूब .....

    तुमने ही तो दिल में हमारे फूल खिलाए ज़ख़्मों के
    नाम तुम्हारा शामिल कर लें हम कैसे बेगानों में

    देवमणि जी ....अंत तक आते आते तो एक ही बात कहूँगी ....

    बस एक- एक कर ही डाला कीजिये ....

    ताकि मज़ा लेकर पढ़ा जा सके ......इन बेहतरीन गजलों ko ....

    आपके ब्लॉग पे पहली बार आई हूँ....शायद आपने भी अभी ही शुरु किया है ....

    बहुत ही उम्दा लिखते हैं ......!!

    !

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  10. bahut sundarta se sabhi bhaav vyakt hue hain!
    atiuttam lekhan!
    maa saraswati ka aashish bana rahe!
    regards,

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  11. उगाते हम भी शजर एक दिन मोहब्बत का

    तुम्हारे दिल की ज़मीं में अगर नमी मिलती

    देव साब प्रणाम !
    आप कि चारो गज़लें सुंदर है ,चारों के शेर भी उम्दा है कई तो दिल को छूने वाले है , खूब सूरत शेर , चारों में इक उम्मीद लिए है ,
    मुबारक बाद !

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  12. Hey
    very good manish, all poems are very good
    Please post your peoms at my site, All the best you 'll go high in poems world

    http://www.indiapoems.com

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  13. इस हौसला अफ़ज़ाई के लिए आप सबका बहुत-बहुत शुक्रिया !

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